हाल ही में शोधकर्ताओं ने फिजी के दूर-दराज द्वीप वनुआ बालावु पर पतंगों की साइज़ के चमगादड़ों का नया आवास खोज निकाला है। इस अभियान में शोधकर्ताओं को न सिर्फ प्रशांत द्वीप में सबसे अधिक चमगादड़ आबादी (तकरीबन 2000 से 3000) वाली गुफा मिली है बल्कि विलुप्ति की ओर अग्रसर इस जीव को बचाने के प्रति कुछ आशा भी जगी है।
गैर-मुनाफा संगठन कंज़र्वेशन इंटरनेशनल के नेतृत्व में किए गए इस अभियान में शोधकर्ता चमगादड़ों की गुफा तक स्थानीय लोगों की मदद से पहुंचे। यह एक गिरजाघर जितनी बड़ी कंदरा थी। यहीं उन्हें ठसाठस भरे म्यान जैसी पूंछ वाले चमगादड़ (एम्बालोनुरा सेमिकॉडैटा सेमीकॉडैटा) मिले।
इन चमगादड़ों के फर मुलायम, चॉकलेटी-भूरे रंग के होते हैं। ये चार सेंटीमीटर लंबे होते हैं और इनका वज़न अधिक से अधिक पांच ग्राम तक होता है। ये छोटे-छोटे कीटों को खाते हैं। मनुष्यों द्वारा प्रशांत महासागर पार करने और इन द्वीपों पर बसने से कुछ लाख साल पहले ये चमगादड़ उड़कर आए और यहां बस गए थे।
गौरतलब है कि प्रशांत द्वीप समूहों पर चमगादड़ों की 191 प्रजातियां ज्ञात हैं; इनमें कीटभक्षी चमगादड़ से लेकर पेड़ों पर लटकने वाले और फलाहारी उड़न-लोमड़ी चमगादड़ तक रहते हैं। इस क्षेत्र में लोग चमगादड़ों की विष्ठा (गुआनो) उर्वरक के तौर पर इकट्ठा करते हैं तथा भोजन के लिए उनका शिकार करते हैं। यहां तक कि सोलोमन द्वीप के लोग इनके दांतों का उपयोग पारंपरिक मुद्रा के रूप में भी करते हैं। इसके अलावा, कीटभक्षी चमगादड़ अपने आसपास के पारिस्थितिक तंत्र में फसल के कीटों और रोग फैलाने वाले मच्छरों को नियंत्रित करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
म्यान जैसी पूंछ वाले चमगादड़ किसी समय प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक पाए जाने वाले स्तनधारियों में से थे, लेकिन अब इन पर विलुप्ति का संकट सबसे अधिक है। करीब सौ साल पहले तक ये गुआम से लेकर अमेरिकी समोआ तक पाए जाते थे। लेकिन आज महज चार उप-प्रजातियां माइक्रोनेशिया और फिजी के ही कुछ द्वीपों पर बची हैं और इनकी संख्या लगातार घट रही है।
चमगादड़ों के कुछ महत्वपूर्ण बसेरे अब पूरी तरह से चमगादड़ विहीन हो गए हैं। 2018 में वनुआ बालावु से लगभग 120 कि.मी. उत्तर-पश्चिम में तवेउनी द्वीप पर एक गुफा में लगभग 1000 ऐसे चमगादड़ मिले थे लेकिन 2019 तक जंगलों के सफाए के कारण चंद सैकड़ा ही बचे थे।
इस अभियान से जुड़ी संरक्षण विज्ञानी सितेरी टिकोका का कहना है कि वनुआ बालावु की गुफा में ऐसा भरा-पूरा चमगादड़ का बसेरा मिलना सुखद था; इसने इनके बचने की आशा को फिर से जगा दिया है। लेकिन तवेउनी की स्थिति से सबक लेना चाहिए, जहां हम देख चुके हैं कि सिर्फ एक वर्ष में ही स्थिति कितनी बदल सकती है। यदि हमने इनके संरक्षण के लिए ज़रूरी कदम तत्काल नहीं उठाए तो ये चमगादड़ पूरी तरह लुप्त हो जाएंगे। स्थानीय लोगों का सहयोग भी ज़रूरी है क्योंकि स्पष्ट है कि स्थानीय लोगों ने ही इस जगह, इन गुफाओं और चमगादड़ों की देखभाल की है और बचाए रखा है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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