हाल में जारी केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 18 राज्यों के 249 ज़िलों का भूजल खारा है, जबकि 23 राज्यों के 370 ज़िलों में मानक से अधिक फ्लोराइड पाया गया है। 21 राज्यों के 154 ज़िलों में आर्सेनिक की शिकायत है। इसी तरह 24 ज़िलों के भूजल में कैडमियम, 94 ज़िलों में लेड, 341 ज़िलों में आयरन और 23 राज्यों के 423 ज़िलों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा स्वीकार्य से अधिक मिली है। कृषि प्रधान राज्य उत्तर प्रदेश के 59, पंजाब के 19, हरियाणा के 21 और मध्य प्रदेश के 51 ज़िलों के भूजल में नाइट्रेट की मात्रा अधिक पाई गई है।
बता दें कि इन ज़िलों में उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग और सिंचाई की अवैज्ञानिक तकनीक के चलते यह समस्या पैदा हो रही है। जल में बढ़ती नाइट्रेट की मात्रा पाचन क्रिया और सांस लेने की तकलीफ को बढ़ा रही है। संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में जल संसाधन मंत्रालय ने केंद्रीय भूजल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भूजल प्रदूषण का ब्यौरा दिया। इसके मुताबिक देश के चार सौ से अधिक ज़िलों के भूजल में घातक रसायन घुलने से पीने के स्वच्छ व शुद्ध जल का गंभीर संकट पैदा हो गया है। कई ज़िलों के भूजल में पहले से ही फ्लोराइड, आर्सेनिक, आयरन और भारी धातुएं निर्धारित मानक से अधिक थीं, वहीं ज़्यादातर ज़िलों में नाइट्रेट और आयरन की मात्रा बढ़ रही है।
भूजल में नाइट्रेट बढ़ने के पीछे मानवजनित अतिक्रमण को ज़िम्मेदार बताया गया है। उल्लेखनीय है कि उन राज्यों के भूजल में नाइट्रेट ज़्यादा बढ़ रहा है जहां सघन खेती में उर्वरकों का बेतहाशा उपयोग हो रहा है। भारी धातुओं और अन्य घातक रसायनों के जल में घुलने से पेयजल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। यदि समय रहते प्रदूषण की रोकथाम न की गई तो पेयजल संकट खड़ा हो जाएगा।
मालूम हो, प्राकृतिक संसाधन सीमित होते हैं और इनके असीमित उपयोग से संकट खड़ा होना स्वाभाविक है। मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के साम्राज्य का भयानक विनाश किया है। इसका परिणाम है कि पृथ्वी के लगभग तीन-चौथाई भाग पर जल होने के बावजूद राष्ट्र संघ की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि विश्व की आधी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। भारत में स्थिति और भी अधिक भयावह है। ऐसी विकट परिस्थितियों में भूजल में नाइट्रेट की मात्रा का बढ़ना चिंताजनक है।
लोक सभा में लिखित उत्तर में मंत्रालय ने बताया कि 24 सितंबर 2020 की एक अधिसूचना के मुताबिक भूजल की गुणवत्ता के लिए कई सख्त प्रावधान किए गए हैं। जिनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना और जलाशयों व नदियों में गंदा पानी डालने के सारे स्रोतों को बंद करना शामिल है। इसी अधिसूचना के तहत केंद्र व राज्य सरकारें संयुक्त रूप से जल जीवन मिशन का संचालन कर रहीं हैं ताकि लोगों को उनके घर तक नल से सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति की जा सके। गौरतलब है कि इस मिशन की शुरुआत अगस्त 2019 में की गई थी। इसके तहत वर्ष 2024 तक देश के सभी ग्रामीण घरों को जलापूर्ति सुनिश्चित की जानी है।
स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के मुताबिक लगभग 80 फीसदी रोगों का कारण जल है। इसी प्रकार, आयुर्वेद के अनुसार जल कई रोगों का शामक है।
