हम रोज़ाना कई रसायनों का उपयोग करते हैं। ये रसायन औषधियों से लेकर सौंदर्य प्रसाधन सामग्री तक में इस्तेमाल किए जाते हैं। किंतु उन चीज़ों को बाज़ार में उतारने से पहले यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होता है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है, आखों में जलन पैदा नहीं करेंगे, चमड़ी पर फुंसियां पैदा नहीं करेंगे वगैरह। और इस जांच के लिए आम तौर पर जंतुओं पर प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन अब कंप्यूटर विशेषज्ञों ने एक ऐसी विधि तैयार की है जिसमें जंतु प्रयोगों की ज़रूरत नहीं रहेगी या बहुत कम हो जाएगी।
रसायनों की विषाक्तता की जांच आम तौर पर चूहों, खरगोशों और गिनी पिग्स (एक प्रकार का चूहा) पर की जाती है। किंतु इन जांच के परिणाम बहुत वि·ासनीय नहीं होते और ये प्रयोग बहुत महंगे भी होते हैं। नैतिकता व जंतु अधिकारों के सवाल तो इन प्रयोगों के साथ जुड़े ही हैं।
कंप्यूटर आधारित विधि का प्रकाशन थॉमस ल्यूक्टफेल्ड और साथियों ने टॉक्सिकोलॉजिकल साइन्सेज़ नामक शोध पत्रिका में किया है। यह विधि एक विशाल डैटाबेस पर आधारित है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने पिछले वर्षों में किए गए लगभग 8 लाख जंतु प्रयोगों के आंकड़े शामिल किए हैं। ये प्रयोग 10,000 रसायनों के परीक्षण से सम्बंधित हैं।
एक कंप्यूटर प्रोग्राम में ये सारे आंकड़े डाल दिए गए हैं। अब यह प्रोग्राम इनका विश्लेषण करके इन रसायनों को संरचना के आधार पर विषाक्तता के विभिन्न समूहों में रखता है। आजकल इस तरीके का उपयोग खूब हो रहा है और इसे मशीन लर्निंग कहते हैं जिसमें कंप्यूटर प्रोग्राम विशाल आंकड़ों के आधार पर पैटर्न निर्मित करता है।
इस विधि का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने कई रसायनों के जोखिमों की सही-सही भविष्यवाणी करने में सफलता प्राप्त की है। यहां तक कि उन्होंने नए रसायनों की विषाक्तता की भी भविष्यवाणी की है। अब यह कंप्यूटर प्रोग्राम व्यापारिक रूप से उपलब्ध कराने की योजना है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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