हमारे पड़ोसी ग्रह शुक्र की सतह का आजकल का तापमान सीसे को भी पिघला सकता है लेकिन अध्ययन बताते हैं कि किसी समय यहां समुद्र लहराते रहे होंगे और वातावरण जीवन के अनुकूल रहा होगा। तो सारा पानी गया कहां? यह एक मुश्किल सवाल रहा है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित हालिया अध्ययन ने पानी के ह्रास की एक ऐसी क्रियाविधि को उजागर किया है जो शुक्र के वायुमंडल में अत्यधिक ऊंचाई पर काम करती है और दुगनी रफ्तार से पानी के ह्रास के लिए ज़िम्मेदार हो सकती है। इसका यह भी मतलब है कि शुक्र ज़्यादा हाल तक जलीय व जीवनक्षम रहा होगा।
दूरबीनों व अंतरिक्ष यानों से प्राप्त आंकड़े शुक्र के वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति दर्शा चुके थे। 1970 के दशक में पायोनीयर वीनस ऑर्बाइटर से शुक्र पर अतीत में समुद्र की उपस्थिति के संकेत मिले थे; वहां के वायुमंडल में हाइड्रोजन के भारी समस्थानिक (ड्यूटीरियम)की उपस्थिति। आगे चलकर किए गए मॉडलिंग से अनुमान लगाया गया था कि किसी समय शुक्र पर इतना पानी थी कि उसकी पूरी सतह पर 3 किलोमीटर गहरी पानी की परत रही होगी।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अरबों वर्ष पूर्व शुक्र ग्रह पर महासागर रहे होंगे, लेकिन ज्वालामुखी गतिविधि और ज़ोरदार ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण संभवत: अधिकांश पानी वाष्पित हो गया होगा। लेकिन शेष बचेे थोड़े से पानी (अंतिम लगभग 100 मीटर की परत) के खत्म होने की व्याख्या नहीं कर सके हैं।
इस नए अध्ययन में एक नई प्रक्रिया – HCO+ क्रियाविधि – पर चर्चा की गई है जो शुक्र के ऊपरी वायुमंडल में चलती है। इसमें सूर्य का प्रकाश न सिर्फ पानी के अणुओं को बल्कि कार्बन डाईऑक्साइड को भी तोड़ देता है। कार्बन डाईऑक्साइड के टूटने से कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है। जलवाष्प और कार्बन मोनोऑक्साइड की परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप HCO+ नामक एक अस्थिर आयन का निर्माण होता है। यह आयन तत्काल विघटित हो जाता है। चूंकि हाइड्रोजन अत्यंत हल्की होती है, वह वायुमंडल से पलायन कर जाती है। यह प्रक्रिया शुक्र के वायुमंडल से रहे-सहे पानी को खत्म करने के अवसर प्रदान करती है।
इस नए पहचानी गई प्रक्रिया को पहले से ज्ञात प्रक्रियाओं के साथ जोड़कर शोधकर्ताओं का सुझाव है कि शुक्र का पूरा पानी उड़ने में केवल 60 करोड़ वर्ष लगे होंगे। यह अवधि पूर्व अनुमान से आधी है। इसका तात्पर्य यह है कि शुक्र पर, आज की दुर्गम दुनिया बनने से पहले, संभवत: 2 से 3 अरब साल पहले तक महासागर रहे होंगे।
शुक्र के विकास को समझना न केवल हमारे सौर मंडल के रहस्यों को जानने बल्कि सुदूर चट्टानी ग्रहों का अध्ययन करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। शुक्र और पृथ्वी के बीच समानताएं इस बात की जांच के महत्व पर प्रकाश डालती हैं कि समान संघटन वाले ग्रह किस तरह अलग-अलग तरीके से विकसित हो सकते हैं। शुक्र के इतिहास से प्राप्त जानकारी ब्रह्मांड में अन्यत्र जीवन योग्य वातावरण की पहचान करने के लिए मूल्यवान सबक प्रदान कर सकती है। एक अनुमान है कि शुक्र के समान मंगल से पानी के ह्रास में भी इस प्रक्रिया की भूमिका रही हो सकती है।
हालांकि, निकट भविष्य में कोई मिशन प्रत्यक्ष रूप से शुक्र पर HCO+ प्रक्रिया की खोजबीन नहीं कर पाएंगे, लेकिन शुक्र की वायुमंडलीय गतिशीलता को समझना जारी है। जल्दी ही कोई उपकरण ऊपरी वायुमंडल में हाइड्रोजन के ह्रास की जांच के लिए सामने आ जाएगा।
तब भविष्य के मिशन शुक्र पर पानी की उपस्थिति और ग्रह विज्ञान के व्यापक क्षेत्र पर इसके प्रभाव पर अधिक जानकारी एकत्रित कर पाएंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://d.newsweek.com/en/full/2387837/venus-water.jpg?w=1600&h=1600&q=88&f=119c0626f70d00b235f90fe9657d076a