जानकारी के लिए बता दें कि नाइट्रेट नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन के संयोग से बने हुए ऐसे यौगिक होते हैं जो कई खाद्य पदार्थों, विशेषतः सब्ज़ियों, मांस एवं मछलियों में पाए जाते हैं। वस्तुतः नाइट्रेट जैविक नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के अंतिम उत्पाद होते हैं। पानी में नाइट्रेट की अत्यधिक घुलनशीलता तथा मृदा कणों की कम धारण क्षमता के कारण अति सिंचाई या अति वर्षा से खेतों में से बहता पानी अपने साथ नाइट्रेट को भी बहाकर कुंओं, नालों एवं नहरों में ले जाता है। इस प्रकार मनुष्य और पशुओं के पीने का पानी नाइट्रेट प्रदूषित हो जाता है।
देश की जनसंख्या के लिए अनाज उत्पादन हेतु रासायनिक उर्वरकों का अधिकतम उपयोग हो रहा है। विगत वर्षों में देश में नाइट्रोजन उर्वरकों की खपत बहुत बढ़ी है। वैज्ञानिकों ने भूजल में बढ़ती हुई नाइट्रेट सांद्रता का प्रमुख कारण नाइट्रोजन उर्वरक को ही माना है। यह भी देखा गया है कि उर्वरकों के संतुलित उपयोग की अपेक्षा मात्र नाइट्रोजन उर्वरक के उपयोग की वजह से ऐसी स्थिति पैदा होती है।
पेयजल में नाइट्रेट की अधिक सांद्रता मानव, मवेशी, जलीय जीव तथा औद्योगिक क्षेत्र को भी प्रभावित करती है। वस्तुतः नाइट्रेट स्वयं स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है, परंतु इसके अपचयन से बने नाइट्राइट की वजह से इसकी अत्यल्प मात्रा भी घातक हो जाती है। नाइट्रेट जब जल या भोजन के माध्यम से शरीर मे प्रवेश करता है तो शरीर के जीवाणुओं द्वारा नाइट्राइट में परिवर्तित कर दिया जाता है जो एक सशक्त ऑक्सीकारक होता है। यह रक्त में हीमोग्लोबिन को मेट-हीमोग्लोबिन में बदल देता है, जिसके कारण हीमोग्लोबिन अपनी ऑक्सीजन परिवहन की क्षमता गंवा देता है। अत्यधिक रूपांतरण की स्थिति में आंतरिक श्वास-अवरोध हो सकता है जिसके लक्षण चमड़ी तथा म्यूकस झिल्ली के हरे-नीले रंग से पहचाने जा सकते हैं। इसे ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम या साइनोसिस भी कहते हैं। छोटे बच्चों में यह रूपांतरण दुगनी गति से होता है। दूध पीते बच्चों की माताओं द्वारा उच्च नाइट्रेट युक्त जल पीने से दूध भी विषाक्त हो जाता है।
रूस के वैज्ञानिकों ने नाइट्रेट विषाक्तता के दुष्प्रभाव केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर भी देखे हैं। ये प्रभाव मात्र 105 से 182 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रेट सांद्रण पर ही दिखने लगते हैं। इसी प्रकार हृदय संवहनी तंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखे गए हैं।
नाइट्रेट के परिवर्तन से बना नाइट्राइट एन-नाइट्रोसो यौगिक बनाता है जो कैंसरकारी होते हैं। अनुसंधान से पता चला है कि उच्च नाइट्रेट युक्त जल तथा पाचन तंत्र के कैंसर में गहरा सम्बंध है। कुल मिलाकर, जल में नाइट्रेट की बढ़ती मात्रा विभिन्न रोगों को न्यौता देती है।
जल में बढ़ती नाइट्रेट की मात्रा मवेशियों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। एक अध्ययन में गाय, भैंस, बकरी जैसे दुधारू मवेशियों में नाइट्रेट विषाक्तता देखी गई है। जई, बाजरा, मक्का, गेहूं, जौ, सूडान ग्रास तथा राई ग्रास ऐसे पौधे हैं जिनमें नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है। यदि चारे को ऐसी भूमि में उगाया जाए जिसमें कार्बनिक तथा नाइट्रोजन तत्व अधिक हों और नाइट्रोजन उर्वरक अधिक मात्रा में प्रयोग किए गए हों तो ऐसी स्थिति में चारे में नाइट्रेट विषाक्तता अधिक हो जाती है। नाइट्रेट विषाक्तता पशुओं में जठर आंत्र शोथ उत्पन्न करती है। चारागाह में चरते पशुओं की अचानक मृत्यु भी देखी गई