खानपान पर ध्यान, सूक्ष्मजीवों को भुलाया

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र्ष 1826 में एक फ्रांसीसी वकील ऐंथेल्मे ब्रिलैट-सैवरीन का यह कथन खानपान के बारे में हमारी समझ को बखूबी व्यक्त करता है, “मुझे बताइए कि आप क्या खाते हैं, मैं आपको बता दूंगा कि आप क्या हैं।” कुछ ऐसी ही बात जर्मन दार्शनिक लुडविग एंड्रियास फॉयरबैक ने 1863 में कही थी, “आप वही हैं जो आप खाते हैं।” आगे चलकर 1942 में एक अमेरिकी स्वस्थ-खाद्य लेखक विक्टर लिंडलार ने तो स्वस्थ और संतुलित आहार पर एक किताब ही लिख डाली: यू आर व्हाट यू ईट: हाउ टू विन एंड कीप हेल्थ विद डाएट

विभिन्न संस्कृतियों में खान-पान की पसंद-नापसंद और उसकी गुणवत्ता के बारे में समझ अलग-अलग रही है। खाद्य के वैश्वीकरण ने प्राचीन काल से अब तक भोजन के विकल्पों को काफी सीमित कर दिया है। जनसंख्या बढ़ने के साथ भोजन की मांग में वृद्धि हुई है। 1998 में एस. बेंगमार्क और उनके दल द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति औसत जीवनकाल में करीबन 60 टन भोजन खा डालता है। आधुनिक खाद्य विकल्पों की मांग की आपूर्ति के लिए सघन उत्पादन ने मनुष्यों को कई जोखिमों में डाल दिया है, जिनमें खाद्य गुणवत्ता से लेकर बिगड़ते अर्थशास्त्र, ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन तथा जलवायु परिवर्तन की घटनाएं शामिल हैं।

खाद्य गुणवत्ता सम्बंधी नज़रिए खाद्य अर्थशास्त्र और स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कसौटियां हैं। गुणवत्ता मूल्यांकन तो एक व्यक्तिपरक मामला है। आम तौर पर उपभोक्ता किसी खाद्य सामग्री को खरीदते समय उसकी ताज़गी, स्वाद, रंग-रूप और कीमत जैसे प्रत्यक्ष सूचकों को देखते हैं। दूसरी ओर, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के लिए रासायनिक अवयव, पोषण सम्बंधी तथ्य, कुल सामग्री, ऐडिटिव्स और बेस्ट बिफोर डेट जैसे विशिष्ट संकेतक महत्वपूर्ण होते हैं।

सूक्ष्मजीवी गुणवत्ता एवं सुरक्षा के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता और नियामक दिशानिर्देश फिलहाल सिर्फ भोजन को खराब करने वाले सूक्ष्मजीवों और खाद्य वाहित रोगजनकों तक ही सीमित हैं। आजकल खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता सर्वेक्षणों में सूक्ष्मजीवी संकेतकों का उपयोग किया जाने लगा है।

लेकिन जिस चीज़ को अनदेखा किया गया है, वह है भोजन से जुड़ा लाभकारी सूक्ष्मजीव संसार जो मानव पोषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है। किसी भी स्वस्थ प्राणि या पौधे में लाभकारी और संभावित रूप से हानिकारक सूक्ष्मजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। सहजीवी (पारस्परिक रूप से लाभकारी), सहभोजी और रोगजनक सूक्ष्मजीवों के बीच संतुलन बाधित होने पर सूक्ष्मजीव असंतुलन की समस्या पैदा होती है। यहां भोजन का माइक्रोबायोम (सूक्ष्मजीवों का समग्र जीनोम) गुणवत्ता निर्धारित करता है जबकि उपभोक्ता का माइक्रोबायोम स्वास्थ्य का निर्धारण करता है, जिसमें भोजन का पाचन भी शामिल है।             

मनुष्यों की आंत में खरबों सूक्ष्मजीव होते हैं। बैक्टीरिया, आर्किया और यूकेरियोट जैसे सूक्ष्मजीवों के इस समुदाय में 98 लाख जीन होते हैं जो चयापचयी पदार्थ पैदा करते हैं। ये पदार्थ मेज़बान के चयापचय, प्रतिरक्षा, स्वास्थ्य और फीनोटाइप (यानी प्रकट रूप) को प्रभावित करते हैं। सूक्ष्मजीवी विविधता एक ‘स्वस्थ आंत’ की सूचक है।

मनुष्य की आंत का माइक्रोबायोम व्यक्ति के आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर होता है जिसमें आहार और दवाएं भी शामिल हैं। आंत के सूक्ष्मजीव शरीर को कई पोषक तत्व, अमीनो एसिड और बी विटामिन प्रदान करते हैं। आहार से प्राप्त बी विटामिन्स का अवशोषण छोटी आंत में होता है जबकि आंत के सूक्ष्मजीव से उत्पन्न बी विटामिन्स का उत्पादन और अवशोषण बड़ी आंत में होता है। ये बी विटामिन शरीर के प्रतिरक्षा संतुलन को बनाए रखते हैं। आंत के सूक्ष्मजीव डोपामाइन, सेरेटोनिन, गामा-एमीनोब्यूटरिक अम्ल और नॉरएपिनेफ्रीन जैसे न्यूरोट्रांसमीटरों का उत्पादन या उपयोग भी करते हैं और उनके न्यूरोट्रांसमीटर में उतार-चढ़ाव आंत-मस्तिष्क कड़ी के लिए एक आवश्यक संचार मार्ग प्रदान करता है।

