दुनिया में लाखों लोग इरीटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) से पीड़ित हैं। इस समस्या से पीड़ित लोगों को अक्सर पेट में मरोड़, अतिसार, या कब्ज़ का एहसास होता है। स्थिति तब और भी बुरी हो जाती है जब डॉक्टर कहते हैं कि ऐसा किसी चिंता की वजह से हो रहा है, या यह परेशानी महज उनके दिमाग की उपज है।
के.यू. ल्युवेन के गैस्ट्रोएन्टरोलॉजिस्ट गाय बोक्सटेन्स डॉक्टरों के इन तर्कों को नज़रअंदाज करके, वर्षों से आईबीएस के एक महत्वपूर्ण लक्षण को समझने की कोशिश कर रहे थे। लक्षण यह है कि इससे पीड़ित लोगों को पेटदर्द अक्सर खाने के बाद शुरू होता है। हाल ही में उन्होंने और उनके साथियों ने नेचर पत्रिका में बताया है कि आईबीएस से पीड़ित लोगों को दर्द का यह एहसास आंत में खाद्य पदार्थ के प्रति स्थानीय एलर्जी के कारण होता है।
तकरीबन 15 साल पहले बोलोग्ना विश्वविद्यालय के गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट जियोवानी बारबरा ने अपने अध्ययन में इस सिंड्रोंम से पीड़ित लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र थोड़ा भिन्न पाया था। उन्होंने पीड़ितों की आंतों के ऊतकों की बायोप्सी करने पर इनमें मास्ट कोशिका नामक प्रतिरक्षा कोशिकाएं सक्रिय पाई थीं। आम तौर पर मास्ट कोशिकाएं शरीर के लिए एक चेतावनी प्रणाली की तरह कार्य करती हैं – संक्रमण होने पर या परजीवी जैसे किसी घुसपैठिए के हमले पर हिस्टेमीन जैसे रसायन पैदा करती हैं। उन्होंने यह भी देखा कि आईबीएस से पीड़ित लोगों में (जिनमें वास्तव में कोई संक्रमण नहीं था) न सिर्फ मास्ट कोशिकाएं सक्रिय थीं बल्कि वे असामान्य रूप से तंत्रिका कोशिकाओं के नज़दीक थीं और उन्हें अत्यधिक सक्रिय होने के लिए उकसा रही थीं। तब, कई वैज्ञानिकों ने उनकी इस बात पर यकीन नहीं किया कि आईबीएस का दर्द आंत के जीव विज्ञान के कारण हो सकता है।
लेकिन बोक्सटेन्स ने इस पर और विस्तार से अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने आईबीएस की शुरुआत करने वाले ट्रिगर का अध्ययन किया। कतिपय लक्षणहीन संक्रमण या फूड पॉइज़निंग आईबीएस को शुरू कर सकते हैं। पाया गया कि 10 प्रतिशत लोग आंतों के संक्रमण से तो उबर गए थे लेकिन आईबीएस से पीड़ित हो गए थे। इस आधार पर उन्होंने सोचा कि हो सकता है संक्रमण के बाद आंतों में थोड़ी सूजन बनी रहती हो, जो आईबीएस के जीर्ण दर्द का कारण बनती हो। लेकिन आईबीएस से पीड़ित लोगों की आंतों के ऊतक की बायोप्सी में सूजन नहीं दिखी।
तब शोधकर्ताओं ने सोचा कि आंत का संक्रमण इस बात पर असर डालता है कि वह खाद्य पदार्थों में मौजूद एंटीजन नामक प्रोटीन अवशेषों को कैसे बरदाश्त करेगी। संक्रमण होने पर आंत की प्रतिरक्षा प्रणाली जाग जाती है और हो सकता है कि खाद्य पदार्थ में मौजूद एंटीजन को अपना शत्रु समझने लगे। यदि संक्रमण खत्म होने के बाद भी आंत में प्रतिरक्षा प्रणाली की यही प्रतिक्रिया बनी रहती है तो हो सकता है कि यही आईबीएस दर्द का कारण बन जाए।
