विख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई, जयंत नार्लीकर, एम. जी. के. मेनन, आसिमा चटर्जी, एम. एस. स्वामीनाथन, के. कस्तूरीरंगन और डी. बालसुब्रमण्यन भारत के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से नवाज़े जा चुके हैं। अब तक 535 वैज्ञानिकों का चयन किया गया है – 519 पुरुष और 16 महिलाएं।
1942 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना के 16 वर्षों बाद 1958 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर की स्मृति में यह पुरस्कार शुरू किया गया था। डॉ. भटनागर को भारत में अनुसंधान प्रयोगशालाओं के संस्थापक के रूप में याद किया जाता है।
इस वर्ष पुरस्कार के छह दशक पूरे हो रहे हैं। यह पुरस्कार प्रति वर्ष 26 सितंबर को सीएसआईआर के स्थापना दिवस पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में प्रदान किया जाता है। प्रत्येक पुरस्कृत वैज्ञानिक को पांच लाख रुपए नकद, प्रशस्ति-पत्र और स्मृति चिन्ह प्रदान किए जाते हैं। पुरस्कार विज्ञान की 7 शाखाओं में दिया जाता है – जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित, चिकित्सा विज्ञान, भौतिक शास्त्र तथा पृथ्वी, वायुमंडल, महासागर एवं खगोल विज्ञान।
प्रथम भटनागर पुरस्कार भौतिक विज्ञान में डॉ. के. एस. कृष्णन को दिया गया था। उन्होंने नोबेल विजेता वैज्ञानिक सी. वी. रमन के साथ ‘रमन प्रभाव’ पर शोध किया था। भौतिक शास्त्र में 1958 से 2017 के दौरान 96 भौतिक वैज्ञानिकों को सम्मानित किया जा चुका है। चिकित्सा विज्ञान पुरस्कार की स्थापना 1961 में की गई और प्रथम पुरस्कार ह्मदय-रक्त संचार औषधि विज्ञान में विशेष योगदान के लिए डॉ. राम बिहारी अरोरा को प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के लिए 2017 तक 61 वैज्ञानिकों का चयन किया गया। गणित विज्ञान में 1959 में पुरस्कार आरंभ हुआ और अभी तक 67 गणितज्ञ सम्मानित हो चुके हैं। प्रथम पुरस्कार नंबर थ्योरी में कार्य के लिए के. चन्द्रशेखर को मिला था।
इंजीनियरिंग विज्ञान में पुरस्कार 1960 में शुरु हुआ और पहला पुरस्कार नाभिकीय वैज्ञानिक एच. एन. सेठना को दिया गया। अभी तक यह सम्मान 77 व्यक्तियों को मिल चुका है। रसायन विज्ञान में पुरस्कार 1960 में स्थापित किया गया और टी. आर. गोविंदाचारी को सम्मानित किया गया। लगभग छह दशकों के दौरान 92 वैज्ञानिक यह सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। जीव विज्ञान विषय में 1960 में भटनागर पुरस्कार शुरू हुआ और प्रथम पुरस्कार वनस्पति विज्ञानी टी. एस. सदाशिवन को दिया गया। पुरस्कार की स्थापना से लेकर अभी तक 95 वैज्ञानिक सम्मानित हो चुके हैं। भू विज्ञान, वायुमंडल, महासागर और खगोल विज्ञान में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए 1972 में पुरस्कार आरंभ हुआ। प्रथम पुरस्कार के लिए चुने जाने का सम्मान प्रोफेसर के. नाहा को प्राप्त हुआ। अभी तक 47 वैज्ञानिकों को यह सम्मान मिल चुका है।
नौ वैज्ञानिक मध्यप्रदेश से
पुरस्कार की शुरुआत से लेकर अब तक सम्मानित 535 वैज्ञानिकों में से नौ वैज्ञानिक ऐसे हैं, जिनका किसी-न-किसी रूप में मध्यप्रदेश से सम्बंध रहा है। 1974 में प्लाज़्मा भौतिकी में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत डॉ. एम. एस. सोढ़ा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर और बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति रह चुके हैं। डॉ. जे. जी. नेगी को 1980 में पृथ्वी विज्ञान में विशेष योगदान के लिए भटनागर पुरस्कार मिला था। नेगी ने अपने कैरियर की शुरुआत होल्कर साइंस कालेज, इंदौर से व्याख्याता के रूप में की थी। बाद में सीएसआईआर की हैदराबाद स्थित एनजीआरआई प्रयोगशाला में वैज्ञानिक नियुक्त रहे। डॉ. नेगी दो बार म. प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक भी रह चुके हैं।
