पेरू स्थित अमेज़न वर्षावन जैव विविधता से समृद्ध और अछूते वनों के रूप में जाने जाते हैं। 55 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले इन जंगलों में विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतु और वनस्पति पाई जाती हैं। लेकिन इसी जंगल में एक ऐसा ज़हरीला रहस्य छिपा है जो जैव विविधता के लिए खतरा बना हुआ है। हालिया शोध के अनुसार जंगल में ज़हरीले पारे का स्तर काफी अधिक है।
काफी समय से इन जंगलों में सोने का अवैध खनन किया जाता रहा है। इस खनन प्रक्रिया में भारी मात्रा में पारे का उपयोग किया जाता है जो सोना प्राप्त होने के बाद वाष्प के रूप में वातावरण में पहुंच जाता है। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की जैव-रसायनज्ञ जैकी गेर्सन के अनुसार पारे की अत्यधिक मात्रा अब खाद्य जाल (फूड वेब) में प्रवेश कर चुकी है।
गौरतलब है कि हाल के वर्षों में कोयला दहन को पीछे छोड़कर सोना खनन दुनिया के सबसे बड़े वायुजनित पारा प्रदूषण के स्रोत के रूप में उभरा है। इससे प्रति वर्ष 1000 टन पारा वातावरण में उत्सर्जित होता है जो मस्तिष्क व प्रजनन तंत्र के लिए काफी हानिकारक है। वास्तव में सोना निष्कर्षण में पारे का उपयोग एक सस्ता विकल्प है जिसमें पारे को अयस्क के घोल के साथ मिश्रित करने पर पारा सोने के साथ चिपक जाता है। इसके बाद पारे और सोने के मिश्रण को गर्म किया जाता है ताकि पारा वाष्प के रूप में अलग हो जाए।
इस तकनीक की मदद से पेरू के छोटे पैमाने के खनिकों ने मादरे दी दियोस नदी के किनारे के एक लाख हैक्टर से अधिक जंगल को उबड़-खाबड़ मैदान में बदल दिया है। वैज्ञानिकों ने पास के पोखरों और नदियों में पारे का पता लगाया है जिसने मछलियों को दूषित किया है। इन मछलियों का सेवन लोगों द्वारा किया जा रहा है। गौरतलब है कि पूर्व में किए गए अध्ययन में वनों की कटाई वाले क्षेत्र मादरे दी दियोस नदी के आसपास की मिट्टी में काफी कम स्तर में पारा पाया गया था। वैज्ञानिक यह स्पष्ट नहीं समझ पा रहे थे कि बाकी पारा जाता कहां है।
इसका पता लगाने के लिए गेर्सन और उनके साथियों ने खनन के लिए निर्वनीकृत दो क्षेत्रों, खनन क्षेत्र से 50 किलोमीटर दूर के जंगल, और खनन क्षेत्र पर स्थित जंगल का अध्ययन किया। उन्होंने यहां से वर्षा जल, मिट्टी और पेड़ों की पत्तियों के नमूने एकत्रित किए। नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार खदानों के आसपास के वनों में पारे की मात्रा 15 गुना अधिक थी (प्रति वर्ग मीटर मिट्टी में 137 माइक्रोग्राम) जो युरोप और उत्तरी अमेरिका के कोयला बिजली संयंत्रों के आसपास की मिट्टी की तुलना में काफी अधिक और चीन के औद्योगिक क्षेत्र के पारे के स्तर के बराबर है।
इससे पता चलता है कि जंगल के पेड़ पारा-सोख्ता का काम कर रहे हैं। पत्तियां पारा मिश्रित धूल में से पारे की वाष्प को सोख लेती हैं। पत्तियों के गिरने या वर्षा से यह धातु मिट्टी में प्रवेश कर जाती है। वृक्षों के चंदोबे से प्राप्त पानी में लोस एमिगोस में अन्य स्थानों से दुगना पारा मिला।
इन नतीजों से यह भी लगता है कि पत्तियां और मिट्टी ज़हरीले पारे को अपने अंदर सोखकर इसके दुष्प्रभावों को कम करती है। इस तरह से वृक्षों में कैद पारे से वहां के लोगों और वन्यजीवों के लिए आम तौर पर कोई जोखिम नहीं होता है।
फिर भी हवा में उड़ता पारा पानी में पहुंचकर जलीय बैक्टीरिया के संपर्क में आने पर मिथाइल मर्करी में परिवर्तित होकर घातक रूप ले सकता है। यह पारा जीव जंतुओं की कोशिकाओं में प्रवेश कर खाद्य जाल का हिस्सा बन जाता है। शोधकर्ताओं को वन्यजीवों में मिथाइल मर्करी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। सान्गबर्ड की तीन प्रजातियों में 12 गुना अधिक पारा पाया गया। इसी तरह 10 में से 7 ब्लैक-स्पॉटेड बेयर आई पक्षी में इतना अधिक पारा मिला जो उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है। ज़ाहिर है यह फूड वेब में पारे के शामिल होने का संकेत देता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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