मानव गतिविधियों की वजह से हो रहे ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो या अन्यथा, फिलहाल मुद्दा यह है कि उत्तरी भारत औसतन 45 डिग्री सेल्सियस के दैनिक तापमान के साथ भीषण गर्मी की चपेट में है।
ऐसा माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के वैश्विक पैटर्न में परिवर्तन आएगा और भारत को और अधिक भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार ग्रीष्म लहर (लू) उस स्थिति को कहते हैं जब किसी दिन का तापमान लंबे समय के औसत तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री अधिक होता है (या मैदानी क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक और तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो)।
उदाहरण के लिए, दिल्ली में 1981 से 2010 के दौरान मई का औसत उच्च तापमान 39.5 डिग्री सेल्सियस रहा करता था लेकिन वर्तमान में 28 अप्रैल से प्रतिदिन का तापमान 44 डिग्री सेल्सियस है (औसत अधिकतम तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक)। ये महज आंकड़े नहीं हैं बल्कि इनका सम्बंध मानव शरीर, जन स्वास्थ्य और जलवायु संकट के इस दौर में शासन व्यवस्था से जुड़ा है।
इस संदर्भ में वेट-बल्ब तापमान महत्वपूर्ण है। वेट-बल्ब तापमान वह न्यूनतम तापमान है जो कोई वस्तु गर्म वातावरण में हासिल कर सकती है जब साथ-साथ उसे पानी के वाष्पन से ठंडा किया जा रहा हो। जब आसपास का वातावरण गर्म हो और वस्तु की सतह से पानी वाष्पित हो रहा हो तो उनके बीच एक साम्य स्थापित होता है और वस्तु के तापमान में कमी आती है। अपनी त्वचा का उदाहरण लीजिए। किसी गर्म दिन में जब आपकी त्वचा की सतह से पसीना वाष्पीकृत होता है तब आपकी त्वचा कम-से-कम जितने तापमान तक ठंडी हो सकती है उसे वेट-बल्ब तापमान कहा जाता है। यह तापमान सिर्फ साधारण तापमापी से नापा गया तापमान नहीं बल्कि वाष्पन की वजह से आई या आ सकने वाली गिरावट को दर्शाता है।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है। किसी सतह से पानी का वाष्पन सिर्फ तापमान पर निर्भर नहीं करता बल्कि आसपास की हवा में मौजूद नमी की मात्रा पर भी निर्भर करता है। यदि आसपास की हवा बहुत अधिक नम है, तो सतह से पानी का वाष्पन कम होगा और उस वस्तु के तापमान में उतनी कमी नहीं आ पाएगी जितनी शुष्क हवा में आती।
मौसम का अध्ययन करने वाले एक संस्थान मेटियोलॉजिक्स के अनुसार 26 अप्रैल 2022 को सुबह साढ़े आठ बजे दक्षिण दिल्ली का वेट-बल्ब तापमान लगभग 19.5 डिग्री सेल्सियस था जो 29 अप्रैल को बढ़कर 22 डिग्री सेल्सियस हो गया। ये दोनों ही तापमान फिलहाल सुरक्षित सीमा में हैं। लेकिन 32 डिग्री सेल्सियस के वेट-बल्ब तापमान में थोड़ी देर भी बाहर रहना हानिकारक हो सकता है। वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो, तो पर्याप्त पानी पीने और कोई शारीरिक कार्य किए बगैर भी कुछ घंटे बाहर छाया में गुज़ारना तक जानलेवा हो सकता है।
एशिया के मौसम मानचित्र में दिखेगा कि वेट-बल्ब तापमान भूमध्य रेखा की ओर जाने पर काफी तेज़ी से बढ़ता है और साथ ही भारत के पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट पर अधिक होता है। यह मुख्य रूप से नमी के कारण होता है। वातावरण में जितनी अधिक नमी होगी, उतना ही कम पसीना वाष्पित हो पाएगा और शरीर भी उतना ही कम ठंडा हो पाएगा। इसलिए किसी क्षेत्र में मात्र हवा का तापमान जानना पर्याप्त नहीं होता बल्कि आर्द्रता और वेट-बल्ब की रीडिंग भी महत्वपूर्ण है।
2020 में कोलंबिया युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि पृथ्वी की सतह के कई हिस्सों में गर्मी और आर्द्रता के कारण स्थिति जानलेवा बन चुकी है जबकि पहले ऐसा माना जा रहा था कि यह स्थिति सदी के अंत में आएगी। शोधकर्ताओं द्वारा 1979 से 2017 तक एकत्र किए गए आंकड़ों के अनुसार पूर्वी तटवर्ती और उत्तर-पश्चिमी भारत पर सबसे अधिक वेट-बल्ब तापमान होने की संभावना है।
ज़्यादा व्यापक स्तर पर देखें तो मध्य अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका, मध्य-पूर्व, उत्तर-पश्चिमी और दक्षिण-पूर्वी भारत तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के कुछ हिस्सों में अधिकतम वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस की सीमा तक 2010 में ही पहुंच चुका है।
ग्लोबल वार्मिंग से न सिर्फ तापमान में बढ़ोतरी हो रही है बल्कि समुद्र स्तर में भी वृद्धि हो रही है। इन दोनों समस्याओं के चलते भारत के कई क्षेत्र रहने योग्य नही रह जाएंगे। कब और कौन-से क्षेत्र निर्जन होंगे यह कई कारकों पर निर्भर करता है।
गौरतलब है कि भारत के प्रभावित क्षेत्र में कई ऐसे राज्य शामिल हैं जहां जन स्वास्थ्य व्यवस्था कमज़ोर और अपर्याप्त है, तथा चिकित्सा कर्मियों की कमी है। इन राज्यों की आय भी बहुत कम है और अधिकांश निवासी बाहरी काम करने वाले दिहाड़ी मज़दूर हैं और बहुत कम सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर रहे हैं। इन गर्म हवाओं के दौरान बाहर काम करना उनके लिए काफी जोखिम भरा होगा। इसे विडंबना ही कहेंगे कि जलवायु परिवर्तन में जिस समूह का समसे कम योगदान हैं उसे इसका सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
इस समस्या के समाधान के लिए ‘हीट एक्शन प्लान’ तैयार किया गया है जिसको सबसे पहले 2013 में अहमदाबाद में अपनाया गया था। तब से लेकर अब तक 30-40 शहर इस योजना को अपना चुके हैं जिसमें जागरूकता अभियान, चेतावनी प्रणाली और शीतलन व्यवस्था की स्थापना तथा कमज़ोर वर्गों में गर्मी के जोखिम को कम करने के प्रयास किए गए हैं। देखा जाए तो गर्मी के शहरी टापू जैसे प्रभाव के कारण शहरी क्षेत्रों की गर्म हवाएं और भी घातक हो गई हैं। ये प्रयास सराहनीय हैं लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। गर्म हवाओं की बात करते हुए आर्द्रता को शामिल करना अनिवार्य है क्योंकि वह वेट-बल्ब तापमान में वृद्धि करती है।
फिलहाल, आईपीसीसी के अनुसार भारत में वेट-बल्ब तापमान शायद ही 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहा है लेकिन इसमें जल्द ही परिवर्तन की संभावना है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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