मशहूर दकियानूस वैज्ञानिक की प्रशंसा का खामियाजा

जेम्स वॉटसन मशहूर वैज्ञानिक हैं। 1950 के दशक में उन्होंने फ्रांसिस क्रिक के साथ मिलकर आनुवंशिक पदार्थ डीएनए की रचना का खुलासा किया था जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके बाद वे मानव जीनोम परियोजना के निदेशक भी रहे। हाल ही में उनकी 90वीं सालगिरह मनाई गई। इस आयोजन में एमआईटी के ब्रॉड इंस्टीट्यूट के एरिक लैंडर को उनका प्रशस्ति पत्र पढ़ने को कहा गया था।

यह आयोजन कोल्ड हार्बर स्प्रिंग लेबोरेटरी में जीनोम्स बैठक के दौरान किया गया था। विडंबना यह है कि वॉटसन इस लेबोरेटरी के निदेशक थे और 2007 में उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया था। कारण था कि उन्होंने एक ब्रिटिश अखबार में यह बयान दिया था कि अश्वेत लोग बौद्धिक दृष्टि से गोरों से कमतर होते हैं।

यह बात आम तौर पर ज्ञात नहीं है कि वॉटसन के विचार कितने दकियानूसी हैं और वे किस अक्खड़ ढंग से अपने विचारों को व्यक्त करते रहे हैं। वास्तव में वॉटसन शुरू से ही विवादों में रहे हैं। 1962 में उन्हें फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किन्स के साथ संयुक्त रूप से नोबेल मिला था। नोबेल की घोषणा होने से पहले रोज़लिंड फ्रेंकलिन का निधन हो चुका जिनका योगदान इस कार्य में बहुत महत्वपूर्ण रहा था। नोबेल पुरस्कार मरणोपरांत नहीं दिया जाता किंतु वॉटसन ने जिस ढंग से फ्रेंकलिन के योगदान को कम करके बताया था, उसकी काफी आलोचना हुई थी।

वॉटसन यह भी कह चुके हैं कि भूमध्य रेखा के आसपास तेज़ धूप के कारण यौन इच्छाएं बढ़ जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि अफ्रीका के लोगों की बुद्धि वास्तव हमारे जैसी है ही नहीं। वॉटसन के नस्लवादी, लिंगवादी विचारों से विज्ञान जगत परिचित रहा है। इसलिए जब उनकी सालगिरह पर उनका गुणगान किया गया तो सोशल मीडिया उबल पड़ा। परिणाम यह हुआ कि एरिक लैंडर को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। (स्रोत फीचर्स)

नोट : यह लेख वेबसाइट पर 7 जून 2018 तक ही उपलब्ध रहेगा|

पुरामानव मस्तिष्क बनाने के प्रयास

धुनिक मानव होमो सेपिएन्स प्रजाति में आते हैं। मानवों के कई सगे सम्बंधी रहे हैं जो समय के साथ विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से एक है निएंडर्थल। वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि निएंडर्थल मानव का मस्तिष्क प्रयोगशाला में बनाकर देखा जाए कि उनके मस्तिष्क और आधुनिक मानव के मस्तिष्क में किस तरह के अंतर रहे होंगे।

दरअसल, वैज्ञानिकों के पास निएंडर्थल मानव का आनुवंशिक पदार्थ डीएनए उसके जीवाश्मों से उपलब्ध है। इससे पहले जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर स्वांते पाबो के नेतृत्व में 2010 में निएंडर्थल मानव का पूरा आनुवंशिक सूत्र (यानी जीनोम) पढ़ा जा चुका है। डीएनए से ही निर्धारित होता है कि किसी जीव, उसके अंगों और ऊतकों की संरचना कैसी होगी।

मस्तिष्क निर्माण का वर्तमान प्रयोग भी इसी प्रयोगशाला में होने वाला है। मगर इससे पहले पाबो की टीम ने निएंडर्थल में खोपड़ी और चेहरे के विकास के लिए ज़िम्मेदार जीन को चूहों में प्रत्यारोपित किया था और निएंडर्थल के दर्द संवेदना के जीन्स को मेंढक के अंडों में प्रविष्ट कराया था। मकसद यह देखना था कि क्या निएंडर्थल की दर्द संवेदना का तंत्र मनुष्यों से भिन्न है और क्या उनकी दर्द सहने की क्षमता भी अलग थी।

अब यही टीम निएंडर्थल के मस्तिष्क विकास से सम्बंधित जीन्स को मनुष्य की स्टेम कोशिकाओं में प्रविष्ट कराएगी। यानी इन स्टेम कोशिकाओं में जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीकों से निएंडर्थल के जीन्स जोड़े जाएंगे। अब इनसे मस्तिष्क का विकास तो नहीं होगा (जो सोच सके या महसूस कर सके) किंतु मस्तिष्क के ऊतकों का विकास होगा। ऐसे ऊतकों को अंगाभ या ऑर्गेनॉइड कहते हैं।

इस तरह विकसित ऑर्गेनॉइड्स की मदद से वैज्ञानिक निएंडर्थल और आधुनिक मनुष्य की तंत्रिकाओं के कामकाज में अंतर समझ सकेंगे और यह देख पाएंगे कि आधुनिक मनुष्य संज्ञान के मामले में इतने खास क्यों हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट : यह लेख वेबसाइट पर 7 जून 2018 तक ही उपलब्ध रहेगा|