ऊर्जा के जीवाश्म स्रोतों की समस्याओं से तो सभी परिचित हैं और यह भी भलीभांति पता है कि ये स्रोत जल्दी ही चुक जाएंगे। अत: दुनिया भर में सौर, पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा रुाोतों पर ध्यान केंद्रित हुआ है। सौर ऊर्जा के उपयोग की एक टेक्नॉलॉजी सौर फोटो वोल्टेइक सेल (पीवीसी) है। पीवीसी सौर ऊर्जा को सीधे बिजली में बदल देते हैं। अब चीन अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की तैयारी कर रहा है।
अंतरिक्ष में ऐसे संयंत्र लगाने के कई लाभ हैं। जैसे ये संयंत्र सौर ऊर्जा को पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश से पहले ही ग्रहण कर लेते हैं जिसके चलते वातावरण में बिखरने से पहले ही उसका उपयोग हो सकता है। दूसरा प्रमुख फायदा यह है कि अंतरिक्ष में स्थापित संयंत्रों पर मौसम (बादल) का कोई असर नहीं पड़ेगा। अर्थात ये साल भर बिना रुकावट काम कर सकेंगे।
वैसे तो यह विचार पर दशकों से सामने है और जापान व अमेरिका कोशिश करते रहे हैं कि इसका प्रोटोटाइप बना लें। लेकिन ऐसा संयंत्र काफी वज़नी होगा – वज़न लगभग 1000 टन तक हो सकता है। इतने वज़न को अंतरिक्ष में स्थापित करना इस विचार के क्रियांवयन के मार्ग में प्रमुख बाधा रही है।
चीन ने इसके एक समाधान की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। वह कोशिश कर रहा है कि अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा संयंत्र का 3-डी प्रिंटिंग कर लिया जाए। इस नई तकनीक का उपयोग करने पर एक साथ इतना वज़न ले जाने की ज़रूरत नहीं रहेगी।
चीन के सरकारी मीडिया ने रिपोर्ट किया है कि इस संयंत्र में फोटो वोल्टेइक सेल की मदद से सौर ऊर्जा को ग्रहण किया जाएगा और उसे माइक्रोवेव में बदल दिया जाएगा। फिर संयंत्र के एंटीना की मदद से ये माइक्रोवेव पृथ्वी पर स्थिति स्टेशन पर भेजी जाएंगी जहां इन्हें वापिस विद्युत में तबदील करके बिजली-चालित कारों को चलाने में उपयोग किया जाएगा।
अंतरिक्ष सौर ऊर्जा संयंत्र के विचार का परीक्षण करने के लिए मध्य चीन के चोंगक्विंग में एक प्रोजेक्ट का निर्माण भी शुरू हो चुका है। चीन को उम्मीद है कि 2021 से 2025 के बीच वह कई सारे छोटे या मध्यम आकार के संयंत्र पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर दूर की कक्षा में स्थापित करने में सफल होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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