जलवायु परिवर्तन के लिए प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन की बात आते ही बड़े-बड़े उद्योगों का ख्याल आता है। लेकिन हाल ही में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि खाद्य प्रणाली में 20 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन खाद्य सामग्री और खाद्य उत्पादों के परिवहन से होता है।
कृषि एवं पशुपालन के लिए ज़मीन साफ करने और खाद्य सामग्री को दुकानों तक पहुंचाने के दौरान बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। राष्ट्र संघ के अनुसार लगभग एक तिहाई वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए खाद्य उत्पादन, प्रसंस्करण और पैकेजिंग ज़िम्मेदार है। इतने व्यापक स्तर पर उत्सर्जन ने कई शोधकर्ताओं का ध्यान खाद्य प्रणालियों से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की ओर आकर्षित किया है।
अलबत्ता, खाद्य प्रणाली की जटिलताओं के कारण इसका सम्बंध वातावरण में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड से पता करना थोड़ा पेचीदा मामला है। पूर्व में किए गए अध्ययन सिर्फ किसी एक उत्पाद, जैसे चॉकलेट, के दुकान तक पहुंचने और वहां से बाहर निकलने के दौरान होने वाले उत्सर्जन के आकलन तक ही सीमित थे। इसके अलावा इन आकलनों में किसी खाद्य उत्पाद में लगने वाले कच्चे माल के परिवहन से होने वाले उत्सर्जन को शामिल नहीं किया जाता था।
इन कमियों को दूर करने के लिए ऑस्ट्रेलिया स्थित युनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की सस्टेनेबिलिटी शोधकर्ता मेंगयू ली और उनके सहयोगियों ने 74 देशों और क्षेत्रों का डैटा एकत्रित किया और यह पता लगाया कि कोई खाद्य सामग्री कहां से प्राप्त होती है और एक स्थान से दूसरे स्थान तक कैसे पहुंचती है। इस आधार पर उन्होंने नेचर फूड पत्रिका में बताया है कि वर्ष 2017 में खाद्य उत्पादों के परिवहन के दौरान वातावरण में लगभग 3 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। यह पूर्व अनुमानों से 7.5 गुना अधिक है। अध्ययन के अनुसार उच्च आय वाले देश लगभग 50 प्रतिशत खाद्य-परिवहन उत्सर्जन करते हैं जबकि वैश्विक आबादी में उनका हिस्सा मात्र 12 प्रतिशत है। दूसरी ओर, कम आय वाले देश (विश्व आबादी में 50 प्रतिशत के हिस्सेदार) केवल 20 प्रतिशत खाद्य-परिवहन उत्सर्जन करते हैं। इतने बड़े अंतर का कारण शायद यह है कि उच्च आय वाले देश विश्व भर से खाद्य सामग्री आयात करते हैं और ताज़े फल और सब्ज़ियों के परिवहन के लिए रेफ्रिजरेटर के उपयोग से अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन होता है। फलों और सब्ज़ियों को उगाने की तुलना में उनके परिवहन में दुगना कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन होता है।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वनस्पति-आधारित आहार को सीमित किया जाए। दरअसल, कई अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि रेड मीट की तुलना में वनस्पति-आधारित आहार पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर है। रेड मीट के लिए अधिक भूमि लगती है और ग्रीनहाउस गैसों का भी अधिक उत्सर्जन होता है। तो रेड मीट की खपत कम करने और स्थानीय रूप से उत्पादित आहार लेने से जलवायु पर प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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