हाल ही में एक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) मॉडल ने एक शिशु की आंखों के ज़रिए ‘crib (पालना)’ और ‘ball (गेंद)’ जैसे शब्दों को पहचानना सीखा है। एआई के इस तरह सीखने से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि मनुष्य कैसे सीखते हैं, खासकर बच्चे भाषा कैसे सीखते हैं।
शोधकर्ताओं ने एआई को शिशु की तरह सीखने का अनुभव कराने के लिए एक शिशु को सिर पर कैमरे से लैस एक हेलमेट पहनाया। जब शिशु को यह हेलमेट पहनाया गया तब वह छह महीने का था, और तब से लेकर लगभग दो साल की उम्र तक उसने हर हफ्ते दो बार लगभग एक-एक घंटे के लिए इस हेलमेट को पहना। इस तरह शिशु की खेल, पढ़ने, खाने जैसी गतिविधियों की 61 घंटे की रिकॉर्डिंग मिली।
फिर शोधकर्ताओं ने मॉडल को इस रिकॉर्डिंग और रिकॉर्डिंग के दौरान शिशु से कहे गए शब्दों से प्रशिक्षित किया। इस तरह मॉडल 2,50,000 शब्दों और उनसे जुड़ी छवियां से अवगत हुआ। मॉडल ने कांट्रास्टिव लर्निंग तकनीक से पता लगाया कि कौन सी तस्वीरें और शब्द परस्पर सम्बंधित हैं और कौन से नहीं। इस जानकारी के उपयोग से मॉडल यह भविष्यवाणी कर सका कि कतिपय शब्द (जैसे ‘बॉल’ और ‘बाउल’) किन छवियों से सम्बंधित हैं।
फिर शोधकर्ताओं ने यह जांचा कि एआई ने कितनी अच्छी तरह भाषा सीख ली है। इसके लिए उन्होंने मॉडल को एक शब्द दिया और चार छवियां दिखाईं; मॉडल को उस शब्द से मेल खाने वाली तस्वीर चुननी थी। (बच्चों की भाषा समझ को इसी तरह आंका जाता है।) साइंस पत्रिका में शोधकर्ताओं ने बताया है कि मॉडल ने 62 प्रतिशत बार शब्द के लिए सही तस्वीर पहचानी। यह संयोगवश सही होने की संभावना (25 प्रतिशत) से कहीं अधिक है और ऐसे ही एक अन्य एआई मॉडल के लगभग बराबर है जिसे सीखने के लिए करीब 40 करोड़ तस्वीरों और शब्दों की जोड़ियों की मदद से प्रशिक्षित किया गया था।
मॉडल कुछ शब्दों जैसे ‘ऐप्पल’ और ‘डॉग’ के लिए अनदेखे चित्रों को भी (35 प्रतिशत दफा) सही पहचानने में सक्षम रहा। यह उन वस्तुओं की पहचान करने में भी बेहतर था जिनके हुलिए में थोड़ा-बहुत बदलाव किया गया था या उनका परिवेश बदल दिया गया था। लेकिन मॉडल को ऐसे शब्द सीखने में मुश्किल हुई जो कई तरह की चीज़ों के लिए जेनेरिक संज्ञा हो सकते हैं। जैसे ‘खिलौना’ विभिन्न चीज़ों को दर्शा सकता है।
हालांकि इस अध्ययन की अपनी सीमाएं हैं क्योंकि यह महज एक बच्चे के डैटा पर आधारित है, और हर बच्चे के अनुभव और वातावरण बहुत भिन्न होते हैं। लेकिन फिर भी इस अध्ययन से इतना तो समझ आया है कि शिशु के शुरुआती दिनों में केवल विभिन्न संवेदी स्रोतों के बीच सम्बंध बैठाकर बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
ये निष्कर्ष नोम चोम्स्की जैसे भाषाविदों के इस दावे को भी चुनौती देते हैं जो कहता है कि भाषा बहुत जटिल है और सामान्य शिक्षण प्रक्रियाओं के माध्यम से भाषा सीखने के लिए जानकारी का इनपुट बहुत कम होता है; इसलिए सीखने की सामान्य प्रक्रिया से भाषा सीखा मुश्किल है। अपने अध्ययन के आधार पर शोधकर्ता कहते हैं कि भाषा सीखने के लिए किसी ‘विशेष’ क्रियाविधि की आवश्यकता नहीं है जैसे कि कई भाषाविदों ने सुझाया है।
इसके अलावा एआई के पास बच्चे के द्वारा भाषा सीखने जैसा हू-ब-हू माहौल नहीं था। वास्तविक दुनिया में बच्चे द्वारा भाषा सीखने का अनुभव एआई की तुलना में कहीं अधिक समृद्ध और विविध होता है। एआई के पास तस्वीरों और शब्दों के अलावा कुछ नहीं था, जबकि वास्तव में बच्चे के पास चीज़ें छूने-पकड़ने, उपयोग करने जैसे मौके भी होते हैं। उदाहरण के लिए, एआई को ‘हाथ’ शब्द सीखने में संघर्ष करना पड़ा जो आम तौर पर शिशु जल्दी सीख जाते हैं क्योंकि उनके पास अपने हाथ होते हैं, और उन हाथों से मिलने वाले तमाम अनुभव होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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