यह पत्रिका एकलव्य(www.eklavya.in) द्वारा प्रकाशित की जाती है। स्रोत की शुरुआत जनविज्ञान जत्था (1987) से हुई। उस समय समाचार पत्रों में विज्ञान सामग्री काफी कम होती थी। विज्ञान को आम जनता तक पहुंचाने के लिए इसकी ज़रूरत महसूस हुई। क्यूंकि एकलव्य में विज्ञान और शिक्षा से जुड़े लोग हैं और इस विषय में संस्थान काम भी कर रही थी इसलिए स्रोत का प्रकाशन एकलव्य से हुआ। “डेवलपमेंट आल्टर्नेटिव” नामक रिसर्च एजेंसी ने यह बात कही थी कि समाचार पत्रों में विज्ञान सामग्री की पर्याप्त मांग है। इस खुलासे के बाद 1989 में स्रोत पत्रिका की शुरुआत राष्ट्रीय विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी संचार परिषद (डी.एस.टी.) के प्रोजेक्ट के रूप में हुई।
विज्ञानं से जुड़ी जानकारी समाचार पत्रों में भेजी जानी थी इसलिए स्रोत की शुरुआत साप्ताहिक फीचर्स के रूप में हुई। इसमें हर सप्ताह 8 या 12 पृष्ठों की सामग्री लगभग 200 से अधिक समाचार पत्रों को भेजी जाती है। लोगों की विशेष मांग और इन्हें सहेज कर रखने में असुविधा के चलते इन पृष्ठों को जोड़कर मासिक पत्रिका का स्वरूप दिया गया। विद्यालयों, कॉलेजों और पुस्तकालयों में संदर्भ ग्रंथ की तरह इस्तेमाल की ज़रूरत को देखते हुए हर वर्ष की पत्रिकाओं का सजिल्द संस्करण निकाला जाता है।