हम जिस भूगर्भीय युग में जी रहे हैं, उसे एंथ्रोपोसीन कहा जाता है। यह नाम मनुष्य और उनकी गतिविधियों द्वारा डाले गए वैश्विक प्रभाव के कारण दिया गया है। एंथ्रोपोसीन युग में एक उल्लेखनीय बदलाव यह हुआ है कि अन्य प्रजातियों के विलुप्त होने की दर में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
अलबत्ता, जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता के प्रति शंकालु लोग कहते रहे हैं कि शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित विलुप्ति की दर में काफी विसंगतियां हैं। ऑनलाइन पत्रिका येल एनवायरनमेंट 360 कहती है कि प्रतिदिन 24 से 150 प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। संख्या 24 हो या 150, आंकड़ा चिंताजनक है। वास्तव में पिछले 400 वर्षों में जानवरों की लगभग 1000 प्रजातियों की विलुप्ति दर्ज की गई है।
पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों और पौधों की पूरी सूची हमारे पास नहीं है। हमें अब भी नई प्रजातियां मिल रही हैं और दर्ज हो रही हैं। दी हिंदू के 3 मार्च, 2021 के अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पश्चिमी घाट में मेंढकों की पांच नई प्रजातियां मिलने की खबर थी।
भारत में, कुछ समूहों (भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरु, दिल्ली विश्वविद्यालय, केरल वन अनुसंधान संस्थान आदि) ने नई प्रजातियों की खोज में शानदार योगदान दिया है।
नई प्रजातियों की तलाश
नई प्रजातियां खोजना बहुत मेहनत का काम हो सकता है। जैव विविधता हॉटस्पॉट वाले क्षेत्रों में कई नई प्रजातियां मिली हैं, जो सांपों और मच्छरों के लिए अतिउत्तम जगह हैं लेकिन मनुष्यों के लिए बहुत अनुकूल नहीं हैं।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय प्राणि विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI), कोलकाता के वैज्ञानिकों ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के नारकोंडम द्वीप से एक तरह की छंछूदर की एक नई प्रजाति खोजी है। इसे क्रोसिड्युरा नारकोंडेमिका नाम दिया गया है। यह छछूंदर इसके अलावा कहीं और नहीं पाई जाती। नारकोंडम एक छोटा सा द्वीप है और इस पर एक सुप्त ज्वालामुखी है। लगभग पूरे द्वीप पर घना जंगल फैला है।
शेक्सपीयर की एक रचना में छछूंदर ने अयोग्य और बदमिज़ाज जीव का दर्जा हासिल किया था। लेकिन यह जानवर एकांतप्रिय है। ये आकार में छोटे होते हैं; हाल ही में खोजी गई छछूंदर लगभग 10 से.मी. लंबी है और इसका दिल एक मिनट में 1000 बार धड़क सकता है।
ऐसी खोजें किस तरह उपयोगी हो सकती हैं? कुछ छछूंदर प्रजातियां ज़हरीली होती हैं, स्तनधारियों में यह गुण होना बहुत ही असामान्य बात है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि इस विष में मौजूद रसायन स्वास्थ्य पेशेवरों की रुचि का विषय हो सकते हैं।
जीवों के तेज़ी से हो रहे विलुप्तिकरण ने यथासंभव अधिकाधिक प्रजातियों के जीनोम का अनुक्रमण करने को गति दी की है। उम्मीद है कि वैज्ञानिक प्रगति की बदौलत ‘जुरासिक पार्क’ जैसा नज़ारा हम देख सकेंगे, जिसमें कम से कम कुछ विलुप्त जीवों को वापस जीवन दिया जा सकेगा। अधिक पेशेवर स्तर पर, जीनोम की तुलना करना मनुष्य के स्वास्थ्य को बेहतर करने के सुराग दे सकता है। पूरी तरह से अनुक्रमित जीनोम की नियमित अपडेटेड विकिपीडिया सूची में 100 पक्षी और 150 स्तनधारी हैं। और भी कई होने चाहिए।
इसलिए, यह जानना सुखद है कि भारतीय प्राणि विज्ञान सर्वेक्षण की प्रयोगशालाओं ने निकोबार द्वीप समूह के एक और दुर्लभ और स्थानिक स्तनधारी जीव – निकोबर वृक्ष छछूंदर – का माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम अनुक्रमण हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया है। वृक्ष छछूंदर वास्तव में छछूंदर नहीं हैं; ये काफी हद तक गिलहरी जैसी है। इन्हें एच1एन1 इन्फ्लुएंज़ा और हेपेटाइटिस संक्रमण के अध्ययन के लिए अच्छा मॉडल माना जाता है। उम्मीद करते हैं कि भारतीय प्राणि विज्ञान सर्वेक्षण जल्द ही निकोबार वृक्ष छछूंदर का पूरा जीनोम अनुक्रमित कर लेगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://th-i.thgim.com/public/news/national/4m9f2q/article66014644.ece/alternates/FREE_1200/Greater%20White-toothed%20shrew.JPG
https://en.wikipedia.org/wiki/Nicobar_treeshrew#/media/File:Nicobar_Treeshrew_(Tupaia_nicobarica_nicobarica).jpg