टीकों के विज्ञान में एक दिलचस्प रहस्य छिपा है जिसे एडजुवेंट (सहायक पदार्थ) कहते हैं। 1920 के दशक में फ्रांसीसी पशुचिकित्सक गैस्टन रेमन ने पाया था कि टीकों में ब्रेड का चूरा, कसावा या ऐसा ही कोई योजक मिलाने से टीके बेहतर काम करते हैं। सहायक पदार्थों की इस भूमिका को देखते हुए कुछ टीकों में इनका उपयोग किया जा रहा है। साथ ही नए टीके तैयार करने के लिए एडजुवेंट पर शोध जारी है ताकि लंबे समय तक कारगर टीके विकसित किए जा सकें।
टीके का मतलब है कि रोगजनक का मृत या दुर्बल रूप या उसके द्वारा बनाया जाने वाला विष शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है। शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र इसे एंटीजन के रूप में पहचान लेता है और जन्मजात प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा होती है जिसके फलस्वरूप सूजन पैदा होती है। इसके साथ ही, प्रतिरक्षा कोशिकाएं एंटीजन को लिम्फ नोड्स तक पहुंचाती हैं, जहां अनुकूली प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है। प्रतिरक्षा तंत्र मूलत: सूजन के ज़रिए ही काम करता है और कोशिश यही रहती है कि यह सूजन यथेष्ट मात्रा में पैदा हो।
एडजुवेंट प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया में सुधार करते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि टीकों से सूजन ठीक मात्रा में उत्पन्न हो – न बहुत ज़्यादा, न बहुत कम।
हालांकि, कुछ टीके प्रतिरक्षा उत्पन्न करने का अच्छा काम करते हैं, लेकिन प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने की क्षमता वाले जटिल रोगजनकों, जैसे एचआईवी, इन्फ्लूएंज़ा और मलेरिया, के लिए टीके विकसित करना काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने प्रतिरक्षा प्रणाली की जटिलताओं में गहराई से उतरकर ऐसे टीके बनाने का प्रयास किया जो व्यापक सुरक्षा प्रदान करते हैं। एडजुवेंट इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रेमन ने देखा था कि जब घोड़ों में टीके के स्थान के आसपास संक्रमण विकसित होता है तो उनमें अधिक शक्तिशाली एंटी-डिप्थीरिया सीरम बनता है। जल्द ही वे उसी प्रतिक्रिया को बढ़ाने और प्रतिरक्षा में सहायता करने के लिए टीकों में ब्रेड का चूरा वगैरह चीज़ें मिलाने लगे।
इसे आगे बढ़ाते हुए एल्युमीनियम लवण जैसे एडजुवेंट्स का विकास हुआ। एडजुवेंट पर काम कर रहे एमआईटी के डेरेल इरविन का विचार है कि एमआरएनए टीकों में संयोगवश चुने गए लिपिड नैनोकण शायद एडजुवेंट के समान कार्य करते हैं। कुछ टीकों में सहायक पदार्थ इस आधार पर चुने जाते हैं कि उनमें संक्रामक बैक्टीरिया के कुछ घटक होते हैं। ऐसे अणुओं के खिलाफ प्रतिक्रिया के ज़रिए एडजुवेंट सूजन बढ़ाते हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मज़बूत होती है।
अंतत: एडजुवेंट प्रतिरक्षा कोशिकाओं की जीन गतिविधि को पुन: प्रोग्राम कर पाएंगे, जिससे एक साथ कई बीमारियों से सुरक्षा मिल सकेगी। चूहों पर हुए अध्ययनों से पता चला है कि एडजुवेंट युक्त तपेदिक का बीसीजी टीका विभिन्न संक्रमणों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इस शोध के आधार पर वैज्ञानिकों का लक्ष्य ऐसे एडजुवेंट विकसित करना है जो दीर्घकालिक एंटीवायरल प्रतिरक्षा प्रेरित कर सकें और विभिन्न रोगजनकों के खिलाफ व्यापक सुरक्षा प्रदान करें।
इरविन का मानना है कि एडजुवेंट पर अधिक अनुसंधान से कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों के विरुद्ध टीकों के निर्माण में मदद मिल सकती है। ट्यूमर द्वारा बनाए जाने वाले प्रोटीन और एडजुवेंट के मिश्रण के परीक्षण मेलेनोमा और अग्न्याशय के कैंसर के विरुद्ध प्रतिरक्षा को उत्तेजित करने में प्रभावी रहे हैं।
विशेषज्ञों का मत है कि भविष्य में एडजुवेंट सूजन पर हमारी समझ विकसित होने पर एचआईवी, मलेरिया, कैंसर, इन्फ्लूएंज़ा और सार्स-कोव-2 के नए स्ट्रेन जैसे संक्रामक खतरों सहित कई बीमारियों से एक साथ निपटने के लिए समाधान मिल सकेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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