हाल ही में युनिवर्सिटी ऑफ एंटवर्प के कंप्यूटेशनल टेक्स्ट शोधकर्ता माइक केस्टेमोंट और उनके सहयोगियों ने गुमशुदा मध्ययुगीन रचनाओं का पता लगाने का प्रयास किया। गौरतलब है कि युरोप के मध्ययुग, यानी छठी सदी की शुरुआत से लेकर 15वीं सदी के अंत, के दौरान काफी कथा साहित्य रचा गया था। साहित्याकरों ने राक्षसों से लड़ते शूरवीरों और उनकी विदेश यात्राओं की कहानियां लिखीं जो आजकल की एक्शन फिल्मों जैसी थीं। उदाहरण के लिए, नीदरलैंड में 13वीं सदी में मैडॉक नामक एक पात्र रचा गया था जो संभवतः एक कविता का शीर्षक था लेकिन किसी को उस कविता की विषयवस्तु के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
गुमशुदा रचनाओं का पता ऐसे चलता है कि अन्य लेखक अपनी रचनाओं में उनका ज़िक्र करते हैं। कभी-कभी प्राचीन कैटलॉग पुस्तकों की उपस्थिति दर्शाते हैं। लेकिन इन रचनाओं में से एक अंश ही आज उपलब्ध है। गौरतलब है कि प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से किसी भी कृति की ढेर सारी प्रतियां नहीं होती थीं। ऐसे में यदि कोई विशेष रचना आग से नष्ट हो जाए या कीड़ों द्वारा खा ली जाए तो वह हमेशा के लिए खो जाएगी।
तो यह अनुमान लगाने के लिए कि वास्तव में कितनी रचनाएं रही होंेगी, इतिहासकार अपूर्ण प्राचीन पुस्तक कैटलॉग की तुलना वर्तमान ग्रंथों और उनके दायरे से करते हैं। इस संदर्भ में अतीत में मौजूद रहे साहित्य का बेहतर अनुमान लगाने के लिए केस्टेमोंट और उनके सहयोगियों ने “अनदेखी प्रजाति” मॉडल नामक तकनीक का उपयोग किया जिसका विकास किसी पारिस्थितिक तंत्र में अनदेखी प्रजातियों का पता लगाने के लिए किया गया था।
इसका विकास नेशनल त्सिंग हुआ युनिवर्सिटी की सांख्यिकीविद एनी चाओ द्वारा किया गया है। इसमें सांख्यिकी तकनीकों का उपयोग करते हुए वास्तविक मैदानी गणना के आंकड़ों के आधार पर उन प्रजातियों का अनुमान लगाया जाता है जो उपस्थित तो हैं लेकिन वैज्ञानिकों की नज़रों में नहीं आईं।
माइक केस्टेमोंट और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन के लिए 600 से 1450 के दौरान डच, फ्रेंच, आइसलैंडिक, आयरिश, अंग्रेज़ी और जर्मन में लिखी गई वर्तमान में उपलब्ध और संदिग्ध गुमशुदा मध्ययुगीन ग्रंथों की सूची को देखा। कुल रचनाओं की संख्या 3648 थी। साइंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अनदेखी प्रजाति मॉडल ने बताया कि मध्ययुगीन ग्रंथों के केवल 9 प्रतिशत ग्रंथ वर्तमान समय में उपलब्ध हैं। यह आंकड़ा 7 प्रतिशत के पारंपरिक अनुमानों के काफी करीब है। अलबत्ता, इस नए अध्ययन ने क्षेत्रीय वितरण उजागर किया। इस मॉडल के अनुसार अंग्रेज़ी के केवल 5 प्रतिशत जबकि आइसलैंडिक और आयरिश के क्रमशः 17 प्रतिशत और 19 प्रतिशत टेक्स्ट आज के समय में उपलब्ध हैं।
इस तकनीक के इस्तेमाल की काफी सराहना की जा रही है। आने वाले समय में इस तकनीक का उपयोग सामाजिक विज्ञान और मानविकी में भी किया जा सकता है।
बहरहाल, हारवर्ड युनिवर्सिटी में मध्ययुगीन सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास का अध्ययन करने वाले डेनियल स्मेल का कहना है कि यह मॉडल सिद्धांतकारों और सांख्यिकीविदों का खेल है। स्मेल के अनुसार लेखकों ने मान लिया है कि सांस्कृतिक रचनाएं सजीव जगत के नियमों का पालन करती हैं। और तो और, इस अध्ययन से कोई अतिरिक्त जानकारी भी नहीं मिल रही है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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