प्राचीन पक्षियों की चोंच का रहस्य

गभग 9 करोड़ वर्ष पूर्व पाए जाने वाले समुद्री पक्षी इकथायोर्निस और आजकल के आधुनिक पक्षियों के शरीर की बनावट काफी मेल खाती है। इसमें एक विचित्र बात यह भी है कि इसका शरीर तो आधुनिक पक्षियों के समान है लेकिन इसके थूथन (स्नाउट) में डायनासौर के समान दांत थे। इकथायोर्निस पक्षी का सबसे पहला जीवाश्म 1870 में कैंसास में पाया गया था। शुरुआत में पुरातत्व विज्ञानियों को लगा था कि यह जीवाश्म एक जीव का नहीं बल्कि दो जीवों का है। इसका धड़ तो किसी छोटे से पक्षी का है और जबड़ा किसी समुद्री सरिसृप का। लेकिन और अधिक खुदाई के बाद मालूम चला कि यह जीवाश्म एक ही जीव का है। इस जीव के बारे में चार्ल्स डारविन ने कहा था कि यह जैव विकास का एक उम्दा प्रमाण है।

इस जीवाश्म में ऊपरी जबड़ा मौजूद नहीं था और निचला जबड़ा किसी डायनासौर के जबड़े के समान नज़र आता है। इससे पुरातत्व विज्ञानियों ने यह अनुमान लगाया था कि प्राचीन पक्षियों का ऊपरी जबड़ा रीढ़धारी जीवों की तरह स्थिर रहा होगा।

वर्ष 2014 में कैंसास के पुराजीव वैज्ञानिकों को इकथायोर्निस का एक और जीवाश्म मिला। उन्होंने इसे येल विश्वविद्यालय की भर्त-अंजन भुल्लर और उनके साथियों के साथ साझा किया। इस बार जीवाश्म को चट्टान में से निकालने की बजाय शोधकर्ताओं ने मौके पर ही पूरे चूना पत्थर का सीटी स्कैन किया। इसके साथ ही उन्होंने संग्रहालय से तीन पूर्व अपरिचित नमूनों का स्कैन भी किया और सभी स्कैन को सम्मिलित करने के बाद इकथायोर्निस की खोपड़ी का एक मॉडल तैयार किया गया। इसके बाद 1870 में पाए गए जीवाश्म की दोबारा जांच की गई। जीवाश्म के साथ संग्रहित कुछ अज्ञात टुकड़ों का स्कैन करने पर मालूम चला कि ये टुकड़े ऊपरी थूथन की वे हड्डियां हैं जो नए नमूनों में मौजूद नहीं थीं।

त्रि-आयामी मॉडल तैयार करने के बाद समझ आया कि इकथायोर्निस आधुनिक चिड़िया और डायनासौर के बीच की कड़ी है। डायनासौर जैसे दांत होने के बावजूद इकथायोर्निस की हुकनुमा चोंच थी और वह आजकल के पक्षियों की तरह ऊपरी और निचले दोनों जबड़ों को अलग-अलग हिला सकता था।

शोधकर्ताओं का मानना है कि चोंच भी ठीक उसी समय विकसित हुई होगी जिस समय पंख विकसित हुए होंगे। एक कुशल जबड़े से खुद के पंख संवारने के साथ चिमटी जैसी पकड़ बनाने में मदद भी मिलती होगी। (स्रोत फीचर्स

नोट : यह लेख वेबसाइट पर 7 जून 2018 तक ही उपलब्ध रहेगा|

पुरामानव मस्तिष्क बनाने के प्रयास

धुनिक मानव होमो सेपिएन्स प्रजाति में आते हैं। मानवों के कई सगे सम्बंधी रहे हैं जो समय के साथ विलुप्त हो चुके हैं। इनमें से एक है निएंडर्थल। वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि निएंडर्थल मानव का मस्तिष्क प्रयोगशाला में बनाकर देखा जाए कि उनके मस्तिष्क और आधुनिक मानव के मस्तिष्क में किस तरह के अंतर रहे होंगे।

दरअसल, वैज्ञानिकों के पास निएंडर्थल मानव का आनुवंशिक पदार्थ डीएनए उसके जीवाश्मों से उपलब्ध है। इससे पहले जर्मनी के मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर स्वांते पाबो के नेतृत्व में 2010 में निएंडर्थल मानव का पूरा आनुवंशिक सूत्र (यानी जीनोम) पढ़ा जा चुका है। डीएनए से ही निर्धारित होता है कि किसी जीव, उसके अंगों और ऊतकों की संरचना कैसी होगी।

मस्तिष्क निर्माण का वर्तमान प्रयोग भी इसी प्रयोगशाला में होने वाला है। मगर इससे पहले पाबो की टीम ने निएंडर्थल में खोपड़ी और चेहरे के विकास के लिए ज़िम्मेदार जीन को चूहों में प्रत्यारोपित किया था और निएंडर्थल के दर्द संवेदना के जीन्स को मेंढक के अंडों में प्रविष्ट कराया था। मकसद यह देखना था कि क्या निएंडर्थल की दर्द संवेदना का तंत्र मनुष्यों से भिन्न है और क्या उनकी दर्द सहने की क्षमता भी अलग थी।

अब यही टीम निएंडर्थल के मस्तिष्क विकास से सम्बंधित जीन्स को मनुष्य की स्टेम कोशिकाओं में प्रविष्ट कराएगी। यानी इन स्टेम कोशिकाओं में जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीकों से निएंडर्थल के जीन्स जोड़े जाएंगे। अब इनसे मस्तिष्क का विकास तो नहीं होगा (जो सोच सके या महसूस कर सके) किंतु मस्तिष्क के ऊतकों का विकास होगा। ऐसे ऊतकों को अंगाभ या ऑर्गेनॉइड कहते हैं।

इस तरह विकसित ऑर्गेनॉइड्स की मदद से वैज्ञानिक निएंडर्थल और आधुनिक मनुष्य की तंत्रिकाओं के कामकाज में अंतर समझ सकेंगे और यह देख पाएंगे कि आधुनिक मनुष्य संज्ञान के मामले में इतने खास क्यों हैं। (स्रोत फीचर्स)

नोट : यह लेख वेबसाइट पर 7 जून 2018 तक ही उपलब्ध रहेगा|