यदि आप किसी ऐसे स्थान पर रहते हैं जहां कृत्रिम प्रकाश कम या नदारद है, तो अंधेरी रात के साफ आसमान में आपको एक बादली पट्टी सी दिखेगी। ज़ाहिर है प्राचीन काल में यह साफ नज़र आती होगी। यही आकाशगंगा है। हमारी आकाशगंगा एक निहारिका है जो तारों, सुपरनोवा, नेबुला, ऊर्जा और अदृश्य पदार्थ से भरी है जिसके कई पहलू वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य बने हुए हैं। आकाशगंगा के बारे में कुछ रोचक तथ्य प्रस्तुत हैं।
आकाशगंगा एक प्राचीन नाम है
संस्कृत और कई अन्य इंडो–आर्य भाषाओं में हमारी निहारिका यानी गैलेक्सी को ‘आकाशगंगा’कहते हैं। पुराणों में आकाशगंगा और पृथ्वी पर स्थित गंगा नदी को एक दूसरे का जोड़ा माना जाता था और दोनों को पवित्र माना जाता था। आकाशगंगा को ‘क्षीर’ (यानी दूध) भी कहा गया है। भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी कई सभ्यताओं को आकाशगंगा दूधिया लगी। ‘गैलेक्सी’शब्द का मूल यूनानी भाषा का ‘गाला’शब्द है, जिसका अर्थ भी दूध होता है। संस्कृत की तरह फारसी भी एक इंडो–ईरानी भाषा है, इसलिए उसका ‘दूध’के लिए शब्द संस्कृत के ‘क्षीर’से मिलता–जुलता सजातीय शब्द ‘शीर’है और आकाशगंगा को ‘राह–ए–शीरी’कहा जाता है। अंग्रेज़ी में आकाशगंगा को ‘मिल्की वे’कहते हैं। यह नाम यूनानियों से प्राप्त हुआ है। एक दंतकथा के मुताबिक शिशु हरक्युलिस को देवी हेरा सोते हुए स्तनपान करा रही है। जब वह जागती है तो स्तन का दूध आसमान में फैल जाता है। इसे ‘मिल्की वे’कहा जाने लगा।
आकाशगंगा में कितने तारे हैं
तारों की गणना एक थकाऊ काम है। खगोलविदों के बीच इसके तरीकों को लेकर काफी बहस है। दूरबीन से हमें आकाशगंगा में केवल सबसे चमकीले तारे दिखते हैं, जबकि अधिकांश तारे तो गैस और धूल में ओझल हैं। आकाशगंगा में तारासंख्या का अनुमान लगाने का एक तरीका यह है कि यह देखा जाए कि इसके भीतर तारे कितनी तेज़ी से परिक्रमा कर रहे हैं। इससे आकाशगंगा में गुरुत्वाकर्षण खिंचाव का अंदाज़ा लगेगा। और गुरुत्वाकर्षण से आकाशगंगा के द्रव्यमान की गणना की जा सकती है। फिर इस द्रव्यमान में एक औसत तारे के द्रव्यमान से भाग देकर तारों की संख्या का अनुमान किया जा सकता है। लेकिन इथाका कॉलेज, न्यूयॉर्क के खगोल शास्त्री डेविड कॉर्नराइश के अनुसार यह एक अनुमान भर है। सितारों की साइज़ में बहुत विविधता होती है, और अनुमान लगाने में कई मान्यताएं लेनी होती हैं।
युरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी के गैया उपग्रह ने आकाशगंगा में 1 अरब तारों का स्थान निर्धारण किया है, और वैज्ञानिकों का मानना है कि यह कुल संख्या का एक प्रतिशत है। तो शायद आकाशगंगा में 100 अरब तारे हैं।
आकाशगंगा का वज़न
तारासंख्या के समान, खगोलविद आकाशगंगा के वज़न को लेकर भी अनिश्चित हैं। विभिन्न अनुमान सूर्य के द्रव्यमान से 700 अरब गुना से लेकर 20 खरब गुना तक है। टक्सन में एरिज़ोना विश्वविद्यालय की खगोलविद एकता पटेल के अनुसार, आकाशगंगा का अधिकांश द्रव्यमान, लगभग 85 प्रतिशत,अदृश्य पदार्थ (डार्क मैटर) के रूप में है। इस डार्क मैटर से प्रकाश नहीं निकलता और इसलिए इसका सीधे अवलोकन करना असंभव है। उन्होंने हाल में इस बात का अध्ययन किया है कि हमारी विशालकाय आकाशगंगा आसपास की छोटी निहारिकाओं पर कितना गुरुत्वाकर्षण बल लगाती है। इसके आधार पर उनका अनुमान है कि आकाशगंगा सूर्य से 960 अरब गुना भारी है।