स्वस्थ लोगों के मल के सूक्ष्मजीव जगत को चपापचयी दिक्कतों वाले रोगियों में प्रत्यारोपित करने (स्वस्थ व्यक्ति के मल के तनु घोल को रोगी व्यक्ति की आंत में पहुंचाने) के प्रयासों ने आंत के सूक्ष्मजीव जीनोम की भूमिका के बारे में हमारी समझ बढ़ाई है।

आंत में माइक्रोबायोम की स्थापना जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है और गर्भनाल के ज़रिए बैक्टीरिया का संचरण या गर्भाशय में मां की आंतों के बैक्टीरिया का भ्रूण में स्थानांतरण संभव है। शिशु विकास के शुरुआती चरण में आंत के सूक्ष्मजीव जगत की विविधता कम होती है और इसमें बाइफिडोबैक्टीरियम प्रजातियों और बैक्टीरॉइड्स प्रजातियों की संख्या अधिक होती है। यह माइक्रोबायोटा के स्थानांतरण और मां के दूध के माध्यम से प्राप्त होता है (लगभग 8 लाख बैक्टीरिया प्रतिदिन)। अधिक मात्रा में आंत के रोगजनकों की उपस्थिति की वजह से सूक्ष्मजीव असंतुलन कुपोषित बच्चों में आम तौर पर देखा जाता है। पहले साल में, मां के दूध से ठोस आहार पर जाने से सूक्ष्मजीव विविधता में वृद्धि होती है। तीन वर्ष की आयु तक सूक्ष्मजीव संघटन की संरचना, विविधता और कार्यात्मक क्षमताएं एक वयस्क की तरह होने लगती हैं। वयस्क अवस्था में आंत की सूक्ष्मजीव संरचना अपेक्षाकृत स्थिर रहती है। दूसरी ओर, बुज़ुर्गों में शॉर्ट-चेन फैटी एसिड उत्पादन और एमायलोलायसिस की क्षमता कम हो जाती है। इस तरह लंबे समय तक सूक्ष्मजीवों का सक्रिय या निष्क्रिय स्थानांतरण व्यक्ति की आंत के सूक्ष्मजीव संघटन में योगदान देता है।

लंबे समय का आहार पैटर्न आंत के माइक्रोबायोम के लचीलेपन का निर्धारण करता है जो अपने तईं जीवन की गुणवत्ता या आहार-सम्बंधी बीमारियों का नियंत्रण करता है। आंत के माइक्रोबायोम में गुणात्मक परिवर्तन या तो स्वयं माइक्रोबायोम की अपरिपक्वता (यानी एक ही उम्र के स्वस्थ व अस्वस्थ व्यक्ति के माइक्रोबायोम में अंतर) या माक्रोबायोम असंतुलन (सूक्ष्मजीवों की स्थायी हानि) के कारण होते हैं।

बांग्लादेश में जीनेट एल. गेहरिग और उनके दल द्वारा किए गए एक परीक्षण में पाया गया कि माइक्रोबायोम-लक्षित पूरक आहार गंभीर कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की माइक्रोबायोम अपरिपक्वता को ठीक करता है। इस पूरक आहार में विभिन्न मात्रा में चना, सोयाबीन, मूंगफली और केले वगैरह शामिल थे। यह अध्ययन 2019 में साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

किण्वित खाद्य पदार्थ महत्वपूर्ण विकल्प रहे हैं, खासकर शिकारी-संग्रहकर्ता जीवन शैली से कृषि आधारित जीवन शैली की ओर बदलाव के दौरान। लेकिन आज किण्वित पेय अधिक लोकप्रिय हो गए हैं। किण्वित खाद्य बनाने की पारिवारिक परंपराएं लगभग खत्म हो चुकी हैं। आज की बाज़ारू खाद्य सामग्री और फास्ट फूड ने लगभग 5000 किण्वित खाद्य सामग्री को गायब कर दिया है। ताज़ा खाद्य सामग्री को प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों से किण्वित करके कच्ची सामग्री से पौष्टिक या नशीले उत्पाद बनाए जाते थे। ब्रेड और बीयर का खमीर (सैकरोमायसीज़ सेरेवीसिए) से घनिष्ठ सम्बंध तो जाना-माना है। इस खमीर ने 14,000 से अधिक वर्षों में मनुष्यों के साथ हज़ारों जीन साझा किए हैं। चावल और उड़द के घोल से लोकप्रिय इडली बनाई जाती है। इसमें किण्वन प्राकृतिक सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है। दही, केफिर, टेम्पे, मीसो और कोम्बुचाज़ जैसे कई किण्वित खाद्य पदार्थों में जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जबकि कई अन्य में नहीं होते। लिहाज़ा, किण्वन की जैव रासायनिक परिभाषा केवल कुछ खाद्य किण्वनों पर ही लागू की जा सकती है। हाल ही में इंटरनेशनल साइंटिफिक एसोसिएशन फॉर प्रोबायोटिक्स एंड प्रीबायोटिक्स ने किण्वित खाद्य और पेय पदार्थों को निम्नानुसार परिभाषित किया है: ‘वांछित सूक्ष्मजीव वृद्धि और खाद्य घटकों के एंज़ाइम आधारित रूपांतरण’ द्वारा निर्मित खाद्य पदार्थ। इसमें ‘वांछित सूक्ष्मजीव वृद्धि’ पर काफी ज़ोर दिया गया है, इसलिए किण्वित खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और सुरक्षा काफी हद तक खाद्य पदार्थों और कच्ची सामग्री के माइक्रोबायोम पर निर्भर करती है। खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता में सुधार के अलावा, किण्वित खाद्य पदार्थ शर्करा के स्तर, भूख, तंत्रिका सम्बंधी विकारों और चिंता को भी नियंत्रित कर सकते हैं।

