यह बात तो सभी कहते हैं कि जैसा आपका खानपान होगा, वैसा आपका स्वास्थ्य होगा। लेकिन हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि पुत्र-जन्म से पूर्व पिता का खानपान पुत्रों की चयापचय क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
अध्ययनों से यह तो पता था कि माताएं अपनी संतानों में चयापचय सम्बंधी लक्षण हस्तांतरित कर सकती हैं। फिर, 2016 में युनिवर्सिटी ऑफ ऊटा स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रजनन-जीवविज्ञानी क्याई चेन और उनकी टीम ने उच्च वसायुक्त आहार करने वाले नर चूहों की संतानों में चयापचय विकार की समस्या देखी थी। साथ ही पाया था कि माता-पिता के आहार का प्रभाव संतान के जीनोम में नहीं बल्कि उनके ‘एपिजीनोम’ में परिवर्तन के कारण होता है। एपिजीनोम जीन अभिव्यक्ति, विकास, ऊतक विभेदन को विनियमित करने में और जम्पिंग जीन को शांत करने में भूमिका निभाते हैं। जीनोम के विपरीत एपिजीनोम में पर्यावरणीय परिस्थितियों के चलते परिवर्तन हो सकते हैं।
हालिया अध्ययन में हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर, म्यूनिख के शोधकर्ता राफेल टेपरिनो ने नर चूहों को दो हफ्ते तक उच्च वसा वाला आहार खिलाया। पाया गया कि इस आहार के कारण शुक्राणु के माइटोकॉन्ड्रिया में ट्रांसफर आरएनए (tRNA) में परिवर्तन हुए थे। माइटोकॉण्ड्रिय़ा कोशिका को ऊर्जा देते हैं। आहार परिवर्तन का असर माइटोकॉन्ड्रिया के tRNA पर देखा गया जो डीएनए से प्रोटीन में बनने की प्रक्रिया के दौरान बनते हैं।
खासकर, उच्च वसायुक्त भोजन करने वाले चूहों के शुक्राणुओं में tRNA के अंश सामान्य चूहों की अपेक्षा छोटे थे। ऐसे RNA कुछ माइटोकॉन्ड्रियल जीन की गतिविधि को बढ़ा या घटा सकते हैं।
ये परिणाम ठीक ही लगते हैं क्योंकि ऐसा देखा गया है कि उच्च वसा वाला आहार माइटोकॉन्ड्रिया में तनाव पैदा करता है, नतीजतन माइटोकॉन्ड्रिया अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए अधिक RNA बनाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की यह प्रतिक्रिया एक सौदे की तरह होती है। माइटोकॉन्ड्रियल गतिविधि में वृद्धि शुक्राणु को अंडाणु तक पहुंचने के लिए पर्याप्त ऊर्जा देती है, लेकिन साथ में अतिरिक्त माइटोकॉन्ड्रियल RNA भी शुक्राणु से भ्रूण में चले जाते हैं, जिससे भ्रूण को मिलने वाली जानकारी बदल जाती है और उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
अगले चरण में शोधकर्ताओं ने उन चूहों के स्वास्थ्य को देखा जिनके पिता अधिक वसायुक्त भोजन खाते थे। पाया गया कि चूहा संतानों में से लगभग 30 प्रतिशत में चयापचय विकार थे। 3431 मानव संतानों के आंकड़ों के विश्लेषण में पता चला कि उन मानव संतानों में चयापचयी विकार अधिक थे जिनके पिता का वज़न अधिक था।
प्रयोगों से यह भी पता चला कि उच्च वसायुक्त आहार करने वाले चूहों की संतानों में अपने पिता से बहुत अधिक माइटोकॉन्ड्रियल tRNA आ गए थे।
हालांकि इस अध्ययन की एक तकनीकी सीमा है: अनुक्रमण विधि केवल सम्पूर्ण RNA का पता लगा पाती है। इस वजह से, अध्ययन में यह पता नहीं चल सका कि RNA के अंश पिता से भ्रूण में स्थानांतरित हुए थे या नहीं। शोधकर्ता यह मानकर चल रहे हैं कि RNA के अंश भी स्थानांतरित हुए होंगे।
मज़ेदार बात यह है कि चयापचय सम्बंधी समस्याएं पिता से केवल पुत्रों को मिली हैं, पुत्रियों को नहीं। इससे लगता है कि X और Y शुक्राणु में अलग-अलग जानकारी होती है। बहरहाल, X और Y शुक्राणु में ऐसी भिन्नता क्यों होती है, आगे के अध्ययनों के लिए यह एक अच्छा प्रश्न है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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