यह ब्राहृांड के खाली स्थान में है
कई अध्ययनों से यह मालूम चला है कि हम इस ब्राहृांड के एक वीरान कोने में जी रहे हैं। दूर से, ब्राहृांड की संरचना एक विशाल ब्राहृांडीय जाल की तरह दिखती है, जिसमें ज़्यादातर खाली जगह (रिक्तियां) है। आकाशगंगा केबीसी रिक्ति में स्थित है। इसका यह नाम तीन खगोलविदों कीनन, बर्जर और काउवी के नाम पर रखा गया था जिन्होंने इसकी खोज की थी। पिछले साल एक और टीम ने इस बात की पुष्टि कि हम एक बड़े, खाली क्षेत्र में तैर रहे हैं।
आकाशगंगा के केंद्र में ब्लैक होल
हमारी आकाशगंगा के केंद्र में एक विशाल ब्लैक होल है, जो सूरज से 40 गुना वज़नी है। वैज्ञानिकों ने इस ब्लैक की उपस्थिति का अंदाज़ा आकाशगंगा के तारों के परिक्रमा पथ के आधार पर लगाया है क्योंकि वे देख सकते हैं कि ये तारे आकाशगंगा के केंद्र में एक निहायत भारी–भरकम पिंड की परिक्रमा कर रहे हैं जो दिखाई नहीं देता। लेकिन हाल ही में, खगोलविद ब्लैक होल के आसपास के वातावरण, जो गैस और धूल से भरा हुआ है, की एक झलक पाने के लिए कई रेडियो दूरबीनों के अवलोकनों का मिला–जुला अध्ययन कर रहे हैं। इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप नाम के इस प्रोजेक्ट की मदद से आने वाले महीनों में ब्लैक होल के किनारे की प्रारंभिक छवियां प्राप्त होने की उम्मीद है।
छोटी निहारिकाएं आकाशगंगा की परिक्रमा करती हैं और कभी–कभी इससे टकरा भी जाती हैं
युरोपीय दक्षिणी वेधशाला के अनुसार, जब पुर्तगाली खोजकर्ता फर्डिनेंड मेजिलेन 16 वीं शताब्दी में दक्षिणी गोलार्ध की समुद्री यात्रा पर थे, तब उन्होंने रात में आकाश में तारों के वृत्ताकार झुंड देखे। ये झुंड वास्तव में छोटी–छोटी निहारिकाएं हैं जो हमारी आकाशगंगा की परिक्रमा ठीक उसी तरह करती हैं जैसे ग्रह किसी तारे के चारों ओर चक्कर काटते हैं। इन्हें छोटे और बड़े मेजेलिनिक बादल कहते हैं। ऐसी कई छोटी–छोटी निहारिकाएं आकाशगंगा की परिक्रमा करती हैं और कभी–कभी वे हमारी विशाल आकाशगंगा में समा जाती हैं।
आकाशगंगा ज़हरीले ग्रीस से भरी है
हमारी आकाशगंगा में तारों के बीच ज़्यादातर खाली जगह में ग्रीस तैर रहा है। कुछ तैलीय कार्बनिक अणु (जो एलिफेटिक कार्बन यौगिक होते हैं) कुछ विशेष प्रकार के तारों में उत्पन्न होते हैं और फिर अन्तर्तारकीय अन्तरिक्ष में रिस जाते हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि आकाशगंगा के अन्तर्तारकीय कार्बन में से एक चौथाई से आधे तक यह ग्रीस जैसा पदार्थ हो सकता है। यह मात्रा पहले मान्य मात्रा की तुलना में पांच गुना अधिक है। कार्बन सजीवों की एक आवश्यक निर्माण इकाई है। पूरी आकाशगंगा में इसका बहुतायत में मिलना अन्य तारा प्रणालियों में जीवन की सम्भावना जताता है।
आकाशगंगा 4 अरब वर्षों में अपने पड़ोसी से टकराने वाली है
