लंबी उम्र सभी चाहते हैं। महात्मा गांधी ने 125 साल तक जीने की कामना की थी। उनकी इस कामना के पीछे उनके अनगिनत उद्देश्य थे, जिन्हें वे जीते जी पूरा करना चाहते थे। अब औसत आयु लगातार बढ़ रही है और वैज्ञानिक भी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने के प्रयास में जुटे हैं। विज्ञान की एक नई शाखा के तौर पर उभरा है जरा विज्ञान यानी जेरोंटोलॉजी। इसके तहत करोड़ों डॉलर खर्च कर ऐसे जीन तलाशे जा रहे हैं, जो उम्र को नियंत्रित करते हैं।
वैज्ञानिकों ने एज-1, एज-2, क्लोफ-2 जैसे जींस का पता भी लगा लिया है। वैज्ञानिकों ने युवा और अधेड़ लोगों के लाखों जीनोम को स्कैन कर पता लगाने की कोशिश की है कि शरीर पर कब उम्र का असर दिखने लगता है। सेल्फिश जीन किताब के लेखक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड डॉकिंस कहते हैं कि 2050 तक उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने का सूत्र हमारे पास होगा। स्टेम सेल, दी ह्यूमन बॉडी शॉप और जीन थेरपी के ज़रिए इंसान की उम्र को 150 साल से भी अधिक बढ़ाना संभव होगा। एस्टेलास ग्लोबल रीजनरेटिव मेडिसिन के अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट लेंज़ा भी ऐसा मानने वालों में से हैं।
अपना देश आयुष्मान भव, चिरंजीवी भव, जीते रहो जैसे आशीर्वादों से भरा पड़ा है। पता नहीं ऐसे आशीर्वादों के कारण या किसी और कारण से औसत आयु लगातार बढ़ रही है। 1990 में दुनिया की औसत आयु 65.33 साल थी जो आज बढ़कर 71.5 साल हो गई है। इस दौरान पुरुषों की औसत आयु 5.8 जबकि महिलाओं की 6.6 साल बढ़ी। जब औसत आयु बढ़ रही है तो 100 पार लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। शतायु होना अब अपवाद नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 12 हज़ार से अधिक ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र 100 के पार है और 2050 तक ऐसे लोगों की तादाद छह लाख तक हो जाएगी। जापान इस मोर्चे पर दुनिया का सबसे अव्वल देश है। वहां के गांवों में दो–चार शतायु लोगों का मिलना आम बात है। जापान के सरकारी स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक 2014 में 58,820 लोग 100 से अधिक उम्र वाले थे। ऐसा नहीं कि जापान पहले से ही ऐसे बूढ़ों का देश रहा है। 1963 में जब वहां इस तरह की गणना शुरू हुई थी, केवल 153 लोग ही ऐसे मिले थे।
दुनिया भर में बढ़ रही औसत आयु और 100 पार के बूढ़ों की तादाद साफ–साफ इशारा करती है कि जीवन प्रत्याशा के मोर्चे पर हम आगे बढ़ रहे हैं। इसका सर्वाधिक श्रेय जाता है स्वास्थ्य़ सुविधाओं में बढ़ोतरी और सेहत के प्रति लोगों की बढ़ती जागरूकता को। अभी अपने देश में पुरुषों की औसत उम्र 64 और महिलाओं की 68 वर्ष है। पिछले 40 सालों में पुरुषों और महिलाओं की औसत उम्र क्रमश: 15 व 18 साल बढ़ी है। जीवन प्रत्याशा को लेकर गौरतलब बात है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज़्यादा साल तक जीती हैं। यह रुझान बना रहा तो 2050 तक 100 के पार जीने वालों में महिला–पुरुष अनुपात 54:46 का होगा। यकीनन जीने के मोर्चे पर महिलाओं की जैविक क्षमता पुरुषों से अधिक है।
ढलती उम्र में सक्रियता
रिटायरमेंट की उम्र के बाद ज़्यादातर लोगों की शारीरिक क्षमता का ग्राफ तेज़ी से नीचे गिरता है। वैसे अब देखने को मिल रहा है कि रिटायरमेंट के बाद लोगों ने नए सिरे से खुद को किसी काम से जोड़ा। दरअसल रिटायर होने के बाद भी करीब 20-25 साल का जीवन लोगों के पास होता है। इस दौरान खुद को काम से जोड़े रखना जीवन के प्रति न्याय ही है। ऑस्ट्रेलिया जैसे देश ने तो बढ़ती उम्र की सक्रियता को समझकर मई 2014 में एक कानून पारित कर दिया जिसके मुताबिक 2035 से रिटायरमेंट की उम्र 70 साल हो जाएगी। वहां की सरकार बुज़ुर्गों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहन और आर्थिक लाभ देती है। भारत और चीन जैसे देश को अभी से इस दिशा में सोचना होगा, क्योंकि आज ये युवाओं के देश हैं, लेकिन 20-25 साल के बाद ये बूढ़ों के देश होंगे।
