वातानुकूलन: गर्मी से निपटने के उपाय – आदित्य चुनेकर, श्वेता कुलकर्णी

प्रयास (ऊर्जा समूह) ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 3000घरों में बिजली के अंतिम उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए फरवरी-मार्च 2019में एक सर्वेक्षण किया था। यहां उस सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाश व्यवस्था के बदलते परिदृश्य की चर्चा की गई है। इस शृंखला में आगे बिजली के अन्य उपयोगों पर चर्चा की जाएगी।

भारत की जलवायु, अलग-अलग क्षेत्रों और अलग-अलग मौसमों में बहुत अलग-अलग होती है। अलबत्ता, अधिकांश देश गर्म ग्रीष्मकाल का अनुभव करता है जो और अधिक गर्म हो रहा है। भारत में हर साल लगभग 50 करोड़ पंखे, 8 करोड़ एयर-कूलर और 45 लाख एयर कंडीशनर खरीदे जाते हैं। इनकी बिक्री पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी है और आगे भी वृद्धि की उम्मीद है। फिर भी, भारत में एयर कंडीशनर और कूलर का घरेलू स्वामित्व अभी भी अपेक्षाकृत कम है। भारत उन चुनिंदा देशों में से है जहां कूलिंग एक्शन प्लान तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य है कि पर्यावरणीय और सामजिक-आर्थिक लाभ को सुरक्षित करते हुए सभी के लिए निर्वहनीय ठंडक एवं ऊष्मीय राहत प्रदान की जा सके। सर्वेक्षण में यह समझने की कोशिश की गई कि सर्वेक्षित परिवार किस तरह गर्मी से राहत पाने की कोशिश करते हैं और इसमें ठंडक के लिए ऊर्जा-मांग सम्बंधी कार्यक्रमों के लिए क्या समझ मिल सकती है?

आमतौर पर, महाराष्ट्र की तुलना में उत्तर प्रदेश अधिक गर्म रहता है। 2018 में, सर्वेक्षित ज़िलों में महाराष्ट्र की तुलना में उत्तर प्रदेश में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाले दिनों की संख्या ज़्यादा रही। हालांकि, खास तौर से उत्तर प्रदेश में, सर्दियों का मौसम काफी ठंडा रहा, फिर भी बिजली से चलने वाले रूम हीटरों का स्वामित्व दोनों ही राज्यों में नगण्य है। इसलिए, हम केवल गर्मी से राहत पाने के लिए घरों में बिजली के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

छत का पंखा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उपकरण है। उत्तर प्रदेश के लगभग 94 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 95 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में छत के पंखे हैं। प्रति परिवार छत के पंखों की संख्या उत्तर प्रदेश में 2.4 और महाराष्ट्र में 1.6 है। यह भी देखा गया है कि महाराष्ट्र (औसतन 2.4 कमरे प्रति घर) की तुलना में उत्तर प्रदेश में घर बड़े (औसतन 3.8 कमरे प्रति घर) हैं। अगला लोकप्रिय उपकरण कूलर है – उत्तर प्रदेश में 40 प्रतिशत परिवारों और महाराष्ट्र में 23 प्रतिशत परिवारों के पास कूलर है। हालांकि, उच्च आय वाले परिवारों में इनका स्वामित्व अधिक है, लेकिन कुछ निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों में भी कूलर थे। इससे स्थानीय स्तर पर निर्मित सस्ते कूलर की उपलब्धता का पता चलता है। दूसरी ओर एयर कंडीशनर का स्वामित्व दोनों राज्यों में काफी कम (3.5 प्रतिशत) है, जो अधिकतर उच्च आय वर्ग में होंगे। अधिकांश वातानुकूलन उपकरण (ए.सी.) स्प्लिट प्रकार के हैं; उत्तर प्रदेश में 84 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 70 प्रतिशत। प्रत्येक श्रेणी में सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले उपकरण की औसत आयु उत्तर प्रदेश में छत के पंखे की 7 साल, कूलर की 4 साल और एयर कंडीशनर की 2.5 साल है जबकि महाराष्ट्र में क्रमश: 7, 5 और 3 साल थी।