अपनी इस परिकल्पना को जांचने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ चूहों को आंत के लिए हानिकारक बैक्टीरिया से संक्रमित किया, और साथ में उन्हें अंडे की सफेदी (एंटीजन के स्रोत के रूप में) खिलाई। आंत का संक्रमण खत्म होने के बाद इन चूहों को फिर वही एंटीजन खिलाया गया। ऐसा करने पर चूहों को पेट में दर्द का अनुभव हुआ, जो पेट की मांसपेशियों के संकुचन से नापा गया। दूसरी ओर, नियंत्रण समूह के चूहे, जिन्हें संक्रमण के समय अंडे की सफेदी नहीं खिलाई गई थी, उन्हें संक्रमण ठीक होने का बाद सफेदी खिलाने पर कोई परेशानी नहीं हुई।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि संक्रमण के बाद अंडे के सफेद हिस्से का प्रोटीन उसी तरह की शृंखला अभिक्रिया शुरू कर देता है जैसी किसी खाद्य पदार्थ से एलर्जी के समय होती है। सफेद हिस्से का प्रोटीन मास्ट कोशिकाओं के इम्युनोग्लोबुलिन ई (IgE) एंटीबॉडी से जुड़ जाता है। चूहों में भी मास्ट कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं और अपने रसायन रुाावित करती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों में अंडे के प्रोटीन के प्रति प्रतिक्रिया चार सप्ताह तक बनी रही। उन्होंने यह भी देखा कि मास्ट कोशिकाओं की नज़दीकी तंत्रिकाएं अतिसंवेदनशील और उत्तेजित हो जाती हैं जिससे दर्द का एहसास होता है।
शोधकर्ता बताते हैं कि यह फूड एलर्जी नहीं है क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया आंत तक ही सीमित थी। खाद्य पदार्थों से होने वाली एलर्जी, जैसे मूंगफली या गाय के दूध से एलर्जी, में लोगों में IgE एंटीबॉडीज़ रक्त प्रवाह में प्रवेश कर पूरे शरीर में एलर्जी के लक्षण पैदा कर सकती है। लेकिन इन चूहों के रक्त में IgE नदारद थे।
इस संभावना को मनुष्यों में जांचने के लिए शोधकर्ताओं ने गाय के दूध, ग्लूटेन, गेहूं और सोयाबीन की एलर्जी से मुक्त लेकिन संभवत: आईबीएस से पीड़ित 12 लोगों को ये चार एलर्जीजनक गुदा के माध्यम से दिए। पाया गया कि प्रत्येक प्रतिभागी ने इन चारों में से कम से कम एक तरह के एंटीजन के प्रति स्थानीय प्रतिक्रिया दी। जबकि आठ स्वस्थ प्रतिभागियों पर यही परीक्षण करने पर सिर्फ दो लोगों की आंत में सोयाबीन या ग्लूटेन के प्रति आंशिक प्रतिक्रिया दिखी। (लगता है कि कई लोगों में हल्की प्रतिक्रिया होती है जो उनकी आंत सहन कर जाती है।)
लेकिन ये निष्कर्ष कई नए सवाल उठाते हैं। जैसे क्या यह स्थिति कुछ ही खाद्य पदार्थों के साथ बनती है या सामान्य है? वर्तमान के आईबीएस उपचार लक्षणों से राहत दिलाने के लिए होते हैं। लेकिन अगर सिंड्रोम मास्ट कोशिकाएं और IgE प्रतिक्रिया के कारण हो रहा है तो कुछ मामलों में ही सही, इम्यून थेरपी उपयोगी साबित हो सकती है। इसके अलावा, संक्रमण से प्रेरित आईबीएस तो मात्र एक प्रकार है, इसके अन्य प्रकार भी हैं। जैसे तनाव जनित आईबीएस। तो सवाल है कि क्या यह स्थानीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सिर्फ संक्रमण-जनित आईबीएस का मामला है या सामान्य रूप से पाई जाती है। फिलहाल शोधकर्ता इसी सवाल का जवाब पता करने की कोशिश कर रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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