पश्चिमी घाट का एक अहम विभाजक कहा जाने वाला पालक्कड़ दर्रा लगभग 40 किलोमीटर चौड़ा है। इसके दोनों ओर समुद्र तल से 2000 मीटर तक ऊंचे, एकदम खड़ी ढलान वाले नीलगिरी और अन्नामलाई पर्वत हैं।
ऐतिहासिक रूप से पालक्कड़ दर्रा केरल राज्य में प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण रहा है। यहां से कोयम्बटूर को पालक्कड़ से जोड़ने वाले सड़क और रेल मार्ग गुज़रते हैं। इसके बीच से भरतप्पुझा नदी बहती है। पश्चिमी घाट के ऊष्णकटिबंधीय वर्षावनों के विपरीत, पालक्कड़ दर्रे की वनस्पति शुष्क सदाबहार वन की श्रेणी में आती है। यह दर्रा पश्चिमी घाट में पाई जाने वाली वनस्पतियों और जंतुओं का विभाजक भी है। उदाहरण के लिए, मेंढकों की कई प्रजातियां दर्रे के केवल एक तरफ पाई जाती हैं।
भूवैज्ञानिक उथल-पुथल
यह दर्रा एक भूवैज्ञानिक अपरूपण क्षेत्र है जो पूर्व-पश्चिम की ओर खुलता है। अपरूपण क्षेत्र पृथ्वी की भूपर्पटी के कमज़ोर क्षेत्र होते हैं – यही कारण है कि कोयम्बटूर क्षेत्र में कभी-कभी भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं।
माना जाता है कि पालक्कड़ दर्रे का निर्माण ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के गोंडवाना भूभाग से टूटकर अलग होने के बाद महाद्वीपीय जलमग्न तटों के बहाव की वजह से हुआ है।
भारत और मेडागास्कर तब तक एक ही भूभाग का हिस्सा थे जब तक कि बड़े पैमाने पर हुई ज्वालामुखीय गतिविधि ने दोनों को विभाजित नहीं कर दिया था; यह विभाजन वहां हुआ था जहां पालक्कड़ दर्रा है – यह दर्रा बिलकुल मेडागास्कर के पूर्वी ओर स्थित रेनोत्सरा दर्रे का दर्पण प्रतिबंब है। दर्रा कितना पहले बना था? मेडागास्कर लगभग 10 करोड़ साल पहले अलग हो गया था, और दर्रा इससे पहले बन गया था; लेकिन कितने पहले बना था इस पर अभी सोच-विचार जारी है।
यह अनुमान है कि दर्रे के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रजातियों में अंतर का एक कारण प्राचीन नदी या सुदूर अतीत में समुद्र की घुसपैठ हो सकता है।
नीलगिरी पर्वत पर पाए जाने वाले हाथियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए अन्नामलाई पर्वत और पेरियार अभयारण्यों में पाए जाने वाले हाथियों से भिन्न होते हैं।
आईआईएससी बैंगलोर द्वारा किए गए एक अध्ययन में पेट पर सफेद धारी वाले शॉर्टविंग पक्षी के डीएनए अनुक्रम के विस्तृत डैटा का विश्लेषण किया गया है। शॉर्टविंग एक स्थानिक और संकटग्रस्त पक्षी है। ऊटी और बाबा बुदान के आसपास पाए जाने वाले पक्षियों को नीलगिरी ब्लू रॉबिन कहा जाता है; अन्नामलाई पर पाए जाने वाले पक्षी दिखने में थोड़े अलग होते हैं, और इन्हें व्हाइट-बेलीड ब्लू रॉबिन कहा जाता है।
दर्रे का दक्षिणी भाग
किसी भी क्षेत्र की जैव विविधता दो तरीकों से व्यक्त की जाती है। एक, प्रजातियों की प्रचुरता से। यानी किसी पारिस्थितिकी तंत्र में कितनी प्रजातियां पाई जाती हैं। और दूसरा, फाइलोजेनेटिक विविधता से। फाइलोजेनेटिक विविधता में देखा जाता है कि वहां उपस्थित प्रजातियों के बीच जैव विकास की दृष्टि से कितनी दूरी है।
हैदराबाद स्थित सीसीएमबी और अन्य संस्थानों के शोधदल द्वारा प्रोसीडिंग्स ऑफ दी रॉयल सोसायटी बी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पालक्कड़ दर्रे के दक्षिणी पश्चिमी घाट में ये दोनों विविधताएं प्रचुर मात्रा में हैं। मैग्नोलिया चंपका (चंपा) सहित यहां पेड़ों की 450 से अधिक प्रजातियां हैं, जो यहां लगभग 13 करोड़ वर्षों से अधिक समय से हैं।
भूमध्य रेखा से करीब होने के कारण गर्म मौसम और नम हवा के कारण दक्षिणी पश्चिमी घाट में बहुत बारिश होती है। इसलिए यह क्षेत्र जीवन के सभी रूपों के लिए एक आश्रय की तरह रहा है, भले ही बार-बार आते हिमयुगों और सूखे के चक्र ने आसपास के क्षेत्रों में जैव विविधता कम कर दी हो। देखा जाए तो पालक्कड़ दर्रे के उत्तर की ओर सालाना अधिक बारिश होती है, लेकिन दक्षिणी हिस्से में साल भर समान रूप से बारिश होती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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