सुपर-एंटीबॉडी से भविष्य की महामारियों पर नियंत्रण

हाल ही में यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने सोट्रोविमैब को आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी है। सोट्रोविमैब सार्स-कोव-2 के विरुद्ध एक प्रभावी हथियार है जिसे भविष्य में विभिन्न कोरोनावायरस के कारण होने वाली संभावित महामारियों के लिए भी प्रभावी माना जा रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार सोट्रोविमैब जैसी तथाकथित सुपर-एंटीबॉडीज़ की वर्तमान वायरस संस्करणों के विरुद्ध व्यापक प्रभाविता इसे कोविड-19 के लिए पहली पीढ़ी के मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAb) उपचारों से बेहतर बनाती है। चिकित्सकों के लिए यह तो संभव नहीं है कि हर बार वायरस का अनुक्रमण करके इलाज करें। इसलिए ऐसी एंटीबॉडीज़ बेहतर हैं जो प्रतिरोध पैदा न होने दें और विभिन्न ज्ञात संस्करणों के खिलाफ कारगर हों।

विर बायोटेक्नोलॉजी और ग्लैक्सो-स्मिथ-क्लाइन द्वारा निर्मित एंटीबॉडी उपचार वास्तव में तीसरा mAb आधारित उपचार है जो हल्के से मध्यम कोविड-19 से पीड़ित व्यक्तियों के लिए उपयोग किया जा रहा है ताकि उन्हें गंभीर रूप से बीमार होने से बचाया जा सके। हालांकि, टीकाकरण में वृद्धि के साथ ऐसे उत्पादों की आवश्यकता कम हो जाएगी लेकिन जिन लोगों को किसी वजह से टीका नहीं लगता या टीकाकरण से पर्याप्त प्रतिरक्षा नहीं मिल पाती, उनके लिए mAb हमेशा आवश्यक रहेंगी।

हालांकि कुछ अन्य क्रॉस-रिएक्टिव mAb भी जल्द ही बाज़ार में आने वाले हैं। एडैजिओ थेराप्यूटिक्स ने व्यापक स्तर पर ADG20 नामक mAb के परीक्षण के लिए काफी निवेश किया है। इसका उपयोग उपचार और रोकथाम के लिए किया जाएगा। इस क्षेत्र में कई स्टार्ट-अप भी कोविड-19 के लिए अगली पीढ़ी के mAb पर काम कर रहे हैं।

दरअसल, सोट्रोविमैब की शुरुआत 2013 में हुई थी जब 2003 के सार्स प्रकोप से उबर चुके एक व्यक्ति के रक्त का नमूना लिया गया था। ADG20 को भी इसी तरह से तैयार किया गया है। दूसरी ओर, अधिकांश अन्य mAb हाल ही में कोविड-19 से उबर चुके लोगों के एंटीबॉडीज़ से प्रेरित हैं। कई कंपनियों ने mAb को अनुकूलित करने के लिए उनके अर्ध-जीवनकाल में विस्तार, निष्प्रभावन क्रिया में वृद्धि, स्थिर क्षेत्र में हेरफेर या फिर इन सभी के संयोजन का उपयोग किया है।

हालांकि, यूके बायोइंडस्ट्री एसोसिएशन की पूर्व प्रमुख जेन ओस्बॉर्न के अनुसार mAb विकसित करने में वायरस के विकास का विशेष ध्यान रखना होगा। कई परीक्षणों में नए संस्करणों के विरुद्ध नकारात्मक परिणाम मिले हैं। ऐसे में वायरस के उत्परिवर्तन पर काफी गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। हालांकि प्रयोगशाला में किए गए अध्ययनों में सोट्रोविमैब ने दक्षिण अफ्रीका, ज़ील और भारत में पाए गए सबसे चिंताजनक संस्करणों के प्रति निष्प्रभावन क्षमता को बनाए रखा है। कई अन्य mAb ने तीसरे चरण में अच्छे परिणाम दर्शाए हैं। लेकिन कुछ अन्य नए संस्करण के विरुद्ध कम प्रभावी रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि एकल एंटीबॉडीज़ एकल उत्परिवर्तन के विरुद्ध कमज़ोर हो सकते हैं जबकि एंटीबॉडीज़ का मिश्रण अधिक प्रभावी और शक्तिशाली हो सकता है।

