कृत्रिम बुद्धि के युग में, चैटजीपीटी एक शक्तिशाली साधन के रूप में उभरा है। यह पलभर में आकर्षक लेख, सोशल मीडिया पोस्ट, निबंध, कोड और ईमेल सहित विभिन्न लिखित सामग्री तैयार कर सकता है। इन क्षमताओं को देखते हुए शिक्षाविदों को डर है कि छात्र इसका उपयोग अपने शैक्षणिक कार्यों में कर सकते हैं। साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार इसके द्वारा निर्मित सामग्री कॉलेज छात्रों के काम की गुणवत्ता के बराबर या उससे भी बेहतर हो सकती है। इस प्रकार से चैटजीपीटी शिक्षकों को वर्तमान शिक्षण विधियों और मूल्यांकन मानदंडों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करता है।
अबू धाबी स्थित न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के कंप्यूटर वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने विभिन्न विषयों में 233 मूल्यांकन प्रश्नों का अध्ययन किया। उन्होंने छात्रों और चैटजीपीटी दोनों से प्राप्त जवाबों का निष्पक्ष ग्रेडर्स द्वारा मूल्यांकन करवाया। आश्चर्यजनक रूप से लगभग 30 प्रतिशत पाठ्यक्रमों में चैटजीपीटी के जवाबों को मानव छात्रों के जवाबों के बराबर या बेहतर ग्रेड मिले। शोधकर्ताओं का ख्याल है कि कृत्रिम बुद्धि के विकास के साथ यह प्रतिशत बढ़ेगा।
इतना ही नहीं, जीपीटी-3.5 और जीपीटी-4 जैसे जनरेटिव एआई मॉडल ने एसएटी, जीआरई, बार और एलएसएटी जैसी पेशेवर परीक्षाओं में उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया है। इन्होंने मेडिकल कॉलेज की प्रवेश परीक्षाओं और अमेरिका के उच्च स्तरीय आइवी लीग फाइनल में मानव औसत से भी बेहतर परिणाम दिए हैं। ये निष्कर्ष शिक्षा में एआई के बढ़ते प्रभाव को उजागर करने के साथ-साथ शिक्षकों को बदलते परिदृश्य के अनुरूप ढलने के लिए प्रेरित करते हैं।
शैक्षणिक बेईमानी के लिए चैटजीपीटी के उपयोग का मुकाबला करने के लिए कुछ शिक्षकों ने स्वयं एआई के साथ प्रयोग करना शुरू किए हैं। बर्लिन स्थित कंप्यूटर साइंस की प्रोफेसर डेबोरा वेबर-वुल्फ चैटजीपीटी के माध्यम से परीक्षा और होमवर्क प्रश्न तैयार करती हैं और फिर उन्हें इस तरह संशोधित करती हैं कि वे एआई के लिए चुनौतीपूर्ण बन जाएं। वैसे इस रणनीति की अपनी सीमाएं हैं और संभव है कि एआई तकनीकें इसका भी कोई हल निकाल लेंगी।
देखा जाए तो नकल या धोखाधड़ी का मामला एआई की पैदाइश नहीं है। पूर्व में भी कई जगहों पर निबंध-लेखन सेवाएं उपलब्ध होती थीं लेकिन एआई ने इसे अधिक सुलभ और सरल बना दिया है। एक तरह से यह शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य पर भी गंभीर सवाल उठाता है कि छात्र सीखने और दक्षता हासिल करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं या केवल अच्छे ग्रेड पाने का प्रयास कर रहे हैं।
यह ध्यान देने वाली बात है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अक्सर विषय की वास्तविक समझ की बजाय ग्रेड पर अधिक ज़ोर देती है। ऐसे में छात्र ज्ञान अर्जन की बजाय बेहतर ग्रेड प्राप्त करने के लिए अनुचित रणनीति अपना रहे हैं। धोखाधड़ी में एआई का उपयोग इस बड़ी समस्या का एक लक्षण मात्र है। इसलिए, शिक्षकों को अपना ध्यान एआई-आधारित धोखाधड़ी से निपटने की बजाय अकादमिक बेईमानी के मूल कारणों पर केंद्रित करना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि धोखाधड़ी और साहित्यिक चोरी की प्रवृत्ति सीखने के प्रति छात्रों के दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है। यदि छात्रों को वास्तव में किसी कौशल में महारत हासिल करने के लिए प्रेरित किया जाए तो धोखाधड़ी की संभावना कम होती है। लेकिन जब उनका प्राथमिक लक्ष्य किसी भी कीमत पर उच्च ग्रेड प्राप्त करना हो तब वे एक साधन के रूप में एआई का सहारा क्यों नहीं लेंगे? इससे निपटने के लिए, ग्रेड की बजाय सीखने-समझने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।
देखा जाए तो, एआई-आधारित धोखाधड़ी मूल्यांकन प्रक्रिया को कमज़ोर करने के अलावा छात्रों में लेखन कौशल के विकास में भी बाधा डालती है। लेखन विभिन्न व्यवसायों के लिए एक आवश्यक बुनियादी कौशल है और यह अवधारणाओं के बीच सम्बंध बनाने, समझ को बढ़ावा देने, स्मृति में सुधार और रिकॉल जैसी संज्ञान प्रक्रियाओं को बढ़ाता है। जो छात्र असाइनमेंट लिखने के लिए पूरी तरह से एआई पर निर्भर रहते हैं वे इन संज्ञान लाभों से भी चूक जाते हैं।
दरअसल, एआई को एक खतरे के रूप में देखने की बजाय, शिक्षक इसे अपनी शिक्षण रणनीतियों में शामिल कर सकते हैं। इसमें छात्र एआई ट्यूटर टूल का उपयोग करके घर पर सीखने के स्व-निर्देशित तरीके अपना सकते हैं और कक्षा के समय का उपयोग सहपाठियों के साथ परियोजनाओं पर काम के लिए कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, व्यक्तिगत फीडबैक और प्रक्रिया-केंद्रित मूल्यांकन (जिसमें महत्व अंतिम उत्तर का नहीं बल्कि सीखने की प्रक्रिया का हो) अपनाकर एआई-आधारित धोखाधड़ी को कमज़ोर किया जा सकता है। ऐसे मूल्यांकन में समय तो लगेगा लेकिन इसमें एआई साधनों की मदद से रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।
इसके अलावा, शिक्षक छात्रों को नैतिकतापूर्ण उपयोग और पारदर्शिता को प्रोत्साहित करते हुए विचार-मंथन और विचार निर्माण के लिए एआई टूल का उपयोग करना सिखा सकते हैं। उपरोक्त अध्ययन में यह भी सामने आया कि चैटजीपीटी तथ्य-आधारित प्रश्नों का उत्तर देने में उत्कृष्ट होता है लेकिन अवधारणात्मक मामलों में पीछे रहता है। इसलिए रटंत की बजाय विश्लेषण और संश्लेषण आधारित मूल्यांकन से एआई का गलत हस्तक्षेप कम हो सकता है।
ज़ाहिर है एआई सहायक और हानिकारक दोनों हो सकता है। लिहाज़ा यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्र यह समझ पाएं कि एआई का उपयोग अपने प्रयासों को कम करने में नहीं बल्कि सीखने के अनुभव को समृद्ध करने के लिए कब और कैसे किया जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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