हममें से अधिकांश लोगों ने उबकाई या जी मिचलाने का अनुभव किया होगा। लेकिन वैज्ञानिक अब तक पूरी तरह यह समझ नहीं पाए हैं कि जी मिचलाने का जैविक आधार क्या है या इसे कैसे रोका जाए।
हाल ही में चूहों पर हुए एक अध्ययन ने इसका एक संभावित कारक दर्शाया है – मस्तिष्क की कुछ विशिष्ट कोशिकाएं, जो आंत से ‘संवाद’ करके मितली के एहसास का शमन कर देती हैं।
हारवर्ड विश्वविद्यालय की न्यूरोसाइंटिस्ट चुचु झांग और उनके साथियों ने अपना अध्ययन ‘एरिया पोस्ट्रेमा’ पर केंद्रित किया। ‘एरिया पोस्ट्रेमा’ मस्तिष्क स्तंभ के निचले हिस्से में स्थित एक छोटी-सी संरचना होती है। मितली से इसका सम्बंध पहली बार 1950 के दशक में पता चला था। जानवरों में इस हिस्से में विद्युत उद्दीपन उल्टी करवा देता है।
दरअसल पिछले साल झांग की टीम ने एरिया पोस्ट्रेमा में दो प्रकार की विशिष्ट उद्दीपक तंत्रिकाओं की पहचान की थी जो चूहों में मितली जैसा व्यवहार जगाते हैं। कृंतक जीव उल्टी तो नहीं कर पाते हैं, लेकिन जब उन्हें इसका एहसास होता है तो वे बेचैन हो जाते हैं। शोधकर्ताओं ने दर्शाया था कि एरिया पोस्ट्रेमा की तंत्रिकाएं ही कोशिकाओं को उकसाकर इस व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार होती हैं।
एरिया पोस्ट्रेमा की कोशिकाओं का जेनेटिक अनुक्रमण करने पर इस हिस्से में अवरोधक तंत्रिकाओं का भी पता चला था। वैज्ञानिकों का विचार था कि ये अवरोधक उद्दीपक तंत्रिकाओं के कार्य को दबा सकते हैं और मितली के एहसास को थाम सकते हैं।
इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चूहों को ग्लूकोज़ इंसुलिनोट्रॉपिक पेप्टाइड (जीआईपी) का इंजेक्शन लगाया। यह आंत में बनने वाला हार्मोन है जो मनुष्य और अन्य जानवरों में शर्करा और वसा को खाने के बाद बनता है। पूर्व में गंधविलाव पर हुए अध्ययन में देखा गया था कि जीआईपी उल्टी को रोकता है। इस आधार पर झांग का अनुमान था कि यह मितली को भी शांत कर सकता है। उनका यह भी अनुमान था कि यह रसायन मितली-रोधक तंत्रिकाओं को सक्रिय करने में भी भूमिका निभा सकता है।
अपने अनुमान को परखने के लिए शोधकर्ताओं ने चूहों को मितली-उत्प्रेरक पदार्थ युक्त सुगंधित पानी दिया। एक बार पीने के बाद चूहे इस पानी से कतराने लगे। लेकिन जब इस पानी में जीआईपी मिलाया गया तो इस पानी को उन्हीं कृंतकों ने दोबारा खुशी-खुशी पिया।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने ऐसे चूहे तैयार किए जिनके एरिया पोस्ट्रेमा में अवरोधक न्यूरॉन्स का अभाव था। जब इन चूहों पर अध्ययन दोहराया गया तो पाया गया कि मितली-उत्प्रेरक युक्त पानी में जीआईपी मिला देने से भी कोई फर्क नहीं पड़ा: चूहे यह पानी पीने से कतराते रहे।
सेल पत्रिका में प्रकाशित नतीजे बताते हैं कि जीआईपी अवरोधक तंत्रिकाओं को सक्रिय कर देता है जो एरिया पोस्ट्रेमा में उल्टी-प्रेरक तंत्रिकाओं को अवरुद्ध कर देती हैं, नतीजतन मितली का अहसास दब जाता है।
हालांकि यह अध्ययन मितली को दबाने में आंत-स्रावित जीआईपी की भूमिका पर केंद्रित था लेकिन झांग का कहना है कि शरीर में संभवतः ऐसे अन्य कारक भी होंगे जो मितली-अवरोधक तंत्रिकाओं को सक्रिय करते होंगे।
आगे शोधकर्ता जानना चाहते हैं कि आंत और एरिया पोस्ट्रेमा के बीच संवाद कैसे होता है। यह तो मालूम है कि इस क्षेत्र की तंत्रिकाएं वेगस तंत्रिका के माध्यम से आंत से जुड़ी हुई हैं, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मस्तिष्क की कोशिकाएं वास्तव में आंत से कैसे ‘बतियाती’ हैं।
यह अध्ययन अवरोधक और उद्दीपक तंत्रिकाओं को लक्ष्य करके मितली-शामक दवाइयां विकसित करने का रास्ता खोल सकता है। मौजूदा मितली-रोधी दवाएं मुख्यत: मस्तिष्क कोशिकाओं के दो सामान्य रासायनिक ग्राहियों को लक्ष्य करती हैं, लेकिन यह अब तक बहुत स्पष्ट नहीं है कि ये कैसे काम करती हैं। और कीमोथेरेपी और मॉर्निंग सिकनेस जैसी कुछ स्थितियों में ये दवाइयां उतनी कारगर नहीं होती हैं। नई दवाइयां कैंसर रोगियों के लिए विशेष रूप से मददगार साबित हो सकती हैं, जो अक्सर मितली के कारण उपचार क्रम का पालन करने से कतराते हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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