एएलएस नामक रोग की वजह से एक महिला की बोलने की क्षमता पूरी तरह जा चुकी थी। एएलएस या लाऊ गेरिग रोग व्यक्ति को क्रमश: लकवा ग्रस्त करता जाता है। वह महिला आवाज़ तो पैदा कर सकती थी लेकिन शब्द समझने योग्य नहीं होते थे। अब उसी महिला ने एक मस्तिष्क इम्प्लांट की मदद से बोलने का रिकॉर्ड स्थापित कर दिया है।
यह दावा स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक दल ने बायोआर्काइव्स नामक वेबसाइट पर प्रकाशित शोध पत्र में किया है। महिला की पहचान गोपनीय रखने के लिए उसे छद्मनाम T12 से संबोधित किया गया है। रिकॉर्ड यह है कि T12 लगभग 62 शब्द प्रति मिनट की रफ्तार से बोल पा रही है। हम आम तौर पर करीब डेढ़ सौ शब्द प्रति मिनट की गति से बोलते हैं और बोलना संप्रेषण का सचमुच सबसे तेज़ तरीका है।
तो सवाल है कि यह करिश्मा हुआ कैसे और आगे की दिशा क्या होगी।
दरअसल, इससे जुड़े शोधकर्ता कृष्णा शिनॉय पिछले कई वर्षों से मस्तिष्क-कंप्यूटर के संपर्क बिंदु की गति को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहे हैं। इसके लिए वे एक छोटी सी पट्टी पर कई इलेक्ट्रोड लगाकर उसे व्यक्ति के मस्तिष्क के मोटर कॉर्टेक्स में स्थापित कर देते हैं। यह मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो गतियों को नियंत्रित करने में भूमिका निभाता है। इस उपकरण की मदद से शोधकर्ता यह रिकॉर्ड कर पाते हैं व्यक्ति की कौन-सी तंत्रिकाएं एक साथ सक्रिय हो रही हैं। इस पैटर्न से यह पता चल जाता है कि वह व्यक्ति क्या क्रिया करने के बारे में सोच रहा है, भले वह व्यक्ति लकवाग्रस्त हो।
इससे पहले जो प्रयोग हुए थे उनमें लकवाग्रस्त व्यक्ति से हाथों की हरकत करने के बारे में सोचने को कहा गया था। ऐसे सोचते वक्त उसकी तंत्रिका गतिविधि को भांपकर वह इम्प्लांट कंप्यूटर के पर्दे पर कर्सर को चलाता था या वे सिर्फ सोचकर वीडियो गेम्स खेल सकते थे या रोबोटिक भुजा पर नियंत्रण कर सकते थे।
इन सफलताओं के बाद स्टैनफोर्ड की टीम यह समझने में लगी थी कि क्या बोलने से जुड़ी क्रियाओं के संदर्भ में मोटर कॉर्टेक्स की तंत्रिकाओं में कुछ उपयोगी जानकारी होती है।
जैसे, यदि T12 बोलने की कोशिश में अपने मुंह, जीभ, स्वर यंत्र को एक खास तरह से चलाने का प्रयास कर रही है तो क्या इस बात को तंत्रिका गतिविधियों में भांपा जा सकता है? ज़ाहिर है बोलते समय मांसपेशियों की बहुत छोटी-छोटी, बारीक हरकतें होती है। लेकिन बड़ी खोज यह हुई कि इन छोटी-छोटी हरकतों के बारे में भी चंद तंत्रिकाओं में ऐसी सूचनाएं होती है जिनकी मदद से कोई कंप्यूटर प्रोग्राम यह अनुमान लगा सकता है कि व्यक्ति क्या शब्द बोलने का प्रयास कर रहा है। और जब यह सूचना कंप्यूटर को दी गई तो उसके पर्दे पर वे शब्द प्रकट हो गए जो T12 बोलना चाहती थी।
देखा जाए, तो बोलते समय हम मांसपेशियों की निहायत पेचीदा हरकतें करते हैं – हम हवा को बाहर धकेलते हैं, उसमें कंपन पैदा करते हैं ताकि वह ध्वनि के रूप में निकले, फिर मुंह, होठों, जीभ की हरकतों से उस ध्वनि को शब्दों का रूप देते हैं।
पहले भी इन हरकतों को शब्दों में ढालने की ऐसी कोशिशें की जाती रही हैं लेकिन स्टैनफोर्ड की टीम ने अधिक सटीकता और गति हासिल कर ली है। इसमें कृत्रिम बुद्धि की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही और आगे यह भूमिका बढ़ने के साथ सटीकता और गति बढ़ने की उम्मीद है। इसमें भाषा के मॉडल्स का उपयोग यह पूर्वानुमान करने में किया जाएगा कि एक शब्द बोलने के बाद क्या अपेक्षा की जाए कि वह व्यक्ति अगला शब्द क्या बोलेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://spectrum.ieee.org/media-library/a-paralyzed-als-patient-uses-a-brain-implant-to-steer-a-computer-cursor-to-various-targets.jpg?id=25580092&width=980