वैसे तो मध्य और दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले उदबिलाव एकाकी होते हैं लेकिन हाल ही के अध्ययन में पता चला है कि वे खूब बड़बड़ाते रहते हैं। वे विभिन्न तरह से किंकियाकर और गुर्राकर आश्चर्य से लेकर प्रसन्नता तक व्यक्त करते हैं। इन नतीजों से यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि उदबिलावों में संवाद-संचार कैसे विकसित हुआ। इसके अलावा यह अध्ययन इन लुप्तप्राय जानवरों के संरक्षण में भी मदद कर सकता है।
सभी उदबिलाव गुर्राकर और चिंचियाकर संवाद करते हैं। कुछ सामाजिक उदबिलाव, जैसे अमेज़न के विशाल उदबिलाव (Pteronura brasiliensis), 22 अलग-अलग तरह की आवाज़ें निकालते हैं। दूसरी ओर, नॉर्थ अमेरिकी नदीवासी उदबिलावों (Lontra canadensis) जैसे कुछ एकाकी प्रवृत्ति के उदबिलावों में संवाद के केवल चार तरीके ज्ञात हैं। लेकिन नियोट्रॉपिकल नदीवासी उदबिलावों (L. longicaudis) में संवाद का अध्ययन मुश्किल रहा है, क्योंकि ये वर्ष में एक बार ही प्रजनन के लिए साथ आते हैं।
इसलिए इन उदबिलावों में संचार-संवाद का अध्ययन करने के लिए विएना विश्वविद्यालय की जैव ध्वनिकीविद सबरीना बेटोनी ने तीन जोड़ी नियोट्रॉपिकल नदीवासी उदबिलावों का साल भर अध्ययन किया। ये उदबिलाव ब्राज़ील तट के निकट कैटरिना टापू पर एक शरण-स्थल में नर-मादा जोड़ियों के रूप में रखे गए थे। बेटोनी ने उनके द्वारा निकाली गई हर आवाज़ को रिकॉर्ड किया, और उनकी ध्वनि तरंगों का विश्लेषण करके उनका वर्गीकरण किया। इसके अलावा उन्होंने तीन महीने तक इन उदबिलावों पर नज़र भी रखी ताकि यह समझ सकें कि वे किन परिस्थितियों में किस तरह की आवाज़ निकालते हैं।
प्लॉस वन पत्रिका में उन्होंने बताया है कि वे विभिन्न व्यवहारों के लिए छह तरह की आवाज़ें निकालते हैं। जब वे मनुष्यों या अन्य जानवरों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं तो वे हल्का से चिंचियाते हैं। भोजन या दुलार की विनती करने के लिए वे धीमे से कुड़कुड़ाते हैं। खेलने के दौरान वे किंकियाते हैं। जब कुछ नया होते देखते हैं (जैसे भोजन लेकर आता व्यक्ति) तो वे अपने पिछले पैरों पर खड़े होकर सांस छोड़ने जैसी ‘हाह’ की आवाज़ निकालते हैं। इसके अलावा, लड़ाई के समय या अपने भोजन की सुरक्षा में वे गुर्राते हैं।
नियोट्रॉपिकल नदीवासी उदबिलाव की ये आवाज़ें सिर्फ उनकी ही प्रजाति तक सीमित नहीं हैं। इनमें से कुछ तरह की आवाज़ें, जैसे हाह या चिंचियाने की, पूरी तरह से भिन्न वातावरण में रहने वाले और भिन्न आनुवंशिक विशेषताओं वाले उदबिलावों में भी हैं। विभिन्न प्रजातियों में ध्वनियों की समानता देख कर लगता है कि ये ध्वनियां इनके साझा पूर्वज में मौजूद थीं। शोधकर्ता आगे जानना चाहते हैं कि वाणि-उत्पादन कैसे विकसित हुआ होगा। अन्य शोधकर्ता चेताते हैं कि संभवत: जंगली उदबिलाव कैद में रखे उदबिलावों जैसी ध्वनि न निकालते हों।
बहरहाल, उम्मीद है कि इस काम से उदबिलावों के संरक्षण में मदद मिलेगी। इस प्रजाति को लुप्तप्राय घोषित किया गया है। आवाज़ों की मदद से इन्हें एक जगह बुलाकर गिनती की जा सकेगी। और वैसे भी यह अध्ययन लोगों को इनके प्रति आकर्षित तो करेगा ही। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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