मानवीय गतिविधियां समस्त जीव-जंतुओं के लिए संकट उत्पन्न कर रही हैं। समुद्री जीवों के शिकार व इंसानों द्वारा फैलाए गए प्रदूषण के कारण समुद्र के तापमानन में भी वृद्धि हुई है। नतीजतन समुद्री जीवों की कई प्रजातियां समाप्ति की ओर बढ़ रही हैं।
वर्ष 2019 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग वातावरण में शार्क की एक प्रजाति की वृद्धि और उनकी शारीरिक स्थिति की तुलना करके पाया था कि बड़े आकार की रीफ शार्क के शिशुओं का विकास कम हो रहा है। शार्क अपने वातावरण में हो रहे परिवर्तनों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं।
नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट में छपे एक शोध से पता चला है कि समुद्री तापमान में होने वाले परिवर्तन के कारण शार्क के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं, साथ ही उनमें पोषण की कमी भी देखी गई है। इस कारण से उनका ज़िंदा रहना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है एवं वे दुबले-पतले/बौने रह जाते हैं।
वर्ष 2013 में डलहौज़ी युनिवर्सिटी द्वारा किए एक शोध के अनुसार हर साल करीब 10 करोड़ शार्क को मार दिया जाता है। अनुमान है कि यह दुनिया भर में शार्क का करीब 7.9 फीसदी है। वर्ष 2016 में भारत को सबसे अधिक शार्क का शिकार करने वाला देश घोषित किया गया था।
शार्क और रे की 24 से 31 प्रजातियों पर विलुप्ति का संकट मंडरा रहा है जबकि शार्क की तीन प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में आ गई है। शोधकर्ताओं ने चिंता जताई है कि हिंद महासागर में वर्ष 1970 के बाद शॉर्क और रे की संख्या लगातार कम हो रही है। यहां तक कि अब तक इनकी आबादी में कुल 84.7 फीसदी तक की कमी आ चुकी है।
सिमोन फ्रेज़र युनिवर्सिटी और युनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से पता लगाया कि हिंद महासागर में वर्ष 1970 से अब तक मत्स्याखेट का दबाव 18 गुना बढ़ गया है जिसके कारण निश्चित ही समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ा है और कई जीव विलुप्त हो रहे हैं। अधिक मात्रा में मछली पकड़े जाने से न केवल शार्क बल्कि रे मछलियों पर भी विलुप्ति का खतरा बढ़ गया है।
दरअसल शार्क शिशुओं को प्रजनन करने लायक होने में सालों लग जाते हैं। अपने जीवन काल में ये कुछ ही बच्चों को जन्म दे पाते हैं। ऐसे में अत्यधिक मात्रा में इन्हें पकड़े जाने से स्वाभाविक रूप से इनकी आबादी में गिरावट आ रही है।
शार्क की विशेष पहचान उसके हमलवार स्वभाव के कारण है, जो समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यदि ये शिकारी न हों तो इनके बिना पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ही ध्वस्त हो सकता है। बावजूद इसके हमारा ध्यान इनकी सुरक्षा और संरक्षण पर नहीं है।
इनके संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर कदम उठाने की ज़रूरत है। इनके प्रबंधन के लिए आम लोगों को सहयोग करना होगा ताकि समुद्री प्रजातियों और उनके आवासों को लंबे समय तक संरक्षित किया जा सके। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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