छत के पंखों के लिए ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) का मानक और लेबलिंग (एसएंडएल) कार्यक्रम स्वैच्छिक है। भारत में उत्पादित 95 प्रतिशत से अधिक छत के पंखे स्टार रेटेड नहीं हैं। हमारे सर्वेक्षण में, उत्तर प्रदेश में लगभग 6 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 18 प्रतिशत घरों में ही स्टार रेटेड छत के पंखे थे। बीईई ने हाल ही में मानकों को संशोधित किया है जिसके बाद नए 5-स्टार रेटेड छत के पंखे गैर-स्टार रेटेड पंखों की तुलना में आधी बिजली खपत करते हैं। लिहाज़ा, व्यापक पैमाने पर स्टार रेटेड छत के पंखे अपनाए जाएं, इसके लिए जागरूकता और उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतें कम करने की आवश्यकता है। स्टार रेटेड पंखों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए बीईई राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चला सकता है। वह छत के पंखों के लिए एसएंडएल कार्यक्रम को भी अनिवार्य बना सकता है ताकि भारत में अक्षम और गैर-स्टार रेटेड पंखे न बेचे जा सकें। एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (ईईएसएल) का उजाला कार्यक्रम 5-स्टार पंखे रियायती मूल्य पर बेचता है। ईईएसएल नए 5-स्टार पंखों को बेचने के लिए कार्यक्रम को अपग्रेड कर सकता है, जो पुराने 5-स्टार पंखों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक कार्यक्षम हैं। बीईई अपने खुद के अत्यंत कुशल उपकरण कार्यक्रम (एसईईपी) के तहत उजाला कार्यक्रम का समर्थन कर सकता है, जिसके तहत निर्माताओं को सामान्य पंखों की बजाय अत्यंत कुशल (नए 5 स्टार पंखे) को बेचने की बढ़ती लागत की क्षतिपूर्ति करने के लिए समयबद्ध वित्त प्रदान किया जाता है। इससे इन पंखों की कीमत में और गिरावट आ सकती है और खरीद बढ़ सकती है। एयर कूलर के लिए भी यही तरीका अपनाया जा सकता है। छत के पंखों के विपरीत, बीईई के पास एयर कूलर के लिए कोई भी स्टार रेटिंग कार्यक्रम नहीं है। इसके लिए पहला कदम यह होगा कि एयर कूलर को भी स्टार रेटेड कार्यक्रम के तहत लाया जाए और फिर एयर कूलर के लिए भी उजाला जैसा कोई कार्यक्रम शुरू करना होगा।

छत के पंखों और एयर कूलर के स्टार रेटिंग कार्यक्रम के समक्ष एक चुनौती स्थानीय निर्माताओं की उपस्थिति हो सकती है। हो सकता है उनमें से कुछ निर्माता सस्ते, गैर-मानक और अत्यधिक अक्षम मॉडल बेचें। तब बीईई के लिए इन उत्पादों में स्टार रेटिंग मानदंडों के अनुपालन की निगरानी करना मुश्किल हो सकता है। यह समस्या एयर कूलर में अधिक स्पष्ट है। दोनों राज्यों में सर्वेक्षित परिवारों में स्थानीय रूप से निर्मित एयर कूलर की हिस्सेदारी स्थानीय पंखों की तुलना में काफी अधिक है। एयर कूलर और पंखों के स्टार रेटिंग कार्यक्रम की सफलता के लिए इस मुद्दे को संबोधित करना ज़रूरी होगा।

