20 सूत्रीय जन स्वास्थ्य चार्टर (20 Point Public Health Charter)

जन स्वास्थ्य अभियान द्वारा विकसित 20 सूत्रीय जन स्वास्थ्य चार्टर में विशिष्ट रूप से निम्नलिखित बीस मांगें रखी गई थीं:

 1. स्वास्थ्य की बात अल्मा अता घोषणा पत्र (1978) में प्रस्तुत समग्र अवधारणा के अनुरूप हो। इसके अनुसार सारे राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में एकीकृत किया जाना चाहिए। फोकस व्यक्ति-आधारित जैव-चिकित्सकीय उपायों की बजाय सामाजिक, पारिस्थितिक व सामुदायिक उपायों पर होना चाहिए।

 2. स्वास्थ्य उपकेंद्रों व पीएचसी में पर्याप्त डॉक्टर्स व सामुदायिक चिकित्सा स्टाफ होगा और इन्हें स्थानीय संस्थाओं के प्रशासनिक व वित्तीय नियंत्रण में रखा जाएगा।

 3. सरकार एक समग्र चिकित्सा सेवा कार्यक्रम के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) का 5 प्रतिशत समर्थन देगी।

 4. सरकारी चिकित्सा संस्थानों के निजीकरण (उपयोगकर्ता शुल्क जैसी व्यवस्थाओं के ज़रिए), पीएचसी को ठेके पर उठाना, सरकारी डॉक्टरों को प्रायवेट प्रैक्टिस की अनुमति देना वगैरह पर रोक लगाई जानी चाहिए।

 5. स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ज़रूरत-आधारित मानव संसाधन योजना बने। चिकित्सा-कर्मियों व डॉक्टरों की स्नातक शिक्षा ज़िला स्तर पर हो तथा अति-विशेषज्ञता की बजाय ज़ोर बुनियादी डॉक्टर तैयार करने पर हो। निजी क्षेत्र में और मेडिकल कॉलेज खोलने पर रोक लगे। सभी चिकित्सा-कर्मियों के लिए एक वर्ष की ग्रामीण पोस्टिंग अनिवार्य हो।

 6. निजी व्यावसायिक चिकित्सा प्रतिष्ठानों की बेलगाम वृद्धि पर रोक लगे। सभी चिकित्सा प्रतिष्ठानों में एकरूप मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाए। समय-समय पर डॉक्टरी पर्चियों के मूल्यांकन की भी व्यवस्था हो।

 7. एक तर्कसंगत दवा-नीति बने जो ज़रूरी दवाइयों के उचित मूल्य व समुचित गुणवत्ता के उत्पादन पर आधारित हो। चार्टर में ऐसी दवा नीति के विभिन्न पहलू स्पष्ट किए गए थे।

 8. चिकित्सा अनुसंधान देश में रुग्णता व मृत्यु के परिदृश्य पर आधारित हो। अनुसंधान के लिए नैतिक मापदंड विकसित किए जाएं।

 9. परिवार का आकार निर्धारित करवाने के लिए प्रोत्साहन व निरुत्साहन समेत सारे दमनपूर्ण तरीके छोड़े जाएं। इसके साथ ही, लोगों, खासकर महिलाओं, को गर्भनिरोधक उपाय उपलब्ध कराए जाएं ताकि वे सोच-समझकर फैसले कर सकें। सुरक्षित गर्भपात की सुविधाएं भी आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए।

10. पारंपरिक, स्थानीय व घरेलू चिकित्सा प्रणालियों को समर्थन दिया जाना चाहिए और साथ ही इनके संदर्भ में पर्याप्त अनुसंधान भी होना चाहिए।

11. स्वास्थ्य सेवा के संदर्भ में एक पारदर्शी व विकेंद्रित निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाए और हर स्तर पर सूचना का अधिकार लागू हो। नीतिगत निर्णयों से पहले सार्वजनिक वैज्ञानिक विचार-विमर्श हो।

12. पारिस्थितिक व सामाजिक उपाय अपनाए जाएं ताकि संक्रामक रोगों के उभार को रोका जा सके।

13. गैर-संक्रामक रोगों (जैसे मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग वगैरह) के त्वरित निदान व उपचार की सुविधाएं चिकित्सा प्रणाली के समस्त उपयुक्त स्तरों पर उपलब्ध हों।

14. महिला-केंद्रित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों जिनमें जेंडर व स्वास्थ्य के मुद्दों, महिलाओं पर काम के तिहरे बोझ, परवरिश को लेकर परिवार और समाज में भेदभाव, तथा महिलाओं के काम के स्वास्थ्य सम्बंधी परिणामों व हिंसा जैसे मुद्दों पर जागरूकता निर्माण पर ध्यान दिया जाए। औपचारिक व अनौपचारिक सभी जगहों पर समस्त कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ व बच्चों की देखभाल की सुविधा हो। विशेष रूप से अकेली महिलाओं, अल्पसंख्यक महिलाओं, भिन्न यौन रुझान वाली महिलाओं और यौनकर्मी महिलाओं पर ध्यान देना होगा। लिंग-आधारित गर्भपात, बच्चियों की शिशुहत्या तथा गर्भधारण से पूर्व लिंग चयन जैसी प्रथाओं के विरुद्ध अभियान चलाए जाने चाहिए व कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

15. बाल केंद्रित पहल के तहत बच्चों के अधिकारों की समग्र संहिता का निर्माण, सारे बच्चों की देखभाल सम्बंधित सेवाओं के लिए पर्याप्त बजट प्रावधान, एकीकृत बाल विकास कार्यक्रम का विस्तार, बच्चों पर अत्याचार, खासकर यौन उत्पीड़न की रोकथाम के उपाय तथा बाल श्रम को समाप्त करना व साथ में सब बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा का प्रावधान अनिवार्य है।

16. व्यावसायिक व पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देते हुए उद्योगों व कृषि में खतरनाक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर रोक तथा चिकित्सा शिक्षा में व्यावसायिक रोगों को महत्व देना, कामगारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी प्रबंधन पर डालना ज़रूरी है।

17. विभिन्न परिस्थितियों (जैसे ट्राफिक, कारखानों, कृषि-कार्यों) में दुर्घटनाओं की संभावना को न्यूनतम करने के उपाय किए जाने चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति रवैये में सामाजिक संरचना की समझ को शामिल करना होगा। मात्र जैव-चिकित्सकीय नज़रिए से आगे जाकर अधिक समग्र नज़रिया अपनाना होगा।

18. बुज़ुर्गों की सेहत की दृष्टि से उनके लिए आर्थिक सुरक्षा, उपयुक्त रोज़गार के अवसर, संवेदनशील स्वास्थ्य सेवा और ज़रूरी होने पर रहवास की व्यवस्था होनी चाहिए। 

19. शारीरिक व मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त लोगों के स्वास्थ्य को समृद्ध करने के लिए ज़रूरी होगा कि उनकी अक्षमताओं की बजाय उनकी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए। उन्हें अलग-थलग करने की बजाय समुदाय में जोड़ना बेहतर होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें शिक्षा व रोज़गार के समान अवसर मिलें और पुनर्वास समेत विशेष स्वास्थ्य देखभाल मिले।

20. ऐसे उद्योगों पर अंकुश लगाना होगा जो व्यसनों और अस्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देते हैं। और व्यसन के शिकार लोगों को लत से मुक्त कराने की सुविधाएं निर्मित करनी होंगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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