खानपान के प्रति जागरूकता भोजन और कच्चे माल के उत्पादन तथा प्रसंस्करण से शुरू होनी चाहिए न कि थाली में भोजन परोसे जाने के बाद। मिट्टी, पानी, ऊर्जा और पादप विविधता जैसे प्राकृतिक संसाधनों के वर्तमान उपयोग का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सघन औद्योगिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता के चलते रासायनिक रूप से संदूषित, कम पौष्टिक और जैव-सक्रिय यौगिकों तथा संशोधित माइक्रोबायोम वाली खाद्य सामग्री और कच्चे माल का उत्पादन होता है। मसलन एक कुदरती सेब में 10 करोड़ बैक्टीरिया होते हैं। रासायनिक उर्वरकों से उत्पादित फलों की तुलना में जैविक खेती से प्राप्त फलों में समृद्ध माइक्रोबायोम विविधता होती है। इसलिए आजकल का सेब डॉक्टर को दूर नहीं बल्कि व्यस्त रख सकता है।

आजकल की कृषि पद्धतियों और भोजन विकल्पों के चलते ‘आहार और दवा’ का मिला-जुला सेवन आम बात हो चली है। मल प्रत्यारोपण अब संभव दिख रहा है। पिछले वर्ष अमेरिका के खाद्य व औषधि प्रशासन ने क्लॉस्ट्रीडियम डिफिसाइल जनित जीर्ण दस्त के इलाज के लिए मल प्रत्यारोपण को मंज़ूरी दी है। वनस्पति, जीव-जगत, मनुष्य और पर्यावरणीय सूक्ष्मजीवों के परस्पर प्रभावों को देखते हुए भोजन के विकल्पों के साथ-साथ खाद्य उत्पादन शृंखला पर पुनर्विचार आवश्यक है।

कृषि क्षेत्र में नवीन प्रबंधन पद्धतियों का उद्देश्य पोषक तत्व और ऊर्जा के साथ एक स्वस्थ माइक्रोबायोम होना चाहिए। मिट्टी से लेकर उपभोक्ताओं के दस्तरखान तक माइक्रोबायोम मानक और निगरानी तकनीकों की मदद से खाद्य सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है।

राष्ट्रीय खाद्य आधारित आहार दिशानिर्देश (एफबीडीजी) मानव पोषण और उर्जा आवश्यकताओं पर समग्र दृष्टिकोण प्रदान करते हैं तथा स्वस्थ आहार चुनने और अपनाने के लिए संस्कृति-विशिष्ट सलाह देते हैं (https://www.fao.org/nutrition/education/food-based-dietary-guidelines)। इन एफबीडीजी का मुख्य लक्ष्य विभिन्न प्रकार के कुपोषण (यानी अल्पपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग एवं कतिपय कैंसर जैसी आहार सम्बंधी बीमारियों) का मुकाबला करना है।

इस तरह, मानव पोषण के लिए माइक्रोबायोम के योगदान और खेत से प्लेट तक भोजन एवं कच्चे माल से सम्बंधित माइक्रोबायोम के लिए नियामक दिशानिर्देशों पर विचार करते हुए नए दिशानिर्देश स्थापित करना फायदेमंद हो सकता है। माइक्रोबायोम अनुसंधान, मानकों और नवाचारों के साथ किण्वित खाद्य पदार्थों को पुनर्जीवित करने से स्वास्थ्य में सुधार, भोजन की बर्बादी में कमी और भोजन उत्पादन एवं प्रबंधन के लिए ऊर्जा के बेहतर उपयोग का रास्ता खुल सकता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.istockphoto.com/id/697871870/vector/intestinal-flora-gut-health-vector-concept-with-bacteria-and-probiotics-icons.jpg?s=612×612&w=0&k=20&c=aEil0s1iZJFgiM00eA7L5mYnV6kkl51yHbq4-Yr15wI=

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