हमारी आकाशगंगा शाश्वत नहीं है। खगोलविदों को यह पता है कि वर्तमान में हम अपने पड़ोसी, एंड्रोमिडा निहारिका की ओर लगभग 400,000 कि.मी./घंटा की गति से बढ़ रहे हैं। अधिकांश शोध से मालूम चला है कि ऐसी दुर्घटना के समय अधिक विशाल एंड्रोमिडा हमारी आकाशगंगा को निगल कर खुद जीवित रहेगी। लेकिन हाल ही में खगोलविदों ने बताया है कि एंड्रोमिडा मात्र लगभग 800 अरब सूर्य के बराबर है। यानी इसका द्रव्यमान आकाशगंगा के द्रव्यमान के बराबर है। तो कौन–सी निहारिका इस दुर्घटना में बची रहेगी यह एक खुला सवाल है।
हमारी पड़ोसी निहारिका के तारे आकाशगंगा के करीब आ रहे हैं
लगता है निहारिकाएं तारों का आदान–प्रदान भी करती हैं। शोधकर्ता हाल ही में तेज़ गति वाले तारों की खोज कर रहे थे, जो आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ब्लैक होल से संपर्क के बाद तेज़ गति से बाहर निकल जाते हैं। लेकिन जो कुछ सामने आया वह चौंकाने वाला है। हमारी आकाशगंगा से दूर जाने की बजाय, शोधकर्ताओं द्वारा देखे गए अधिकांश तेज़ तारे हमारी ओर बढ़ रहे थे। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के मंथली नोटिसेस में प्रकाशित रिपोर्ट में लेखकों का सुझाव है कि ये अजीब तारे बड़े मेजेलिनिक क्लाउड या किसी दूरस्थ निहारिका से आए हो सकते हैं।
आकाशगंगा से निकलने वाले रहस्यमय बुलबुले
यदि आपको अचानक पता चले कि आपके घर में, जिसे आप न जाने कितनी बार देखते होंगे, उसमें एक हाथी है, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? 2010 में वैज्ञानिकों के साथ कमोबेश ऐसा ही हुआ था। जब उन्होंने आकाशगंगा के ऊपर और नीचे 25,000 प्रकाश–वर्ष जितनी विशालकाय संरचना को देखा जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। जिस दूरबीन से इन्हें देखा गया था उसी के नाम पर इन्हें ‘फर्मी बुलबुले’नाम दिया गया। खगोलविद इन गामा–रे–उत्सर्जक पिंडों का स्पष्टीकरण करने में असफल रहे हैं। पिछले साल, एक टीम ने ऐसे प्रमाण एकत्रित किए थे जो दर्शाते थे कि ये बुलबुले 60 से 90 लाख साल पहले एक ऊर्जाजनक घटना के बाद उत्पन्न हुए थे। उस घटना में आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ब्लैक होल ने भारी मात्रा में पदार्थ (गैस और धूल) निगल लिया था और फिर ये विशाल चमकते बादल उगले थे।
हमारी आकाशगंगा पर ब्राहृांड के दूसरी ओर से विचित्र ऊर्जा पल्स की बौछार हो रही है
पिछले एक दशक में, खगोलविद सुदूर ब्राहृांड से आने वाली प्रकाश की विचित्र कौंध देख रहे हैं। इन रहस्यमय संकेतों पर कोई सहमति नहीं बन पाई है। 10 से अधिक वर्षों तक उनके बारे में जानने के बावजूद, शोधकर्ता ऐसे केवल 30 कौंध देख पाए थे। लेकिन एक हालिया अध्ययन में, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने 20 और चमक देखीं। हालांकि वे अभी भी अजीब चमक की उत्पत्ति नहीं जानते, लेकिन टीम यह निर्धारित करने में सफल रही है कि इस प्रकाश ने कई अरब प्रकाश–वर्ष गैस और धूल से होकर यात्रा की थी, जिससे पता चलता है कि ये काफी दूर से आ रही है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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