कुछ खगोल भौतिकविदों ने प्लॉस क्लाइमेट में पृथ्वी को ठंडा रखने के लिए सुझाव दिया है कि चंद्रमा से धूल का गुबार बिखेरा जाए ताकि सूर्य के प्रकाश को कुछ हद तक पृथ्वी तक पहुंचने से रोक जा सके।
शोधकर्ताओं की टीम ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसमें अंतरिक्ष में बिखेरी गई धूल से पृथ्वी तक पहुंचने वाली धूप के प्रभाव को 1 से 2 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। टीम के मुताबिक इसका सबसे सस्ता और प्रभावी तरीका चंद्रमा से धूल के गुबार प्रक्षेपित करना है जो एक शामियाना सा बना देगी। इस विचार को कार्यान्वित करने के लिए जटिल इंजीनियरिंग की आवश्यकता होगी।
वैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की और भी रणनीतियां हैं जिनको निकट भविष्य में अपनाया जा सकता है लेकिन कई शोधकर्ता इस विचार को एक बैक-अप के रूप में देखते हैं। कुछ जलवायु वैज्ञानिक ऐसे विचारों को वास्तविक समाधान से भटकाने वाला मानते हैं।
सूर्य के प्रकाश को रोकने के लिए किसी पर्दे के उपयोग का प्रस्ताव पहली बार नहीं आया है। लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के जेम्स अर्ली ने वर्ष 1989 में सूर्य और पृथ्वी के बीच 2000 किलोमीटर चौड़ी कांच की ढाल स्थापित करने का और 2006 में खगोलशास्त्री रॉजर एंजेल ने धूप को रोकने के लिए खरबों छोटे अंतरिक्ष यानों से छाते जैसी ढाल तैयार करने का विचार रखा था। इसके अलावा पिछले वर्ष एमआईटी शोधकर्ताओं के समूह ने बुलबुलों का बेड़ा तैनात करने का विचार रखा था।
लेकिन इन सभी विचारों से जुड़े असंख्य मुद्दे हैं। जैसे सामग्री की आवश्यकता एवं अंतरिक्ष में खतरनाक और अपरिवर्तनीय निर्माण। उदाहरण के लिए सूर्य की रोशनी के प्रभाव को कम करने के लिए 10 अरब किलोग्राम से अधिक धूल की आवश्यकता होगी। अलबत्ता, नए प्रस्ताव के प्रवर्तक अंतरिक्ष में धूल फैलाकर सूर्य के प्रकाश को रोकने के विचार को काफी प्रभावी मानते हैं। टीम के मॉडल के मुताबिक चंद्रमा की धूल इसके लिए सबसे उपयुक्त है। इसमें सबसे बड़ी समस्या 10 अरब कि.ग्रा. धूल को एकत्रित करना है जिसको बार-बार फैलाना होगा। इस सामग्री को सही स्थान पर पहुंचाना भी होगा। टीम ने धूल को प्रक्षेपित करने के विभिन्न तरीकों को कंप्यूटर पर आज़माया है।
वर्तमान सौर इंजीनियरिंग तकनीक से हटकर कई वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अन्य तरीकों का भी सुझाव दिया है। एक विचार समताप मंडल में गैस और एयरोसोल भरने का है। ऐसा करने से अंतरिक्ष में सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने वाले बादल तैयार किए जा सकते हैं। लेकिन इस तकनीक को विकसित करने में अभी समय लगेगा और ज़ाहिर है कि इसको अपनाने में कई चुनौतियां भी होंगी। इसमें एक बड़ी समस्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सहमति बनाना होगी जिसको सभी राष्ट्र, वैज्ञानिक समुदाय और संगठन स्वीकार करें। इस बीच यह विचार करना आवश्यक लगता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के पारंपरिक उपायों पर गंभीरता से अमल किया जाए। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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