माइक्रोप्लास्टिक एक बड़ी पर्यावरणीय समस्या बन गए हैं। प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण समुद्री जीवों के शरीर में पहुंच कर उनके ऊतकों को नष्ट कर सकते हैं और उनकी जान के लिए खतरा हो सकते हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि पर्यावरण से इनको हटाना मुश्किल होता है।
अब, प्लायमाउथ मरीन लेबोरेटरी की पारिस्थितिकी विज्ञानी पेनलोप लिंडिकी को एक ऐसे समुद्री जीव – नीले घोंघे (मायटिलस एडुलिस) – के बारे में पता चला है जो न सिर्फ माइक्रोप्लास्टिक्स से अप्रभावित रहते हैं बल्कि उन्हें पर्यावरण से हटाने में मदद कर सकते हैं। काली-नीली खोल वाली ये सीपियां भोजन के साथ माइक्रोप्लास्टिक भी निगल लेती हैं और अपनी विष्ठा के साथ इसे शरीर से बाहर निकाल देती हैं।
शोधकर्ता जानते थे कि नीली सीपियां ठहरे हुए पानी में से माइक्रोप्लास्टिक्स को छान सकती हैं। लिहाज़ा वे कुदरती परिस्थितियों में इस बात को जांचना चाह रहे थे।
उन्होंने सीपियों को एक स्टील की टंकी में रखा और उसमें माइक्रोप्लास्टिक युक्त पानी में भर दिया। जैसी कि उम्मीद थी सीपियों ने टंकी का लगभग दो-तिहाई माइक्रोप्लास्टिक्स निगला और उसे अपने मल के साथ त्याग दिया।
यही परीक्षण उन्होंने वास्तविक परिस्थितियों में भी दोहराया। उन्होंने तकरीबन 300 सीपियों को टोकरियों में भरकर पास के समंदर में डाल दिया। विष्ठा इकट्ठा करने के लिए उन्होंने हर टोकरी के नीचे एक जाली लगाई।
जर्नल ऑफ हेज़ार्डस मटेरियल्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस व्यवस्था में सीपियों ने प्रतिदिन लगभग 240 माइक्रोप्लास्टिक कण फिल्टर किए। प्रयोगशाला का काम बताता है कि पानी में अत्यधिक माइक्रोप्लास्टिक्स होने पर सीपियां प्रति घंटे लगभग एक लाख कण तक हटा सकती हैं। माइक्रोप्लास्टिक युक्त विष्ठा समुद्री जल में गहराई में बैठ जाती है जहां ये समुद्री जीवन के लिए कम हानिकारक होती हैं। और तली में बैठे प्लास्टिक कणों को उठाना आसान हो जाता है।
लेकिन इकट्ठा करने के बाद इसके निस्तारण की समस्या उभरती है। शोधकर्ता यह संभावना तलाशना चाहती हैं कि क्या माइक्रोप्लास्टिक युक्त विष्ठा से उपयोगी बायोफिल्म बनाई जा सकती है?
लेकिन उल्लखेनीय प्रभाव देखने के लिए बहुत अधिक संख्या में नीली सीपियों की ज़रूरत होगी। सिर्फ न्यू जर्सी खाड़ी के पानी को ‘माइक्रोप्लास्टि रहित’ बनाने के लिए हर रोज़ करीबन 20 लाख से अधिक नीली सीपियों को लगातार 24 घंटे प्रति फिल्टर करने का काम करना पड़ेगा।
बहरहाल यह समाधान बड़े पैमाने पर कुछ माइक्रोप्लास्टिक्स कम करने में तो मदद करेगा लेकिन मूल समस्या को पूरी तरह हल नहीं करेगा। इतनी सीपियां छोड़ने के अपने पारिस्थितिक असर भी होंगे। इसके अलावा, ये सीपियां एक विशेष आकार के कणों का उपभोग करती हैं। इसलिए शोधकर्ताओं का भी ज़ोर है कि वास्तविक समाधान तो प्लास्टिक उपयोग को कम करना ही है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.science.org/do/10.1126/science.adj0274/abs/_20230530_on_mussels_plastic.jpg