गुलाब से लेकर बेशरम और चावल तक के फूलदार पौधे (आवृतबीजी या एंजियोस्पर्म) पृथ्वी के सबसे विविध और सफल जीवों में से हैं। इनकी 3,50,000 से अधिक प्रजातियां सुंदर, पौष्टिक और अपने-अपने पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। लेकिन डारविन के समय से ही जैव विकास के अध्येताओं के लिए यह एक गुत्थी रही है कि इनका विकास किस तरह हुआ। अब अत्याधुनिक तकनीक और मंगोलिया में मिले जीवाश्मों की मदद से शोधकर्ता इसे हल करने की दिशा में आगे बढ़े हैं।
आवृतबीजी लगभग 12.5 करोड़ वर्ष पहले विकसित हुए और पूरी पृथ्वी पर छा गए। ये बीजों के माध्यम से प्रजनन करते हैं, कुछ उसी तरह जिस तरह इनके पूर्व विकसित हुए चीड़, देवदार, गिंकगो जैसे नग्नबीजी (जिम्नोस्पर्म) करते हैं। लेकिन आवृतबीजियों में बीज निर्माण में कुछ नवाचार हुए जिससे वे फैलने में अधिक सफल हुए।
इनके फूलों के केंद्र में एक नलीदार संरचना स्त्रीकेसर होती है। स्त्रीकेसर का वर्तिकाग्र पराग ग्रहण करता और उसे अंडाशय में भेज देता है, जहां बीज विकसित होते हैं। यही अंडाशय आगे जाकर फली के रूप में परिपक्व होता है। इस तरह एंजियोस्पर्म के बीजों पर दो आवरण – आंतरिक और बाहरी आवरण – बनते हैं। बाहरी आवरण जैसे मटर के दाने का बाहरी छिलका या सेम की रंगीन सतह।
एंजियोस्पर्म का विकास जिम्नोस्पर्म से हुआ है। लेकिन यह रहस्य ही रहा है कि इनमें स्त्रीकेसर और बीज की दूसरी परत कैसे विकसित हुई। पूर्व में, चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के जीवाश्म-वनस्पति विज्ञानी गोंगल शी और उनके साथियों को यूके, चीन और अंटार्कटिका से ऐसे जिम्नोस्पर्म के जीवाश्म मिले थे जिनके बीज कप जैसे आकार के बाहरी आवरण से ढंके थे। इन कप-नुमा बाहरी आवरण को उन्होंने कप्यूल नाम दिया और संभावना जताई कि इसी रचना से एंजियोस्पर्म में बीज के दूसरे बाहरी कवच के विकास की शुरुआत हुई होगी।
लेकिन वर्तमान में किसी भी जीवित पौधे में इस तरह के कप्यूल नहीं दिखते और शोधकर्ताओं को जो जीवाश्म मिले थे वे आंशिक रूप से सड़ चुके पौधों के थे, जिससे इनका पूरी तरह से विश्लेषण करना असंभव रहा।
इसके बाद 2015 में शोधकर्ताओं को मंगोलिया की जारूद बैनर नामक कोयला खदान से पत्थर में बहुत ही अच्छी तरह से संरक्षित दलदली पौधे का जीवाश्म मिला; इस जीवाश्म में भी कप्यूल थे। सूक्ष्मदर्शी से अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने पत्थर को हीरे की आरी से काटा, पॉलिश किया और सतह को एसिड की मदद से तराशा ताकि जीवाश्म की छीलन तैयार की जा सके। इसके अलावा त्रि-आयामी संरचना बनाने के लिए उन्होंने कप्यूल्स का सीटी स्कैन भी किया। उन्होंने पाया कि आधुनिक एंजियोस्पर्म बीजों के बाहरी आवरण की तरह ही इस कप्यूल के ऊतक भी विकसित होते बीजों के चारों ओर लिपटे हुए थे।
कप्यूल-युक्त अन्य जीवाश्मों से इनकी तुलना करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि ये सभी पौधों के उस समूह में आते हैं जिनमें विभिन्न तरह के कप्यूल होते हैं। इन जीवाश्मों से न सिर्फ यह पता चलता है कि बीज में दूसरा आवरण कैसे आया, बल्कि यह भी पता चलता है कि स्त्रीकेसर कैसे विकसित हुए – इन कप्यूल्स में कुछ इस तरह की पत्तियां भी दिखाई दीं जो आगे जाकर स्त्रीकेसर में विकसित हुई होंगी। बहरहाल, इस तरह की और भी खोज और अध्ययन की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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