लेकिन एक बेहतर रणनीति के तहत एडैजिओ और विर दोनों ने स्वतंत्र रूप से ऐसी mAb की जांच की जो सार्स जैसे कोरोनावायरस परिवार में पाए जाने वाले लगभग स्थिर चिंहों की पहचान करते हैं। ऐसे स्थिर हिस्से आम तौर पर वायरस के लिए आवश्यक कार्य करते हैं, ऐसे में वायरस अपने जीवन को दांव पर लगाकर ही इनमें उत्परिवर्तन का जोखिम मोल ले सकता है।

हालांकि, एंटीबॉडी सिर्फ इतना नहीं करते कि वायरल प्रोटीन को निष्क्रिय कर दें। mAb जन्मजात और अनुकूली प्रतिरक्षा को भी प्रेरित करते हैं जो संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद करती हैं और यही द्वितीयक क्रियाएं सार्स और कोविड-19 के उपचार के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं।

चूहों पर किए गए अध्ययन (सेल और जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में प्रकाशित) से इस विचार को समर्थन मिला है। लेकिन पिछले वर्ष जब कोविड-19 mAb काफी चर्चा में थे तब एस्ट्राज़ेनेका, एली लिली, एबप्रो और अन्य कंपनियों अपने-अपने mAb में इन क्रियाओं का दमन करने का निर्णय लिया था। वे वायरल संक्रमण में एंटीबॉडी-निर्भर वृद्धि के जोखिम को कम से कम करना चाहते थे जिसमें एंटीबॉडीज़ रोग को कम करने की बजाय बढ़ावा दे सकते हैं। कुछ रोगजनकों के मामले में यह एक वास्तविक समस्या हो सकती है। लेकिन शोधकर्ताओं को जल्दी ही समझ आ गया कि सार्स-कोव-2 के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। ऐसे में विर ने ऐसी क्रियाओं को रोकने पर ध्यान देना बंद कर दिया। इस कंपनी ने सोट्रोविमैब के लिए न सिर्फ इन क्रियाओं को अछूता छोड़ दिया बल्कि इन्हें बढ़ाने के प्रयास भी किए। वास्तव में इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसी एंटीबॉडी का निर्माण करना है जो न सिर्फ सुरक्षा प्रदान करे बल्कि एक दीर्घावधि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करे। इसके लिए पिछले वर्ष विर की एक टीम ने चूहों में एंटी-इन्फ्लुएंजा mAb पर काम किया है।

इस संदर्भ में एक टीम ने 2003 के सार्स संक्रमण के जवाब में तैयार किए गए प्राकृतिक mAb से शुरुआत की। इसके पहले चरण के परीक्षण में चिकित्सकों ने पाया कि ADG20 की एक खुराक से रक्त में वायरस को निष्क्रिय करने वाली क्रिया उतनी ही थी जितनी mRNA आधारित टीकाकारण के बाद लोगों में देखने को मिली थी। अध्ययनों से संकेत मिले हैं कि यह सुरक्षा एक वर्ष तक बनी रहती है। दो वैश्विक परीक्षण अभी जारी हैं।

कुछ कंपनियां मांसपेशियों में देने वाले टीके के साथ-साथ श्वसन के माध्यम से भी इसे देने के तरीकों की खोज कर रही हैं। इस नेज़ल स्प्रे को संक्रमण के स्थान पर ही वायरस को कमज़ोर करने के लिए तैयार किया गया है। बहरहाल जो भी तरीका हो लेकिन यह काफी अच्छी खबर है कि कोविड-19 के जवाब में ऐसे प्रयोग किया जा रहे हैं ताकि भविष्य में ऐसे हालात का डटकर सामना किया जा सके। गौरतलब है कि फिलहाल ये सभी अनुमानित लाभ है जिनको लोगों में नहीं देखा गया है। वास्तविक परिस्थिति में परीक्षण के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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