ऐसा माना जाता है कि बिल्लियां सामाजिक जंतु नहीं हैं। लेकिन हाल ही में हुए अध्ययन में बिल्लियों में दोस्ती से लेकर गुस्से तक के 276 चेहरे के भाव देखे गए हैं। बिहेवियरल प्रोसेसेस में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बिल्लियों में इन भावों के विकसित होने में 10,000 सालों से मनुष्य की संगत का हाथ है।
हो सकता है कि बिल्लियां एकान्तप्रिय और एकाकी प्राणि हों, लेकिन वे अक्सर घरों में या सड़क पर अन्य बिल्लियों के साथ खेलते भी देखी जाती हैं। कुछ जंगली बिल्लियां तो बड़ी-बड़ी कॉलोनियों में रहती हैं जिनकी आबादी हज़ारों में होती है।
बिल्लियों पर हुए अधिकतर अध्ययन उनके बीच के झगड़ों पर केंद्रित रहे हैं, लेकिन बिल्ली प्रेमी लॉरेन स्कॉट का ऐसा विचार था कि बिल्लियों में आक्रामकता के अलावा प्रेम और कूटनीति जैसे और भी भाव होंगे। वे जानना चाहती थीं कि बिल्लियां आपस में संवाद कैसे करती हैं।
तो, स्कॉट ने एक कैटकैफे का रुख किया। उन्होंने कैफे बंद होने के बाद बिल्लियों के चेहरे के भावों को वीडियो रिकॉर्ड किया; खास कर जब बिल्लियां अन्य बिल्लियों से किसी रूप में जुड़ रही होती थीं। फिर उन्होंने वैकासिक मनोवैज्ञानिक ब्रिटनी फ्लोर्कीविक्ज़ के साथ मिलकर बिल्लियों के चेहरे की मांसपेशियों की सभी हरकतों को कोड किया। कोडिंग में उन्होंने सांस लेने, चबाने, जम्हाई और ऐसी ही अन्य हरकतों को छोड़ दिया।
इस तरह उन्होंने बिल्लियों द्वारा प्रस्तुत चेहरे के कुल 276 अलग-अलग भावों को पहचाना। अब तक चेहरे के सर्वाधिक भाव (357) चिम्पैंज़ी में देखे गए हैं। देखा गया कि बिल्लियों का प्रत्येक भाव उनके चेहरे पर देखी गई 26 अद्वितीय हरकतों में से चार हरकतों का संयोजन था, ये हरकतें हैं – खुले होंठ, चौड़े या फैले जबड़े, फैली या संकुचित पुतलियां, पूरी या आधी झुकी पलकें, होंठों के कोने चढ़े (मंद मुस्कान जैसे), नाक चाटना, तनी हुईं या पीछे की ओर मुड़ी हुई मूंछें, और/या कानों की विभिन्न स्थितियां। तुलना के लिए देखें तो मनुष्यों के चेहरे की ऐसी 44 अद्वितीय हरकतें होती हैं, और कुत्तों के चेहरे की 27। वैसे ये अध्ययन जारी हैं कि हम भाव प्रदर्शन में कितनी अलग-अलग हरकतों का एक साथ इस्तेमाल करते हैं।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि बिल्लियों की अधिकांश अभिव्यक्तियां स्पष्टत: या तो मैत्रीपूर्ण (45 प्रतिशत) थीं या आक्रामक (37 प्रतिशत)। शेष 18 प्रतिशत इतनी अस्पष्ट थीं कि वे दोनों श्रेणियों में आ सकती थीं।
यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि इन भंगिमाओं के ज़रिए बिल्लियां वास्तव में एक-दूसरे से क्या ‘कह’ रही थीं। इतना ज़रूर समझ आया कि दोस्ताना संवाद के दौरान बिल्लियां अपने कान और मूंछें दूसरी बिल्ली की ओर ले जाती हैं, और अमैत्रीपूर्ण संवाद के दौरान उन्हें उनसे दूर ले जाती हैं। सिकुड़ी हुई पुतलियां और होठों को चाटना भी मुकाबले का संकेत है।
दिलचस्प बात यह है कि बिल्लियों की कुछ मित्रतापूर्ण भंगिमाएं मनुष्यों, कुत्तों, बंदरों और अन्य जानवरों की तरह होती हैं। यह इस बात का संकेत है कि शायद ये प्रजातियां ‘एक उभयनिष्ठ भावयुक्त चेहरा’ साझा कर रही हों।
बहरहाल शोधकर्ता जंगली बिल्ली कुल के अन्य सदस्यों के साथ अपने परिणामों की तुलना नहीं कर पाए हैं लेकिन वे जानते हैं कि घरेलू बिल्ली के सभी करीबी रिश्तेदार आक्रामक एकाकी जानवर हैं। इसलिए अनुमान तो यही है कि घरेलू बिल्लियों ने इस आक्रामक व्यवहार में से कुछ तो बरकरार रखा है, लेकिन मनुष्यों के बचे-खुचे खाने के इंतज़ार में मित्रवत अभिव्यक्ति शुरू की है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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