हाल ही में स्पेसएक्स कंपनी (SpaceX Company) का फाल्कन रॉकेट (Falcon Rocket) अंतरिक्ष में पर्याप्त ऊंचाई तक नहीं पहुंच सका था। तब 11 जुलाई के दिन इसके द्वारा छोड़े गए 20 स्टारलिंक उपग्रह (Starlink Satellites) यहां-वहां बिखर गए और दो दिन बाद ही वे पृथ्वी के वायुमंडल (Earth’s Atmosphere) में गिरकर भस्म हो गए।
यह तो चलो, दुर्घटना का मामला हो गया लेकिन इस तरह से उपग्रहों को उनकी कक्षा से बाहर करना उनसे निजात पाने का एक नियमित तरीका है ताकि वे अंतरिक्ष में भटकते हुए वहां मलबे (Space Debris) में इज़ाफा न करें। अब आज की स्थिति पर नज़र डालते हैं – कई अंतरिक्ष कंपनियां (Space Companies) हज़ारों उपग्रह कक्षा में स्थापित करने की योजना बना रही हैं। चिंता का विषय यह है कि जब ये उपग्रह बड़ी संख्या में अपना कार्यकाल पूरा कर लेंगे तो क्या होगा।
हाल के अनुसंधान से पता चला है कि ऐसे उपग्रहों से निकले धात्विक कण और गैसें हमारे वायुमंडल के समताप मंडल (Stratosphere) में वर्षों तक बने रह सकते हैं और शायद ओज़ोन (Ozone) के क्षय का कारण बन सकते हैं।
अभी तक उपग्रहों को ठिकाने लगाना कोई चिंता की बात नहीं थी क्योंकि ऐसे उपग्रहों की तादाद बहुत कम थी। प्रति वर्ष करीबन सौ उपग्रहों को उनकी कक्षा से बेदखल किया जाता था। समतापमंडल (Stratosphere) काफी विशाल है – यह धरती से 10 किलोमीटर से लेकर 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला है। लेकिन जब स्पेसएक्स कंपनी ने स्टारलिंक उपग्रहों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उन्हें अंतरिक्ष में भेजना शुरू किया, तो चिंता की स्थिति बनी। आज 6 हज़ार से भी ज़्यादा स्टारलिंक उपग्रह कक्षाओं में चक्कर लगा रहे हैं। कुल कामकाजी उपग्रहों (Operational Satellites) की संख्या तो लगभग 10,000 है। और तो और, स्पेसएक्स ने 30,000 और उपग्रह प्रक्षेपण (Satellite Launch) की अनुमति मांगी है। अन्य भी कहां पीछे रहने वाले हैं। अमेज़ॉन (Amazon) 3200 उपग्रहों के पुंज पर काम कर रहा है जबकि चीन इस अगस्त में 12,000 उपग्रह प्रक्षेपित करेगा। एक अनुमान के मुताबिक जल्दी ही उपग्रह-संचालकों (Satellite Operators) को प्रति वर्ष 10,000 उपग्रहों को ठिकाने लगाना होगा।
एक तुलनात्मक अध्ययन में लिओनार्ड शूल्ज़ और उनके साथियों ने बताया है कि फिलहाल ऐसे उपग्रहों को नष्ट करने पर जो पदार्थ पैदा होता है वह पृथ्वी पर होने वाली कुदरती उल्कापात (Meteor Showers) का मात्र 3 प्रतिशत होता है। लेकिन भविष्य में जब 75,000 उपग्रह कक्षाओं में होंगे तो यह पदार्थ उल्कापात की तुलना में 40 प्रतिशत तक हो जाएगा। एक तथ्य यह भी है कि उल्काओं की अपेक्षा उपग्रह बड़े होते हैं और धीमी गति से जलते हैं। तो उनके द्वारा जनित कणीय पदार्थ कहीं ज़्यादा होगा।
उपग्रह जब वायुमंडल में वापसी करते हैं, तो जो असर समताप मंडल पर होता है, उसकी एक झलक यूएस के नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की रसायन प्रयोगशाला के डैनियल मर्फी तथा उनके साथियों ने पेश की है। नासा (NASA) के आंकड़ों के आधार पर उन्होंने बताया है कि समताप मंडल में गंधकाअम्ल (Sulfuric Acid) की महीन बूंदें तैर रही हैं जिनमें 20 अलग-अलग तत्व मौजूद हैं जो शायद उपग्रहों और रॉकेटों से आए हैं।
चिंता का मसला एल्यूमिनियम (Aluminum) है जो उपग्रहों में प्रयुक्त सबसे आम धातु होती है। यदि यह एल्यूमिनियम ऑक्साइड (Aluminum Oxide) या हायड्रॉक्साइड के रूप में तबदील हो जाए, तो यह हाइड्रोजन क्लोराइड (Hydrogen Chloride) से क्रिया करके एल्यूमिनियम क्लोराइड (Aluminum Chloride) बनाएगा। सूर्य के प्रकाश (Sunlight) के कारण एल्यूमिनियम क्लोराइड आसानी से टूटकर क्लोरीन (Chlorine) उत्पन्न कर सकता है जो ओज़ोन के लिए घातक होगी। इसके अलावा, धात्विक एयरोसॉल (Metallic Aerosols) समतापमंडल के बादलों पर आवेश पैदा कर सकते हैं जो क्लोरीन को मुक्त करके ओज़ोन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
फिलहाल कई अन्य अनजाने असर भी सामने आ रहे हैं। जैसे उपग्रह के पुन:प्रवेश (Re-entry) पर एल्यूमिनियम के जलने की अनुकृति प्रयोगों का निष्कर्ष है कि 250 ग्राम के किसी उपग्रह के चलने पर 30 किलोग्राम एल्यूमिनियम ऑक्साइड नैनो कण (Nano Particles) पैदा होंगे। वर्ष 2022 में 2000 उपग्रहों को कक्षा से अलग किया गया था जिनमें एल्यूमिनियम ऑक्साइड का वज़न 17 टन था। इसी आधार पर देखें तो जब अंतरिक्ष में उपग्रहों के महा-नक्षत्र होंगे तो इसकी मात्रा प्रति वर्ष 360 टन आंकी जा सकती है।
उपग्रहों की बढ़ती संख्या की वजह से कई पर्यावरणीय असर (Environmental Impact) हो सकते हैं। इसके मद्देनज़र विचार करने की ज़रूरत है। जैसे इस बात पर विचार हो सकता है कि उपग्रह किन पदार्थों से बनाए जाएं या यह भी सोचा जा सकता है कि क्या कक्षा में सर्विसिंग (Satellite Servicing) या मरम्मत करके या ईंधन की व्यवस्था करके उपग्रहों का जीवनकाल बढ़ाया जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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