वनों की बहाली केवल वृक्षारोपण से संभव नहीं

पेड़ों का अस्तित्व धरती पर लगभग 40 करोड़ वर्षों से है। तब से पेड़ कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर चुके हैं। चाहे वह उल्का की टक्कर हो या शीत युग, पेड़ धरती पर टिके रहे। लेकिन अब उन्हें खतरा इंसानों से है। कृषि (agriculture) के आगमन के बाद से, खेती और मवेशियों के लिए जगह बनाने के लिए बड़ी संख्या में जंगलों (forests) का सफाया किया गया है। पिछले 300 वर्षों में, लगभग 1.5 अरब हैक्टर जंगलों को नष्ट किया जा चुका है जो आज के कुल वन क्षेत्र का 37 प्रतिशत है। 

आम तौर पर यह माना जाता है कि जंगलों की क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण (tree plantation) करके की जा सकती है, और इसे सबसे सरल और सटीक समाधान के तौर पर देखा जाता है। पिछले कुछ दशकों में यह धारणा भी बनी है कि जलवायु परिवर्तन (climate change) को कम करने में पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परंतु, यह बात भी उतनी ही सच है कि बिना किसी ठोस योजना और जानकारी के सिर्फ पेड़ लगाना कई बार पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) को नुकसान पहुंचा सकता है। 

गौरतलब है कि कई वृक्षारोपण परियोजनाओं में सिर्फ एक प्रजाति के पेड़ लगाए जाते हैं, जिसे मोनोकल्चर (monoculture) कहा जाता है। यह पद्धति जैव विविधता (biodiversity) को कम करती है, क्योंकि इस प्रक्रिया में सिर्फ एक प्रजाति के पौधे और उससे जुड़े वन्यजीव और सूक्ष्मजीव ही पनप पाते हैं। एक ही प्रजाति के पेड़ बीमारियों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे कोई बीमारी फैलने पर पूरे जंगल का सफाया हो सकता है। इसके अलावा, कई बार ऐसे पेड़ भी लगाए जाते हैं जो उस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होते, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। 

वनों की बहाली में एक समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत है। जैक रॉबिन्सन अपनी किताब ट्रीवाइल्डिंग (Treewilding) में बताते हैं कि जंगलों की बहाली के लिए सिर्फ पेड़ लगाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनका जीवित रहना और वृद्धि करना भी ज़रूरी है। इसके लिए यह समझना भी आवश्यक है कि कौन-सी प्रजातियां किस क्षेत्र के लिए उपयुक्त हैं, और वे स्थानीय समुदायों (local communities) और वन्यजीवों से किस प्रकार जुड़ी हुई हैं। हलांकि वनों की कटाई को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है, लेकिन इसे कम करने और पौधारोपण को सही दिशा में ले जाने के लिए गहन शोध (research) और नियोजन ज़रूरी है। 

रॉबिन्सन यह भी कहते हैं कि वृक्षारोपण परियोजनाओं को स्थानीय ज्ञान (local knowledge) के आधार पर संचालित किया जाना चाहिए, जिससे न केवल पेड़ लगाए जाएं बल्कि उनकी देखभाल पर भी ध्यान दिया जाए। ऐसा करने से ही युवा पेड़ सही तरीके से बढ़ सकेंगे और दीर्घकालिक लाभ दे सकेंगे। इसमें एक विशेष बात यह है कि प्राकृतिक पुनर्जनन (natural regeneration) यानी किसी वन को अपने आप पुनः विकसित होने देना, जंगलों को बहाल करने का सबसे प्रभावी तरीका है। 

ग्रेट ग्रीन वॉल (Great Green Wall) जैसी कुछ वन बहाली परियोजनाएं काफी उपयोगी रही हैं। इस परियोजना में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में 8000 किलोमीटर लंबी और 15 किलोमीटर चौड़ी पेड़ों की एक दीवार बनाने का प्रयास किया गया है। इसका उद्देश्य रेगिस्तान के फैलाव को रोकना, भूमि की गुणवत्ता सुधारना, और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करना है। इस परियोजना में अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके हैं, लेकिन धन की कमी एक बड़ी चुनौती है। 

इसी प्रकार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की गोंडवाना लिंक परियोजना (Gondwana Link project) 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पुराने जंगलों के बिखरे हुए टुकड़ों को फिर से जोड़ने का प्रयास कर रही है। इसका उद्देश्य उन प्रजातियों की रक्षा करना है जो जंगलों के इन छोटे-छोटे हिस्सों में फंसी हुई हैं और विलुप्त होने की कगार पर हैं। जब अलग-अलग क्षेत्रों की प्रजातियां एक-दूसरे के साथ संपर्क में आती हैं, तो उनकी जेनेटिक विविधता (genetic diversity) में सुधार होता है, जो उन्हें पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में मदद करता है। इस परियोजना के तहत 14,500 हैक्टर भूमि पर पेड़ लगाए जा चुके हैं, और इसे कार्बन क्रेडिट (carbon credit) या कर छूट के रूप में निवेशकों से वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है। 

रॉबिन्सन अपने काम में पारिस्थितिकी (ecology) को समझने के लिए एक नई तकनीक का भी उपयोग कर रहे हैं, जिसे इकोएकूस्टिक्स (ecoacoustics) कहा जाता है। यह विधि वन्यजीवों और पक्षियों की ध्वनियों का उपयोग करके जंगलों की संरचना और उसमें हो रहे परिवर्तनों को समझने का प्रयास करती है। उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे जंगल पुनर्जीवित होते हैं, मिट्टी में छिपे हुए अकशेरुकी जीवों (invertebrates) की संख्या बढ़ती है, जिससे ‘जीवन की एक छिपी हुई ध्वनि’ उत्पन्न होती है। 

रॉबिन्सन की किताब ट्रीवाइल्डिंग पर्यावरण और वन पुनर्स्थापना (forest restoration) पर एक अद्भुत अध्ययन है। यह पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है कि जंगलों के संरक्षण (conservation) के लिए सिर्फ पेड़ लगाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत है जो पारिस्थितिकी, स्थानीय समुदायों, और विज्ञान के गहरे परस्पर सम्बंधों को समझ सके। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.nature.com/w1248/magazine-assets/d41586-024-02834-3/d41586-024-02834-3_27627640.jpg?as=webp

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