कई बीमारियां लाइलाज हैं तो कई की इलाज की प्रक्रिया बेहद जटिल है। इसलिए दुनिया भर में वैज्ञानिक सतत रूप से शोध कार्य कर रहे हैं ताकि बीमारियों के बेहतर और सरल इलाज खोजे जा सकें। हाल के समय में एचआईवी, लकवा, तंत्रिका विकारों के इलाज में वैज्ञानिकों को नई सफलताएं प्राप्त हुई हैं। इसी के साथ स्वच्छ ऊर्जा एक अहम क्षेत्र है, जिसका विकल्प वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया है। आइए जानते हैं इन क्षेत्रों में कुछ हालिया उपलब्धियों के बारे में…
चलने लगे लकवाग्रस्त मरीज
स्विटज़रलैंड के लोज़ान युनिवर्सिटी हॉस्पिटल और स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी ने एक ऐसी डिवाइस बनाने में सफलता हासिल की है, जिसकी मदद से कमर के नीचे के हिस्से में लकवे का शिकार हुए तीन मरीज़ चल पाए हैं। इस ऐतिहासिक सफलता सम्बंधी रिपोर्ट जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुई है। यह प्रयोग 29 से 41 वर्ष की उम्र के तीन ऐसे लोगों पर किया गया था, जो लंबे समय से व्हील चेयर पर थे। इनमें से एक व्यक्ति मिशेल रोकंति की रीढ़ की हड्डी में इलेक्ट्रोडयुक्त डिवाइस लगाया गया। इसकी मदद से जल्द ही मिशेल ने अपने पैरों पर खड़े होना तथा बाकी दो ने तैरना तथा साइकिल चलाना तक शुरू कर दिया है।
इस तरह तीन व्यक्तियों के एपिड्यूरल स्पेस में कुल 16 इलेक्ट्रोड डिवाइस लगाए गए। ये इलेक्ट्रोड, पेट की त्वचा के नीचे प्रत्यारोपित एक पेसमेकर से दिमाग को संदेश पहुंचाने के साथ शरीर के विभिन्न अंगों तक उन्हें प्रेषित करने का काम करते हैं। जब इलेक्ट्रोड की मदद से दिमाग की तंत्रिकाओं को कोई संदेश मिलता है तो शरीर की मांसपेशियां फिर से सक्रिय होकर कार्य करना शुरू कर देती हैं। इस डिवाइस को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर द्वारा नियंत्रित भी किया जा सकता है।
स्टेम सेल से एचआईवी का इलाज
हाल ही में एचआईवी के इलाज में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है। वैज्ञानिकों ने पहली बार गर्भनाल की स्टेम कोशिका से एचआईवी का सफल इलाज करने में सफलता पाई है। प्रयोग अमेरिका की एक महिला पर किया गया जिसे 2013 में एड्स रोग की पुष्टि हुई थी। इससे पहले तमाम तकनीकों से महिला का इलाज किया जा चुका था। गर्भनाल की स्टेम कोशिका से किए गए उपचार से महिला को वायरस-मुक्त करने में सफलता प्राप्त हुई है। कैलिफोर्निया युनिवर्सिटी के डॉ. स्टीवन डीक्स के अनुसार गर्भनाल से स्टेम सेल प्राप्त करना आसान होता है और ये अधिक प्रभावी होती हैं। अत: यह तकनीक काफी मददगार होगी क्योंकि इस तरह के डोनर सरलता से मिल जाते हैं। पहले अस्थि मज्जा कोशिका की सहायता से इलाज किया जाता था किंतु अस्थि मज्जा दानदाता खोजना और मरीज़ के साथ मैचिंग करना मुश्किल होता था।
तंत्रिका विकार का निदान
मनुष्य में होने वाले तंत्रिका विकारों को जानने के लिए पहले जीनोम सीक्वेंसिंग ज़रूरी होता था। यह प्रक्रिया बेहद जटिल और समय लेने वाली होती है। हाल ही में जीनोमिक इंग्लैंड और क्वीन मैरी युनिवर्सिटी शोध टीम ने इस विकार का पता लगाने के लिए एक सरल विधि खोज निकाली है। इस शोध से जुड़े डॉ. एरियाना टुचि ने बताया है कि इस विधि से तंत्रिका विकार का पता डीएनए टेस्ट की विधि से सरलता से लगाया जा सकेगा। इस विधि में बीमारी वाले जीन की पहचान की जाती है और फिर उसका इलाज शुरू कर दिया जाता है। जीनोम सीक्वेंसिंग में तंत्रिका विकार के कारणों की पहचान मुश्किल से हो पाती थी।
कृत्रिम सूरज की रोशनी
हाल ही में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रिएक्टर बना लिया है जो सूरज की तरह परमाणु संलयन की क्रिया को संपन्न कर सकता है। इस रिएक्टर से इतनी मात्रा में ऊर्जा निकलती है कि वैज्ञानिक इसे कृत्रिम सूर्य कह रहे हैं। वैज्ञानिक जगत में इस उपलब्धि को मील का पत्थर कहा जा रहा है। अब वैज्ञानिकों ने आशा जताई है कि भविष्य में इस मशीन के द्वारा पृथ्वी पर सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध हो सकेगी। वैज्ञानिकों का प्रयास है कि धरती पर इस तरह के कई छोटे सूरज बनाए जाएं।
कम कार्बन, स्वच्छ ऊर्जा
यूके परमाणु ऊर्जा प्राधिकरण ने बताया है कि कल्हम सेंटर फॉर फ्यूज़न एनर्जी में जेट प्रयोगशाला है, जिसमें एक डोनट आकार की मशीन लगी हुई है। इसे टोकामैक नाम से पुकारा जाता है। इसमें कम मात्रा में ड्यूटीरियम व ट्रीशियम जैसे तत्व भरे गए हैं। इस मशीन के केंद्र को सूरज के केंद्र की तुलना में 10 गुना ज़्यादा गर्म जाता है ताकि इसमें प्लाज़्मा बन सके। प्लाज़्मा को सुपरकंडक्टर विद्युत-चुंबक की मदद से एक जगह बांधकर रखा जाता है। विद्युत-चुंबक की मदद से जब इसने घूमना शुरू किया तो इससे अपार मात्रा में ऊर्जा निकलने लगी, जो पूरी तरह सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा रही। गौरतलब है कि इस ऊर्जा की मात्रा 1 किलो कोयला या 1 लीटर तेल से पैदा हुई ऊर्जा की तुलना में 40 लाख गुना ज़्यादा रही। और तो और, यह ऊर्जा बेहद कम कार्बन उत्सर्जन वाली रही, जो पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक सिद्ध होगी। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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