दहियर या मैगपाई पक्षी कॉर्विडे (Corvidae) कुल के सदस्य हैं, जिसमें कौवा, नीलकण्ठ और रैवन आते हैं। आम तौर पर इस कुल के पक्षियों को कांव-कांव करने वाले और जिज्ञासु पक्षी के तौर पर देखा जाता है। दुनिया भर की लोककथाओं में अक्सर इन्हें शगुन-अपशगुन के साथ भी जोड़ा जाता है। जैसे कुछ युरोपीय संस्कृतियों में इन्हें चुड़ैलों का साथी माना जाता हैं। अंग्रेज़ी की एक तुकबंदी कहती है कि यदि एक अकेली मैगपाई दिखे तो बुरी खबर सुनने को मिलती है: “One for sorrow, two for joy; three for a girl, four for a boy; Five for silver, six for gold; Seven for a secret never to be told,” (हिंदी में यह कुछ इस तरह होगी: “एक यानी दुख, दो यानी खुशी; तीन यानी लड़की, चार यानी लड़का; पांच यानी चांदी, छह यानी सोना; सात यानी किसी को न बताने वाला राज़।”
लेकिन यह तो सभी मानेंगे कि मैगपाई दिखने में आकर्षक होती हैं। और इसकी कुछ सबसे सजीली (रंग-बिरंगी) प्रजातियां हिमालय में पाई जाती हैं।
नीली मैगपाई की कुछ निकट सम्बंधी प्रजातियां कश्मीर से लेकर म्यांमार तक में दिखना आम हैं। सुनहरी चोंच वाली मैगपाई (Urocissa flavirostris, जिसे पीली चोंच वाली नीली मैगपाई भी कहते हैं) की आंखें शरारती लगती हैं, और यह समुद्रतल से 2000 से 3000 मीटर ऊंचे स्थलों पर मिलती है। इससे थोड़ी कम ऊंचाई पर हमें लाल चोंच वाली मैगपाई दिखाई देती हैं, और नीली मैगपाई निचले इलाकों पर पाई जाती है जहां बड़ी तादाद में इंसान रहते हैं।
ट्रेकिंग पथ
पीली और लाल चोंच वाली मैगपाई सबसे अधिक दिखाई देती हैं पश्चिमी सिक्किम के ट्रैकिंग पथ पर, जो समुद्र तल से 1780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित युकसोम कस्बे से शुरू होता है और लगभग 4700 मीटर की ऊंचाई पर गोचे ला दर्रे तक जाता है जहां से कंचनजंगा के शानदार नज़ारे दिखते हैं। इस ट्रेकिंग में आपका सफर थोड़ी ऊंचाई पर उष्णकटिबंधीय आर्द्र चौड़ी पत्ती वाले वन से शुरू होता है, उप-अल्पाइन जंगलों से गुज़रते हुए ऊंचाई पर आप वृक्षविहीन, जुनिपर झाड़ियों वाली जगह पर पहुंचते हैं। बीच में कहीं-कहीं ऐसे जंगल भी मिलते हैं जिनके घने आच्छादन से आप ढंके होते हैं, और जहां आपको पक्षियों की हैरतअंगेज़ विविधता और आबादी दिखती है।
सिक्किम गवर्नमेंट कॉलेज के प्राणी शास्त्रियों द्वारा किए गए क्षेत्रीय अध्ययनों से पता चला है कि इस क्षेत्र में पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, और समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर आप हर पांच मिनट के अंतराल पर लगभग 60 अलग-अलग पक्षियों को देख या सुन सकते हैं। सुनहरी चोंच वाली मैगपाई की कूक अक्सर इन पक्षियों के कलरव के साथ सुनाई देती है। इस मैगपाई का शरीर लगभग कबूतर जितना बड़ा होता है, लेकिन इसकी पूंछ 45 सेंटीमीटर लंबी होती है, जिससे इसकी कुल लंबाई 66 सेंटीमीटर हो जाती है। ज़मीन पर कीड़े-मकोड़ों-कृमियों की तलाश करते समय इसकी पूंछ ऊपर की ओर उठी रहती है; लेकिन पेड़ों से जामुन तोड़ते समय इसकी पूंछ नीचे की ओर झुक जाती है। इसकी उड़ान भी खास होती है: शुरुआत में थोड़े समय तक यह लगातार पंख फड़फड़ाती है, और फिर उसके बाद देर तक हवा में शांत तैरती रहती है।
फूलदार बुरुंश
सुनहरी चोंच वाली मैगपाई बुरुंश वृक्ष पर उस जगह घोंसला बनाती है जहां शाखाएं दो में बंटती हैं। उसका घोंसला टहनियों पर जल्दबाज़ी में घास की मुलायम तह लगाकर बनाया गया लगता है। इन घोंसलों में मई-जून में तीन से छह अंडे दिए जाते हैं। चूज़ों का पालन-पोषण माता-पिता दोनों मिलकर करते हैं। अच्छी बात है, जैसा कि तुकबंदी में कहा गया है – ‘दो यानी खुशी’।
नीली मैगपाई और लाल चोंच वाली मैगपाई दिखने में बहुत हद तक एक जैसी दिखती हैं, बस एक थोड़ी छोटी होती है। नीली मैगपाई जंगलवासी पक्षी नहीं है, और अक्सर गांवों के आसपास पाई जाती हैं। मैगपाई की सभी प्रजातियां या तो अकेले फुदकते हुए, या जोड़े में, या शोरगुल मचाते हुए 8-10 के झुंड में देखी जा सकती हैं।
जैसे-जैसे इंसानों की जंगलों में मौजूदगी बढ़ रही है, इस बात की चिंता बढ़ रही है कि ये पक्षी इस दखल का कितना सामना कर पाएंगे। बुरुंश झाड़ी के रंग-बिरंगे फूल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। पर्यटकों को ठहराने और उनकी सुविधाओं के लिए ग्रामीण अक्सर जलाऊ लकड़ी जैसे वन संसाधनों को दोहते हैं। आशा है कि कृषि की तरह पर्यटन भी एक वहनीय व्यापार करना सीखेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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