है। तेज़ दर्द, लार-गिरना, कभी-कभी पेट फूलना तथा बहुमूत्रता जैसे लक्षणों के साथ रोग का एकाएक प्रकोप होता है। श्वास का तेज़ी से चलना तथा श्वास में कष्ट होेना, तेज़ नाड़ी, लड़खड़ाना एवं तापमान का कम हो जाना भी इस रोग के अन्य लक्षण हैं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान इज़्ज़तनगर (बरेली) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि पैरा घास या अंगोला (ब्रैकिएरिया म्यूटिका) खाने से बछड़ों में अति तीव्र नाइट्रेट विषाक्तता और बकरियों में चिरकालिक नाइट्रेट विषाक्तता हो जाती है। देश के शुष्क क्षेत्रों में गर्मियों के दिनों में प्यासे पशु जब एक साथ अत्यधिक नाइट्रेट युक्त पानी पी लेते हैं तो उनमें नाइट्रेट विषाक्तता उत्पन्न हो जाती है जो कभी-कभी उनकी मृत्यु का कारण भी बन जाती है। कई दुधारू पशुओं में नाइट्रेट युक्त पानी पीने से दुग्धस्राव में कमी एवं गर्भपात भी देखे गए हैं।
सवाल यह है कि जल में बढ़ती नाइट्रेट की मात्रा को कैसे कम किया जाए? जल में नाइट्रेट की उपस्थिति पर सरकारें गंभीर क्यों नहीं हैं? गौरतलब है कि जल राज्य सूची का विषय है। राज्य सरकारें जल में बढ़ते प्रदूषक तत्वों के प्रति ढिलाई बरत रही हैं। केंद्र सरकार का रवैया उदासीन रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि पानी को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए। ऐसा होने पर व्यापक कार्य योजना विकसित करने में मदद मिलेगी। केंद्र और राज्यों के बीच सहमति से भूजल सहित जल का बेहतर संरक्षण, विकास और प्रबंधन संभव होगा।
जल में नाइट्रेट के कहर को देखते हुए इसके अधिक सांद्रण को कम किया जाना चाहिए। जल में नाइट्रेट की अत्यधिक घुलनशीलता के कारण इसका जल से अपनयन दुष्कर कार्य होता है। कृषि प्रधान देशों में नाइट्रेट प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुका है। वर्तमान में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर हमारे देश के 16 राज्यों के भूजल में नाइट्रेट का सांद्रण 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है। इनमें कई राज्यों के भूजल में कुल घुलनशील ठोस का मान भी अधिक है। पेयजल आपूर्ति में नाइट्रेट मुक्त जल प्राप्त करने हेतु वैकल्पिक विधियां अपनाए जाने की दरकार है। ऐसे क्षेत्रों में जहां जल में नाइट्रेट स्तर अधिक हो वहां नलकूप खोदकर जलापूर्ति करना, सपाट कुओं को चौड़ा करना अथवा अधिक गहराई से जल प्राप्त करने की कोशिशें होनी चाहिए। साथ ही जल संसाधन मंत्रालय को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सहयोग से डार्क ब्लॉक्स में स्थित गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों को चिंहित करने के लिए कारगर तंत्र विकसित करना चाहिए। सतही जल और भूमिगत जल स्रोतों में औद्योगिक कचरे की डंपिंग को कम करने और नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने जिन उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किए हैं, उनकी नियमित निगरानी के लिए एक व्यवस्था कायम की जानी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रमाण पत्र में दर्ज शर्तों का पालन किया जा रहा है। सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडलों को उपयुक्त और प्रभावी निगरानी तंत्र गठित करना चाहिए। आज जल संरक्षण हमारा विशेष सरोकार होना चाहिए, जिससे इस समस्या को विकराल रूप धारण करने से रोका जा सके।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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