डॉ. एन. बी. ड्रेगोन और उनके साथियों द्वारा आर्कटिक, अंटार्कटिक और एल्पाइन नामक पत्रिका में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है : समुद्रतल से 7900 मीटर की ऊंचाई पर सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) के साउथ कोल पर फ्रोज़न सूक्ष्मजीव संसार का विश्लेषण। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने माउंट एवरेस्ट के दुर्गम ढलानों पर मनुष्यों के सूक्ष्मजीव संसार का विश्लेषण किया है।
उन्होंने माउंट एवरेस्ट के दक्षिणी कोल में (समुद्र तल से 7900 मीटर ऊंचाई पर) पर्वतारोहियों द्वारा छोड़े गए सूक्ष्मजीवों को वहां की तलछट से निकाला।
साउथ कोल वह चोटी है जो माउंट एवरेस्ट को ल्होत्से से अलग करती है – ल्होत्से पृथ्वी का चौथा सबसे ऊंचा पर्वत है। इन दोनों चोटियों के बीच की दूरी केवल तीन किलोमीटर है। समुद्रतल से 7900 मीटर की ऊंचाई पर, दक्षिण कोल जीवन के लिए दूभर स्थान है – जुलाई 2022 में लू (हीट वेव) के दौरान यहां का सबसे अधिक तापमान ऋण 1.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
इंसानों को हटा दें तो यहां जीवन का नामोंनिशान नहीं दिखाई देता। जीवन का आखिरी निशान काफी नीचे, समुद्रतल से 6700 मीटर की ऊंचाई, पर दिखता है – जिसमें काई की कुछ प्रजातियां है और एक कूदने वाली मकड़ी है जो हवा में उड़कर आए फ्रोज़न कीड़ों को खाती है।
अधिक ऊंचाई पर, ऑक्सीजन कम होती है (समुद्र तल पर 20.9 प्रतिशत के मुकाबले 7.8 प्रतिशत), तेज़ हवाएं चलती हैं, तापमान आम तौर पर ऋण 15 डिग्री सेल्सियस रहता है और पराबैंगनी विकिरण का उच्च स्तर होता है। ये सभी चीज़ें जीवन को और मुश्किल बना देती हैं। चूंकि सभी पारिस्थितिक तंत्रों में सभी प्रजातियों-जीवों के बीच परस्पर निर्भरता है, यहां सूक्ष्मजीव भी जीवित नहीं रह सकते।
हवा और इंसान
लेकिन यहां सूक्ष्म जीव आते तो रहते हैं – पशु-पक्षियों या हवाओं के साथ। समुद्र तल से लगभग 6000 मीटर की ऊंचाई पर 20 माइक्रोमीटर से कम साइज़ के धूल के कण हवाओं के साथ उड़कर आ जाते हैं। इस धूल का कुछ हिस्सा मूलत: सहारा रेगिस्तान से आता है। इससे समझ में आता है कि इतनी ऊंचाई पर भी सूक्ष्मजीव संसार में इतनी विविधता कैसे है। 7000 मीटर की ऊंचाई पर मुख्यत: हवाएं और मनुष्य ही इनके वाहक का कार्य करते हैं।
राइबोसोमल आरएनए अनुक्रमण की परिष्कृत तकनीकों का उपयोग करके सूक्ष्मजीव विशेषज्ञों ने दक्षिण कोल पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों की पहचान कर ली है। यहां से एकत्रित किए गए सूक्ष्मजीवों में सर्वदेशीय मनुष्यों की छाप देखी गई है। इसके अलावा, यहां मॉडेस्टोबैक्टर अल्टिट्यूडिनिस और नागानिशिया फफूंद भी पाए गए हैं। इन्हें पराबैंगनी-प्रतिरोधी संस्करणों के रूप में जाना जाता है।
माउंट एवरेस्ट को ‘सागरमाथा’ नाम किसने दिया? नेपाल के विख्यात इतिहासकार स्वर्गीय बाबूराम आचार्य ने 1960 के दशक में इसे नेपाली नाम सागरमाथा दिया था।
कंचनजंगा चोटी
1847 में, भारत के ब्रिटिश महासर्वेक्षक एंड्रयू वॉग ने हिमालय के पूर्वी छोर में एक चोटी की खोज की थी जो कंचनजंगा से भी ऊंची थी – कंचनजंगा को उस समय दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। उनके पूर्वाधिकारी, सर जॉर्ज एवरेस्ट, ऊंची पर्वत-चोटियों में रुचि रखते थे और उन्होंने वॉग को नियुक्त किया था। सच्ची औपनिवेशिक भावना दर्शाते हुए वॉग ने इस चोटी को माउंट एवरेस्ट का नाम दिया था।
भारतीय गणितज्ञ और सर्वेक्षक, राधानाथ सिकदर, एक काबिल गणितज्ञ थे। वे यह दर्शाने वाले पहले व्यक्ति थे कि माउंट एवरेस्ट (तब यह चोटी-XV के नाम से जानी जाती थी) दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है। जॉर्ज एवरेस्ट ने सिकदर को 1831 में सर्वे ऑफ इंडिया में ‘गणक’ के पद पर नियुक्त किया था।
सिकदर ने सन 1852 में एक विशेष उपकरण की मदद से ‘चोटी XV’ की ऊंचाई 8839 मीटर दर्ज की थी। हालांकि, इसकी ऊंचाई की आधिकारिक घोषणा मार्च, 1856 में की गई थी। (स्रोत फीचर्स)
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