पृथ्वी के जीवों को मोटे तौर पर दो समूहों में बांटा गया है – प्रोकेरियोट्स (केंद्रक-पूर्व या केंद्रकविहीन) और युकेरियोट्स (सुकेंद्रकीय या केंद्रकयुक्त)। प्रोकेरियोट्स एककोशिकीय जीव होते हैं; इनमें माइटोकॉन्ड्रिया जैसे कोई कोशिकांग भी नहीं होते, और इनमें डीएनए केंद्रक के अंदर बंद नहीं होता। युकेरियोट्स में माइटोकॉन्ड्रिया जैसे कोशिकांग होते हैं और इनका डीएनए केंद्रक के अंदर बंद होता है। अधिकांश युकेरियोट्स जटिल और बहुकोशिकीय जीव होते हैं।
लगभग 50 साल पहले यह दर्शाया गया था कि एककोशिकीय जीवों के एक उपसमूह, आर्किया, का वंशानुक्रम बैक्टीरिया से अलग है। ये दोनों कोशिका भित्ति की संरचना और कुछ जीनों के अनुक्रम की दृष्टि से अलग-अलग हैं। इस समूह के लिए आर्किया शब्द, जो प्राचीन होने का एहसास देता है, का उपयोग इसलिए किया गया था क्योंकि इस समूह के सबसे पहले खोजे गए सदस्य बहुत उच्च तापमान या बहुत अधिक खारी जगह वाली बहुत ही विषम परिस्थितियों में पाए गए थे।
आर्किया के एक समूह में ऐसे प्रोटीन पाए गए थे जो युकेरियोटिक प्रोटीन के काफी समान थे। ये जीव ऐसी भू-गर्भीय संरचनाओं में पाए जाते हैं जहां गर्म पानी एक दरार से बाहर निकलता है। ये संरचनाएं समुद्र में 2400 मीटर की गहराई पर हैं और यहां भूगर्भीय गर्मी से गरम होकर पानी के सोते फूटते रहते हैं। आगे चलकर इसी तरह के कई अन्य जीव कुछ असामान्य पारिस्थितिक तंत्रों में पाए गए, और उनके समूह को एसगार्ड कहा जाने लगा। एसगार्ड नॉर्स पौराणिक कथाओं में देवताओं के घर को कहा जाता है।
युकेरियोटिक कोशिकाओं का ऊर्जा बनाने वाला अंग (माइटोकॉन्ड्रिया) और पौधों की कोशिकाओं में प्रकाश संश्लेषण के लिए पाया जाने वाला अंग (क्लोरोप्लास्ट), दोनों ही मुक्त-जीवी बैक्टीरिया से विकसित हुए हैं। जैव विकास के किन चरणों में इन दो कोशिकाओं के बीच यह सहजीवी सम्बंध अस्तित्व में आया? माइटोकॉन्ड्रिया का पूर्वज कोई प्रोटियोबैक्टीरियम था जिसे किसी एसगार्ड आर्किया जीव ने निगल लिया था। इस अंत:सहजीवी संयोजन के वंशजों ने जंतुओं, कवकों और पौधों को जन्म दिया। पौधों में, एसगार्ड-माइटोकॉन्ड्रियल मेल के बाद प्रकाश संश्लेषण करने वाले सायनोबैक्टीरिया आए, जो क्लोरोप्लास्ट बन गए।
कुछ साल पहले हम भारतीयों ने कुछ सरकारी बैंकों का जटिल विलय देखा था, जो उनके संचालन को सुधारने/बेहतर करने के लिए किया गया था। इसी तरह, दो स्वतंत्र तरह के जीवों के बीच एक व्यावहारिक सहजीवी सम्बंध के निर्माण में कई चुनौतियां होती हैं। नए जीव में जीन के दो पूरे सेट बरकरार रखने की कोई ज़रूरत नहीं थी, इसलिए चयन किया गया; सूचना संचालन के लिए आर्किया के जीन बरकरार रखे गए और रखरखाव व कार्यों का निष्पादन करने (यानी प्रोटीन संश्लेषण) के लिए, बैक्टीरिया के जीन के चुने गए। समय के साथ, कोशिकांगों के अधिकांश जीन केंद्रक में पहुंच गए, जो संभवत: अधिक कुशल व्यवस्था थी।
पौधों का अलग तरीका
हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) के राजन शंकरनारायणन के दल ने इन अंत:सहजीवी सम्बंधों में कोशिकीय प्रक्रियाओं के पुर्नगठन पर विस्तृत अध्ययन किया है। प्रोटीन संश्लेषण के महत्वपूर्ण कोशिकीय कार्य को केंद्र में रखकर उन्होंने जंतुओं और कवक की तुलना पादपों से की है। पादपों में यह और भी जटिल है क्योंकि इनके विकास में जीन के तीन सेट (आर्किया, प्रोटियोबैक्टीरियम और सायनोबैक्टीरियम) शामिल थे। पीएनएएस में प्रकाशित अपने हालिया अध्ययन में वे बताते हैं कि पादपों ने वाकई जानवरों और कवकों से अलग ही रणनीति अपनाई है।
प्रोटीन अमीनो एसिड से बने होते हैं। प्रकृति केवल वामहस्ती अमीनो एसिड का उपयोग करती है; दक्षिणहस्ती विषैले हो सकते हैं। एसगार्ड और बैक्टीरिया का ‘अच्छे-बुरे’ के बीच भेद करने का तंत्र अलग होता है। शोध पत्र बताता है कि जंतु और कवक माइटोकॉन्ड्रिया को बदल-बदलकर इस विसंगति को दूर करते हैं। पौधे इन दो व्यवस्थाओं को अलग-अलग कर देते हैं – कोशिकाद्रव्य और माइटोकॉन्ड्रिया में। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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