लेज़र विज्ञान विशेषज्ञ डॉ. डी. डी. भवालकर मध्यप्रदेश के सागर में पैदा हुए और उन्होंने यहां के डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। उन्हें 1982 में इंदौर स्थित राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र का संस्थापक निदेशक नियुक्त किया गया। डॉ. भवालकर को 1984 में शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार दिया गया। ग्वालियर में जन्मे डॉ. अजय कुमार सूद को 1990 में भौतिक विज्ञान में नैनो प्रौद्योगिकी में विशिष्ट शोधकार्य के लिए भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया। जबलपुर मेडिकल कालेज से चिकित्सा विज्ञान की उपाधि प्राप्त शशि वाधवा को चिकित्सा विज्ञान में शोध के लिए भटनागर पुरस्कार मिला। डॉ. गया प्रसाद पाल को 1993 में चिकित्सा विज्ञान में विशेष अनुसंधान के लिए पुरस्कृत किया गया। इंदौर में पैदा हुए डॉ. पाल ने यहां के एमजीएम मेडिकल कालेज से चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई की थी।
डॉ. राजीव लक्ष्मण करंदीकर को वर्ष 1999 में गणित में संभाविता सिद्धांत में शोध के लिए भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया था। उन्होंने इंदौर के होल्कर साइंस कालेज से गणित विषय में स्नातक शिक्षा ग्रहण की थी। डॉ. उमेश वाष्र्णेय ने ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की थी, जिन्हें 2001 में आणविक जीव विज्ञान में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया था। प्रो. विनोद कुमार सिंह भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजूकेशन एंड रिसर्च (आइसर) के संस्थापक निदेशक हैं, जिन्हें 2004 में रसायन विज्ञान में शोध के लिए भटनागर पुरस्कार के लिए चुना गया।
सिर्फ 16 महिला वैज्ञानिक
भटनागर पुरस्कार की शुरुआत से लेकर अब तक केवल 16 महिला वैज्ञानिकों का चयन किया गया है। आसिमा चटर्जी, शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार के लिए चयनित पहली महिला वैज्ञानिक थीं। उन्हें 1961 में रसायन विज्ञान में यह सम्मान मिला था। अन्य 15 वैज्ञानिकों में अर्चना शर्मा (वर्ष 1975, जीव विज्ञान), इंदिरा नाथ (1983, चिकित्सा विज्ञान), रामन परिमाला (1987, गणित), मंजू रे (1989, जीव विज्ञान), सुदीप्ता सेनगुप्ता (1991, पृथ्वी, वायुमंडल, महासागर एवं खगोल विज्ञान), शशि वाधवा (1991, चिकित्सा विज्ञान), विजयलक्ष्मी रवींद्रनाथ (1996, चिकित्सा विज्ञान), सुजाता रामदुराई (वर्ष 2004, गणित), रमा गोविंदराजन (2007, इंजीनियरिंग विज्ञान), चारुसीता चक्रवर्ती (2009, रसायन विज्ञान), शुभा तोले (2010, जीव विज्ञान), संघमित्रा बंधोपाध्याय (2010, इंजीनियरिंग विज्ञान), मिताली मुखर्जी (वर्ष 2010, चिकित्सा विज्ञान), यमुना कृष्णन (2013, रसायन विज्ञान) और वी. अशोक वैद्य (2015, चिकित्सा विज्ञान) शामिल हैं।
वर्ष 2010 में चुने गए कुल 9 वैज्ञानिकों में से तीन महिला वैज्ञानिकों की सहभागिता से यह अनुमान व्यक्त किया गया था कि महिला वैज्ञानिकों की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी होगी। परंतु 2011, 2012 और 2014 में किसी भी महिला वैज्ञानिक का चयन नहीं हुआ। एक अध्ययन से पता चला है कि विज्ञान की विभिन्न विधाओं में स्थापित इस राष्ट्रीय पुरस्कार में महिलाओं ने जगह तो बनाई है, लेकिन अभी स्थिति चिंताजनक है।
राज्य सभा में नामजद वैज्ञानिकों में डॉ. शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित व्यक्तियों में आसिमा चटर्जी और डॉ. के. कस्तूरीरंगन शामिल हैं। भटनागर पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिकों की सूची में मराठी और हिंदी के सुप्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक और विज्ञान संचारक जयंत विष्णु नार्लीकर और लंबे समय से अंग्रेज़ी में नियमित रूप से विज्ञान विषय पर लिख रहे डी. बालसुब्रामण्यन शामिल हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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