सर्वेक्षित परिवारों में एयर कंडीशनर का स्वामित्व दोनों राज्यों में काफी कम है। हालांकि उनके उपयोग के बारे में कुछ टिप्पणियां की जा सकती हैं। बीईई के पास एयर कंडीशनर के लिए अनिवार्य एसएंडएल कार्यक्रम है। दोनों राज्यों में एयर कंडीशनर वाले 34 प्रतिशत घरों में ऊर्जाक्षम 4 और 5 स्टार रेटेड मॉडल हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग 49 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 32 प्रतिशत परिवार या तो स्टार-लेबल के बारे में जानते नहीं हैं या किसी गैर-स्टार रेटेड मॉडल का उपयोग कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि एयर कंडीशनर तक के बारे में इस कार्यक्रम को लेकर जागरूकता कम है। उत्तर प्रदेश के परिवार 21 डिग्री सेल्सियस और महाराष्ट्र के परिवार 22 डिग्री सेल्सियस की औसत तापमान सेटिंग पर एसी का इस्तेमाल करते हैं। यह दर्शाता है कि बीईई द्वारा हाल में अनुशंसित 24 डिग्री की डिफॉल्ट सेटिंग उपभोक्ताओं को तापमान अधिक सेट करने और बिजली बचाने के लिए प्रेरित कर सकती है। दूसरी ओर, एयर कंडीशनर का उपयोग काफी कम है। सामान्य गर्मी के दिन में एयर कंडीशनर का प्रतिदिन औसत उपयोग उत्तर प्रदेश में 3.8 घंटे और महाराष्ट्र में 4.5 घंटे  है। इससे तो लगता है कि शायद लोग एयर कंडीशनर का तापमान कम सेट करते हैं और कमरा ठंडा होने के बाद इसे बंद कर देते हैं। इससे एक आशंका यह पैदा होती है कि उपभोक्ता अधिक ऊर्जाक्षम एसी होने पर उसका उपयोग लंबी अवधि के लिए करने लगेंगे और तब ज़्यादा ऊर्जा खर्च होगी। इसकी और जांच करने की आवश्यकता है।

हमने परिवारों से यह भी पूछा था कि क्या वे उनके पास उपलब्ध उपकरणों के उपयोग के बाद भी गर्मियों के मौसम में किसी तरह की असुविधा का सामना करते हैं। सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश के लगभग 59 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 34 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वे गर्मी के कई या अधिकांश दिनों में असुविधा का सामना करते हैं। हमने अनुकूलन उपकरणों के स्वामित्व के आधार पर परिवारों का समूहीकरण किया और उनके असुविधा के स्तर को दर्ज किया। इन आंकड़ों से लगता है परिवारों में कई श्रेणी के उपकरण हो सकते हैं। जिन घरों में एयर कंडीशनर है वहां एयर कूलर, छत का पंखा, टेबल फैन, आदि में से कोई एक या सभी उपस्थित हो सकते हैं। देखा गया कि उत्तर प्रदेश में टेबलफैन वाले परिवारों से एयर कंडीशनर वाले परिवारों की ओर बढ़ें, तो असुविधा भी कम होती जाती है। हालांकि, यह रुझान महाराष्ट्र में इतना स्पष्ट नहीं है। इसका एक संभावित कारण उत्तर प्रदेश में ग्रीष्मकाल की तीव्रता हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों राज्यों में लगभग 10 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जो एयर कंडीशनर का उपयोग करते हैं लेकिन फिर भी गर्मियों के अधिकतर दिनों में असुविधा का सामना करते हैं। ऐसा एयर कंडीशनर के सीमित उपयोग की वजह से हो सकता है। इसका कारण उच्च बिजली बिल, पॉवर कट या दोनों ही हो सकते हैं। यह एयर कंडीशनर के अनुचित आकार के कारण भी हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त शीतलन होता है।

तापमान में वृद्धि के रुझान के साथ घरों में असुविधा का उच्च स्तर सभी वातानुकूलन उपकरणों के लिए एक संभावित मांग का संकेत देता है। इसके मद्दे नज़र ऐसे हस्तक्षेपों की आवश्यकता है जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि ये उपकरण ऊर्जा-क्षम हों ताकि वे एक निर्वहनीय और सस्ते तरीके से शीतलन की ज़रूरतों को पूरा कर सकें। मानक और लेबलिंग (एसएंडएल) जैसी नीतियां और अत्यंत कुशल उपकरण कार्यक्रम (एसईईपी) द्वारा समर्थित उजाला जैसे कार्यक्रम इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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