श्रीहरिकोटा द्वीप खारे पानी के एक लैगून – पुलिकट झील – के लिए एक ढाल का काम करता है। चूंकि यह इसरो का प्रक्षेपण स्थल है इसलिए इसका अधिकतर क्षेत्र पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित है। इस क्षेत्र में जलीय पक्षियों की 76 प्रजातियां पाई जाती हैं। झील हालांकि लगभग 60 किलोमीटर लंबी है, लेकिन इसकी औसत गहराई केवल एक मीटर है।
ज्वार-भाटों के साथ समुद्र तटों की खुलती-ढंकती नम भूमि (टाइडल फ्लैट) और मीठे व खारे पानी की नमभूमियां भूरे पेलिकन या हवासील (spot-billed pelican) के लिए आदर्श आवास हैं।
जब हम जल पक्षियों के बारे में सोचते हैं तो अधिकतर यही पक्षी हमारे मन में उभरता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने इसे रेड लिस्ट में शामिल किया है और इसे लगभग-संकटग्रस्त की श्रेणी में डाला है।
हवासील की हास्यास्पद चाल उसकी टांगों की कमज़ोर मांसपेशियों की ओर इशारा करती है, और इसी वजह ये पक्षी कोई माहिर तैराक नहीं हैं। और ये पानी की सतह के पास पाई जाने वाली मछलियां ही पकड़ते हैं। स्पॉट बिल्ड (यानी धब्बेदार चोंच वाला) पेलिकन, यह नाम इसे इसकी चोंच के किनारों पर पाए जाने वाले नीले धब्बों के कारण मिला है।
यह एक सामाजिक पक्षी है। कभी-कभी ये समूह में मछली पकड़ने जाते हैं, मिलकर अर्ध-वृत्ताकार चक्रव्यूह बना लेते हैं जो मछली को उथले पानी की ओर धकेलता है। हवासील छोटे पनकौवों के साथ भोजन साझा भी करते हैं।
पनकौवे कुशल गोताखोर होते हैं। उनके गोता लगाने के कारण गहराई में मौजूद मछलियां ऊपर सतह पर आ जाती हैं, जहां पेलिकन उन्हें पकड़ने के लिए घात लगाए होते हैं।
वयस्क हवासील का वज़न साढ़े चार-पांच किलोग्राम तक होता है। चोंच के नीचे एक थैली, जिसे गलास्थि कहते हैं, मछलियों को पकड़ने के लिए होती है। प्रजनन काल में, एक वयस्क भूरा पेलिकन एक बार में 2 किलो मछली पकड़ सकता है। भूरे पेलिकन अन्य जलीय पक्षियों के साथ टिकाऊ व मज़बूत कॉलोनी बनाते हैं। वे पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं और एक बार में दो से तीन अंडे देते हैं। जब चूज़ों की उम्र लगभग एक महीने हो जाती है तो ये चूज़े घोंसलों को नष्ट कर देते हैं।
इनकी प्रजनन कॉलोनियां गांवों के बहुत करीब या गांवों के अंदर ही होती हैं। और ये पक्षी मानव गतिविधि से परेशान नहीं होते हैं। गांव के लोग पेलिकन और उनके घोंसलों का स्वागत करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं। गांव के लोग भूरे पेलिकन की बीट का उपयोग उर्वरक के रूप में करते हैं। प्रजननकाल के बाद, भूरे पेलिकन की आबादी बहुत बड़े क्षेत्र में भोजन की तलाश में फैल जाती है।
2005 में फोर्कटेल में कन्नन और मनकादन द्वारा प्रकाशित एक व्यापक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में भूरे पेलिकन की संख्या लगभग 6,000-7,000 है। सर्वेक्षण में, दक्षिण भारत में तंजावुर के पास करैवेट्टी-वेट्टांगुडी, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के पास कुंतनकुलम, कर्नाटक में कोकरबेल्लुर (मांड्या ज़िला) और करंजी झील (मैसूर शहर), और आंध्र प्रदेश में गुंटूर के पास उप्पलपाडु और पुलीकट झील के पास नेलपट्टू में इनके प्रजनन स्थल पाए गए थे। आंध्र प्रदेश में हाल में कोलेरू झील में इन पक्षियों की एक बड़ी प्रजनन कॉलोनी नष्ट हो गई, जहां एक्वाकल्चर के चलते पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो गया था।
पुरावनस्पति विज्ञानी बताते हैं कि पुलिकट झील, जो अब एक खारा दलदल है, 16वीं शताब्दी में एक घना मैंग्रोव वन हुआ करती थी। नमभूमि का पारिस्थितिक तंत्र वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड को ‘ब्लू कार्बन’ के रूप में सोख लेता है। कार्बन सिंक के रूप में, मैंग्रोव वन प्रति हैक्टर 1000 टन कार्बन संग्रहित कर सकते हैं।
वैश्विक महत्व की नमभूमियों को रामसर स्थल कहा जाता है। रामसर नाम ईरान के उस शहर के नाम पर पड़ा है जहां 1971 में वैश्विक नमभूमि संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह संधि 1975 में प्रभावी हुई थी। भारत में 75 रामसर स्थल हैं, जिनमें से 14 तमिलनाडु में हैं। इनमें तीन रामसर स्थल पिछले साल जोड़े गए हैं: करिकिली पक्षी अभयारण्य, पल्लीकरनई मार्श रिज़र्व फॉरेस्ट और पिचावरम मैंग्रोव। खुशकिस्मती से भूरे पेलिकन इन सभी रामसर स्थलों पर पाए जाते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.thainationalparks.com/img/species/wiki/2013/07/09/6230/spot-billed-pelican-w-1500.jpg