डैल-ई और चैटजीपीटी जैसे जनरेटिव एआई (नया निर्माण करने में सक्षम) नवाचारों को विकसित करने वाली कंपनी ओपनएआई ने हाल ही में अपना नया उत्पाद ‘सोरा’ जारी किया है। यह एक ऐसा एआई मॉडल है जो टेक्स्ट से वीडियो निर्माण करने के लिए तैयार किया गया है। कल्पना करें तो यह कुछ ऐसा है कि आप कोई संगीत वीडियो या विज्ञापन देख रहे हैं लेकिन इनमें से कुछ भी वास्तविक दुनिया में मौजूद नहीं है। यही कमाल सोरा ने कर दिखाया है।
इस अत्याधुनिक कृत्रिम बुद्धि साधन को इनपुट के तौर पर तस्वीरें या संक्षिप्त लिखित टेक्स्ट दिया जाता है और वह उसे एक मिनट तक लंबे वीडियो में बदल देता है। कल्पना कीजिए कि एक महिला रात में शहर की एक हलचल भरी सड़क पर आत्मविश्वास से चल रही है, और आसपास जगमगाती रोशनी और पैदल लोगों की भीड़ है। सोरा द्वारा तैयार किए वीडियो में उसकी पोशाक से लेकर सोने की बालियों की चमक तक, हर बारीक से बारीक विवरण सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। कुछ नमूने देखने के लिए इन लिंक्स पर जाएं:
गौरतलब है कि ओपनएआई द्वारा 15 फरवरी को सोरा को जारी करने की घोषणा की गई है लेकिन फिलहाल इसे परीक्षण के लिए कुछ चुनिंदा कलाकार समूहों तथा ‘रेड-टीम’ हैकर्स के उपयोग तक ही सीमित रखा गया है। इस परीक्षण का उद्देश्य इस नवीन और शक्तिशाली तकनीक के सकारात्मक अनुप्रयोगों और संभावित दुरुपयोग दोनों का पता लगाना है।
सोरा की मदद से ऐसे वीडियो निर्मित करना बहुत आसान है। केवल एक साधारण निर्देश से यह ऐसे दृश्य उत्पन्न कर सकता है जिन्हें बनाने के लिए व्यापक संसाधनों और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। फिल्मों में कहानी सुनाने से लेकर विज्ञापनों में आभासी यथार्थ के अनुभवों में क्रांति लाने तक, सोरा से रचनात्मक संभावनाओं की पूरी दुनिया खुलती है।
लेकिन ओपनएआई को इस शक्तिशाली साधन को जारी करने के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी निभानी है। हालांकि कंपनी सोरा की क्षमताओं के नैतिक निहितार्थों को ध्यान में रखते हुए सावधानी से आगे बढ़ रही है, फिर भी इस साधन के नैतिक और ज़िम्मेदार उपयोग पर चर्चा को बढ़ावा देना ज़रूरी है।
ऐसी दुनिया में जहां यथार्थ और सिमुलेशन के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है, सोरा मानवीय सरलता और कृत्रिम बुद्धि की असीमित क्षमता के प्रमाण के रूप में उभरा है। बहरहाल, हम जिस उत्सुकता से इसके सार्वजनिक रूप से जारी होने का इंतज़ार कर रहे हैं उससे एक बात तो निश्चित है कि वीडियो के ज़रिए कहानी सुनाने का भविष्य पहले जैसा नहीं होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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