चीन द्वारा चांग-4 अंतरिक्ष यान के साथ चांद पर भेजे गए ल्यूनर रोवर पर एक जैव मंडल (वज़न 2.6 कि.ग्रा.) भी भेजा गया था जिसमें आलू के बीज, पत्ता गोभी सरीखा एक पौधा और रेशम के कीड़े की इल्लियों के अलावा कुछ कपास के बीज भी थे। कपास के बीज चांद पर भी अंकुरित हुए हालांकि उनके अंकुर पृथ्वी पर तुलना के लिए रखे गए कपास के अंकुरों से छोटे रहे। मगर उल्लेखनीय बात यह मानी जा रही है कि ये बीज यान के प्रक्षेपण, चांद तक की मुश्किल यात्रा को झेलकर चांद के दुर्बल गुरुत्वाकर्षण और वहां मौजूद तीव्र विकिरण के बावजूद पनपे थे। खास बात यह है कि उसी जैव मंडल में अन्य किसी प्रजाति में इस तरह जीवन के लक्षण नज़र नहीं आए थे। किंतु अब कपास के वे अंकुर भी मर चुके हैं।
चांग-4 के प्रोजेक्ट लीडर लिऊ हानलॉन्ग ने इस घटना की व्याख्या करते हुए बताया है कि चांग-4 चांद के दूरस्थ हिस्से पर उतरा है। जैसे ही रात हुई, लघु जैव मंडल का तापमान एकदम कम हो गया। उन्होंने बताया कि जैव मंडल कक्ष के अंदर का तापमान शून्य से 52 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया था। अंदेशा यह है कि तापमान में और गिरावट होगी और यह ऋण 180 डिग्री सेल्सियस तक चला जाएगा। जैव मंडल को गर्म रखने का कोई इंतज़ाम नहीं है।
आम तौर पर पौधों में कम तापमान को झेलने के लिए अंदरुनी व्यवस्थाएं होती हैं। जैसे तापमान कम होने पर पौधों की कोशिकाओं में शर्करा और कुछ अन्य रसायनों की मात्रा बढ़ती है जिसके चलते कोशिकाओं के अंदर पानी के बर्फ बनने का तापमान (हिमांक) कम हो जाता है। इसके कारण कोशिकाओं में पानी बर्फ नहीं बनता अन्यथा यह बर्फ कोशिकाओं को फैलाता है और तोड़ देता है। कुछ अन्य पौधों में कोशिका झिल्लियां सख्त हो जाती हैं जबकि कुछ पौधों में पानी को कोशिका से बाहर निकाल दिया जाता है ताकि बर्फ बनने की नौबत ही न आए।
मगर इन प्रक्रियाओं के काम करने के लिए ज़रूरी होता है कि पर्यावरण से यह संकेत मिलता रहे कि ठंड आ रही है। मगर यदि तापमान अचानक कम हो जाए तो ये व्यवस्थाएं पौधे को बचा नहीं पातीं। इसलिए यकायक पाला पड़े तो पृथ्वी की ठंडी जलवायु वाले पौधे भी बच नहीं पाते। कपास तो गर्म जलवायु का पौधा है। और चांद पर जो ठंड आई होगी वह धीरे–धीरे जाड़े का मौसम आने जैसा कदापि नहीं था। चांद पर दिन के समय (वहां का दिन हमारे 13 दिन के बराबर होता है) का तापमान तो 100 डिग्री सेल्सियस (पानी के क्वथनांक) तक हो जाता है जबकि रात में यह ऋण 173 डिग्री तक गिर जाता है।
तो ऐसा लगता है कि यह शीत लहर कपास की क्षमता से बाहर थी। पहले तो कोशिकाओं का पानी बर्फ बन गया होगा, जिसने उन्हें अंदर से फोड़ दिया होगा। फिर कोशिकाओं के बीच के पानी का नंबर आया होगा जिसने पूरे अंकुर को नष्ट कर दिया होगा। हानलॉन्ग के मुताबिक अब यह प्रयोग समाप्त माना जाना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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