भारतीय बाघों में अंत:जनन के खतरे

ह सही है कि दुनिया भर में बिल्ली कुल की विभिन्न उप-प्रजातियों की अपेक्षा भारतीय बाघ में सबसे अधिक आनुवंशिक विविधता दिखती है, लेकिन नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज़ (एनसीबीएस), बैंगलोर द्वारा हाल ही में किया गया एक अध्ययन बताता है कि इनके सीमित और घटते आवास के कारण इनकी आबादी छोटे-छोटे हिस्सों में बंटती जा रही है। इस वजह से इनमें अंत:जनन की स्थिति बन सकती है और इनकी विविधता में कमी आ सकती है।

सेंटर की आणविक पारिस्थितिकी विज्ञानी डॉ. उमा रामकृष्णन बताती हैं कि जैसे-जैसे मानव आबादी फैली, पृथ्वी पर उसके हस्ताक्षर भी बढ़े। इंसानी गतिविधियों ने बाघ और उनके आवास को प्रभावित किया है, और उनके आवागमन को बाधित किया है। इसके चलते बाघ अपने संरक्षित क्षेत्र में ही सिमट गए हैं और वे केवल अपने ही क्षेत्र के अन्य बाघों के साथ प्रजनन कर पाते हैं, जिससे एक समय ऐसा आएगा जब बाघ अपने ही रिश्तेदारों के साथ प्रजनन कर रहे होंगे।

हम नहीं जानते कि यह अंत:जनन उनके स्वास्थ्य और उनके जीवित रहने की क्षमता को किस तरह प्रभावित करेगा लेकिन यह तो स्पष्ट है कि आबादी में आनुवंशिक विविधता जितनी अधिक होगी भविष्य में जीवित रहने की संभावना भी उतनी बढ़ेगी। अध्ययन के अनुसार बाघ का छोटे-छोटे इलाकों में बंटा होना उनकी आनुवंशिक विविधता में कमी लाकर भविष्य में उन्हें विलुप्ति की कगार पर पहुंचा सकता है।

हालांकि वर्तमान में बाघ के संरक्षण पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है लेकिन फिर भी हमें उनके वैकासिक इतिहास और जीनोमिक विविधता के बारे में बहुत कम जानकारी है। विश्व के 70 प्रतिशत बाघ भारत में पाए जाते हैं। इस दृष्टि से भारतीय बाघ की आनुवंशिक विविधता को समझना दुनिया भर में बाघ संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

एनसीबीएस के इस तीन-वर्षीय अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टाइगर की जीनोमिक विविधता और इस विविधता को पैदा करने वाली प्रक्रिया के बारे में समझ प्रस्तुत की है। इसमें उन्होंने 65 बाघों के पूरे जीनोम का अनुक्रमण किया, और आनुवंशिक विविधता में विभाजन का पता लगाया, अंत:जनन के संभावित प्रभाव देखे, जनसांख्यिकीय इतिहास पता किया और स्थानीय अनुकूलन के संभावित चिंहों की जांच की। अध्ययन में पाया गया कि अब कई बाघ आबादियों में विविधता में कमी आई है। और बाघ की अधिक आबादी किन्हीं-किन्हीं जगहों पर सीमित हो गई है जो उनमें अंत:जनन की संभावना बढ़ाती है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए हमें बाघ के विभिन्न आवासों के बीच सुचारु संपर्क गलियारे बनाने होंगे ताकि उनका आवागमन क्षेत्र बढ़ सके। इसके अलावा उनके लिए उचित संरक्षित आवास बनाने चाहिए – जैसे उनके आवास क्षेत्रों में घनी आबादी वाली बस्तियां या अत्यधिक मानव गतिविधियां ना हों।

उत्तर-पूर्व भारत में पाए जाने वाले बाघ अन्यत्र पाए जाने वाले बाघों से सर्वथा भिन्न हैं। अत: हमें यह भी समझने की ज़रूरत है कि क्यों कुछ बंगाल बाघों में अंत:जनन की स्थिति बनी है। पिछले 20,000 वर्षों में बाघ की उप-प्रजातियों के बीच जो अलगाव पैदा हुए हैं वे बढ़ते मानव प्रभावों और एशिया महाद्वीप में हो रहे जलवायु सम्बंधी परिवर्तनों के कारण हुए हैं।

इसके अलावा शोधकर्ताओं का सुझाव है कि बाघ के जनसंख्या प्रबंधन और संरक्षण नीतियों में आनुवंशिक विविधता की जानकारी भी शामिल होनी चाहिए। उम्मीद है कि इससे भारतीय बाघ के संरक्षण मदद मिलेगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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