कुछ अनुमानित नुस्खे
उम्र को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ पर अगर सबसे ज्यादा गंभीरता से रिसर्च हो रहा है तो वह है गेटो नामक पौधा। जापान के ओकिनावा क्षेत्र में सबसे ज़्यादा शतकवीर रहते हैं। यही इस रिसर्च का आधार बना है। ओकिनावा के रियूक्यूस विश्वविद्यालय में कृषि विज्ञान के प्रोफेसर शिंकिची तवाडा ने दक्षिणी जापान के लोगों की अधिक उम्र का राज़ एक खास पौधे गेटो (AlphiniaZerumbet) को बताया है। गहरे पीले–भूरे रंग के इस पौधे के अर्क से इंसान की उम्र 20 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। तवाडा पिछले 20 साल से अदरक वंश के इस पौधे पर अध्ययन कर रहे हैं। तवाडा ने कीड़ों पर एक प्रयोग में पाया कि गेटो के अर्क की खुराक से उनकी उम्र 22 प्रतिशत बढ़ गई। बड़ी हरी पत्तियों, लाल फलों और सफेद फूलों वाला गेटो का पौधा सदियों से ओकिनावा के लोगों के भोजन का आधार रहा है। अन्य एंटी ऑक्सीडेंट की तुलना में गेटो ज़्यादा प्रभावी पाया गया। अब यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्या गेटो का प्रयोग दुनिया के अन्य हिस्सों के भिन्न परिस्थितियों के लोगों पर करने पर भी इसका परिणाम पहले जैसा रहेगा।
कहां सबसे अधिक बुज़ुर्ग
चीन के हैनान प्रांत के चेंगमाई गांव में दुनिया के सबसे ज्यादा बुज़ुर्ग रहते हैं। यहां 200 लोग ऐसे हैं जो उम्र का शतक लगा चुके हैं। यहां संतरों की खेती खूब होती है। गांव सामान्य गांवों से बड़ा है। यहां की 5,60,00 की आबादी में 200 लोगों ने पूरी सदी देखी है। यहां तीन सुपर बुज़ुर्ग भी हैं। सुपर बुज़ुर्ग यानी 110 वर्ष से अधिक उम्र वाले। दुनिया भर में ऐसे सिर्फ 400 लोग हैं। ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के पति–पत्नी ने अपनी शादी की 90वीं सालगिरह मनाई है। उनके आठ बच्चे, 27 पोते–पोतियां और 23 परपोते–पोतियां हैं। यह बुज़ुर्ग जोड़ा अपने सबसे छोटे बेटे पाल व उसकी पत्नी के साथ रहता है। पाल की मानें तो उनकी इतनी लंबी उम्र का प्रमुख राज़ तनाव मुक्त रहना है। वे कहते हैं कि मैंने उन्हें कभी बहस करते हुए नहीं देखा है। गौर करने वाली बात है कि वे दोनों खाने–पीने की बंदिशों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते। वे हर चीज खाते हैं। बस मात्रा थोड़ी कम होती है। रेड वाइन पति–पत्नी ज़रूर रोज़ाना पीते हैं।
औसत उम्र के मामले में सबसे अव्वल देश के तौर पर जेहन में जापान का नाम आता है। लेकिन इससे भी आगे है मोनैको। यहां की औसत आयु 89.63 साल है। यहां के लोगों की सबसे खास बात यह है कि वे खानपान के प्रति लापरवाह नहीं होते और तनाव बिलकुल नहीं पालते। हरी सब्ज़ी, सूखे मेवे और रेड वाइन का सेवन यहां सबसे ज़्यादा होता है।
जापान में युवा से अधिक बुज़ुर्ग हैं। यहां की औसत आयु 85 के आसपास है। यहां मछली और खास तरह के कंद का सेवन बहुत ही आम है। तेल का प्रयोग बहुत कम है। स्टीम्ड फूड प्रचलन में है। ग्रीन टी के बिना जापानियों की सुबह नहीं होती। रेड मीट, मक्खन, डेयरी उत्पाद के सेवन से बचते हैं।
सिंगापुर दुनिया के सबसे बड़े पर्यटन स्थलों में से है। पर्यटक वहां की चमक दमक देख दंग रह जाते हैं। वहां का खानपान और ज़िंदादिली और पर्यावरणीय चिंता भी ध्यान देने लायक है। वहां के लोग स्वच्छ और स्वस्थ रहने में विश्वास करते हैं। तनावमुक्त जीवन और अच्छे खानपान के कारण ही यहां के लोगों की औसत आयु 84.07 साल है।
फ्रांस के लोग बहुत तंदुरुस्त होते हैं, औसत आयु 81.56 साल है। यहां के लोग कम मात्रा में रेड वाइन का सेवन करते हैं जो कथित रूप से दिल के लिए अच्छी होती है। साथ ही यहां के लोग नियमित रूप से पैदल चलते हैं और तनाव से दूर रहते हैं। इस फैशनपरस्त देश के लोगों की ज़िंदादिली भी मशहूर है। इटली की तरह यहां के आहार में भी ऑलिव ऑयल का भरपूर प्रयोग होता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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