वीनस फ्लाई ट्रैप जैसे अधिकांश मांसाहारी पौधे वर्ष भर शिकार करते हैं। अब शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मांसाहारी पौधा ढूंढा है जो सिर्फ पुष्पन के दौरान ही मांसाहार करता है।
मांसाहारी पौधों की लगभग 800 प्रजातियां हैं। कुछ मांसाहारी प्रजातियों के पौधों में शिकार के लिए विशेष संरचनाएं होती हैं, कुछ प्रजातियों के पौधों में चिपचिपी सतह होती है जिस पर कीट चिपक जाते हैं और फिसलकर पाचक रस से भरे कलश में गिर जाते हैं। ब्राज़ील में एक ऐसा मांसाहारी पौधा मिला था, जो भूमिगत पत्तियों की मदद से छोटे कृमि पकड़ता है।
हालिया अध्ययन में मिली प्रजाति ट्राइएंथा ऑक्सिडेंटलिस (एक तरह का एस्फोडेल) है। इस पौधे में जहां फूल लगते हैं उस डंठल का ऊपरी भाग छोटे-छोटे लाल रंग के रोएं से ढंका होता है, जिनसे चमकदार और चिपचिपा पदार्थ रिसता रहता है। रोएं से रिसती इन बूंदों में अक्सर मक्खियां और छोटे भृंग फंस जाते हैं।
ब्रिटिश कोलंबिया युनिवर्सिटी की ग्रेगरी रॉस ने जीनोमिक अध्ययन के दौरान देखा कि टी. ऑक्सिडेंटलिस में प्रकाश संश्लेषण को नियंत्रित करने वाले वही जीन नदारद हैं जो अन्य मांसाहारी पौधों में भी नदारद रहते हैं। इससे लगता था कि यह मांसाहारी पौधा है।
ब्रिटिश कोलंबिया युनिवर्सिटी के ही कियान्शी लिन जांचना चाहते थे कि क्या वाकई ट्राइएंथा मांसाहारी है। पहले उन्होंने कुछ फल मक्खियों को नाइट्रोजन का एक दुर्लभ समस्थानिक खिलाया। फिर वैंकूवर के पास के दलदल में लगे 10 अलग-अलग ट्राइएंथा पौधों में इन फल मक्खियों को चिपकाया। साथ ही उसी तरह के शाकाहारी पौधों में भी ऐसी फल मक्खियों को चिपकाया गया।
एक-दो सप्ताह बाद जांच पड़ताल के दौरान ट्राइएंथा के तनों, पत्तियों व फलों में नाइट्रोजन का वह समस्थानिक मिला, लेकिन शाकाहारी पौधों में नहीं। प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में शोधकर्ता बताते हैं कि ट्राइएंथा ने आधे से अधिक नाइट्रोजन अपने शिकार से प्राप्त की थी। यानी ट्राइएंथा मांसाहारी पौधा है। इसके अलावा यह भी देखा गया कि ट्राइएंथा के रोएं वही एंजाइम, फॉस्फेटेज़, बनाते हैं जिसकी मदद से अन्य मांसाहारी पौधे शिकार से पोषण लेते हैं।
कई मांसाहारी पौधे मक्खियों और छोटे भृंगों को फंसाने के लिए चिपचिपे रोएं का उपयोग करते हैं लेकिन ये रोएं फूलों से दूर होते हैं, ताकि परागण करने वाले कीट न फंसे। ट्राइएंथा में चिपचिपे रोएं उस मुख्य तने पर ही होते हैं जिस पर फूल लगते हैं। शोधकर्ताओं को लगता है कि ट्राइएंथा के रोएं छोटे कीटों को आकर्षित करते हैं, मधुमक्खियां या अन्य परागणकर्ता नहीं चिपक पाते।
लेकिन कुछ शोधकर्ता इस बात से सहमत नहीं हैं कि ट्राइएंथा वाकई मांसाहारी है। हो सकता है कि ट्राइएंथा के रोएं महज उन कीड़ों को मारने के लिए हों जो बिना परागण किए उनसे पराग या मकरंद चुराने आते हैं। यह एक निष्क्रिय शिकारी लगता है, क्योंकि इसमें शिकार को फंसाने के लिए कोई विशेष बदलाव नहीं हुए हैं।
यह खोज दर्शाती है कि प्रकृति में इस तरह के और भी मांसाहारी पौधे हो सकते हैं, जो अब तक अनदेखे रहे हैं; शोधकर्ताओं को संग्रहालय में रखे कुछ फूलों के डंठल से चिपके छोटे कीट मिले हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि संभवत: ट्राइएंथा एक अंशकालिक मांसाहारी पौधा है। ट्राइएंथा की एक खासियत है कि यह एकबीजपत्री है और एकबीजपत्री मांसाहारी पौधे बहुत दुर्लभ हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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