साल 2020 में, लगभग आठ लाख भारतीयों समेत दुनिया भर में एक करोड़ सत्तर लाख से भी अधिक लोगों की मौत का कारण कैंसर होगा। भारत में, हर सत्रह महिलाओं में से एक महिला और हर पंद्रह पुरुषों में से एक पुरुष को कैंसर होने की संभावना है। भारत में लगभग हर दसवीं मौत और दुनिया भर में हर पांचवीं मौत कैंसर के कारण होती है।
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से लगातार विभाजन कर वृद्धि करने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है, यह समझने के लिए हमें दो प्रकार के जीन्स के बारे में जानना ज़रूरी है। पहला ओन्कोजीन और दूसरा ट्यूमर सप्रेसर जीन। ये दोनों किसी भी सामान्य मानव शरीर की हर कोशिका में मौजूद होते हैं। ओन्कोजीन हमारे शरीर की वृद्धि और मरम्मत में मदद करते हैं और ट्यूमर सप्रेसर जीन अन्य कार्य करने के साथ ही यह सुनिश्चित करते हैं कि ओन्कोजीन द्वारा होने वाली वृद्धि नियंत्रण में रहे।
अगर किसी उत्परिवर्तन के कारण ओन्कोजीन शरीर को ज़रूरत से ज़्यादा कोशिका वृद्धि करने का आदेश देने लगे या फिर ट्यूमर सप्रेसर जीन इसे नियंत्रित न कर सके तो कोशिकाओं की यही अनियंत्रित वृद्धि कैंसर का रूप ले लेती है। मज़े की बात तो यह है कि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र भी इन कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में असमर्थ रहता है।
अब ऐसी निराली पर भयंकर बीमारी का क्या उपचार हो सकता है? कैंसर का पता चलने पर चिकित्सक कीमोथेरपी की सलाह देते हैं। कीमोथेरपी में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है। कीमोथेरपी का उद्देश्य कैंसर कोशिकाओं के प्रसार को नियंत्रित करना और किसी भी मौजूदा ट्यूमर को नष्ट करना है। यह अक्सर सर्जरी या विकिरण के साथ उपयोग किया जाता है। आम तौर पर सूई की मदद से नसों में रसायन डाला जाता है, लेकिन परिस्थिति अनुसार गोली के रूप में भी दिया जा सकता है।
कैंसर रोगी को प्राप्त होने वाले उपचारों का एक निर्धारित क्रम होता है। यह पूरी तरह से कैंसर के प्रकार और रोगी के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। कीमोथेरपी व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर दैनिक, साप्ताहिक या मासिक अंतराल पर दी जा सकती है। कई कैंसर ऐसे हैं जो कीमोथेरपी की बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। उदाहरण के लिए हॉजकिन लिम्फोमा और लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया। ये बचपन में होने वाले कैंसर हैं।
कैंसर जितना ज़्यादा फैला होता है अक्सर उसका इलाज उतना ही अधिक कठिन होता है। कीमोथेरपी से कैंसर से ठीक होने की कोई गारंटी नहीं है। अलबत्ता, कई लोगों का जीवनकाल कीमोथेरपी और अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के कारण बढ़ा है और कुछ तो कैंसर मुक्त भी हुए हैं। चिकित्सक अपने रोगियों के लिए व्यक्तिश: कीमो उपचार भी बनाते हैं जिससे प्रभावशीलता ज़्यादा से ज़्यादा हो सके।
कीमोथेरपी न केवल तेज़ी से बढ़ती कैंसर कोशिकाओं को मारती है, बल्कि तेज़ी से बढ़ने व विभाजित होने वाली स्वस्थ कोशिकाओं (जैसे आपके मुंह और आंतों के ऊपरी सतह की कोशिकाएं) के विकास को भी धीमा कर देती है और कई बार तो इन स्वस्थ कोशिकाओं की मौत भी हो जाती है। स्वस्थ कोशिकाओं के नुकसान के कारण मुंह के घाव, उल्टी होना और बाल झड़ने जैसे लक्षण पैदा होते हैं। नाक, मुंह और जीभ की ऊपरी सतह पर मौजूद तंत्रिकाओं पर भी कीमोथेरपी का बुरा असर पड़ता है और कई शोधों ने यह भी दिखाया है कि कीमो से होने वाले इस नुकसान के कारण व्यक्ति की सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। आपने देखा ही होगा कि सर्दी-ज़ुकाम के कारण आपके सूंघने और स्वाद लेने की क्षमता खत्म या कम हो जाती है। ऐसा लंबे समय तक रहे और कुछ भी खाने का मन ना करे और ये सब भी तब जब शरीर कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से लड़ रहा हो,तो कितना मुश्किल होता होगा उस इंसान का कैंसर से लड़ना। कीमोथेरपी में हुए शोध में यह भी देखा गया है कि कीमो की कुछ खुराकों के बाद रोगी की संज्ञान क्षमताओं (जैसे याददाश्त, एकाग्रता, पढ़ने-लिखने की क्षमता) पर भी बड़ा कुप्रभाव पड़ा। महिलाओं में मासिक धर्म के जल्दी बंद होने जैसे लक्षण भी देखे गए हैं।
अब आते हैं कीमोथेरपी के आर्थिक पक्ष पर। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा जुलाई 2017-जून 2018 के दौरान किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत में कैंसर की देखभाल से जुड़ी तस्वीर चिंताजनक है। सर्वेक्षण में कैंसर के विभिन्न चरणों में 1200 रोगियों को या तो ज्ञात या फिर संदिग्ध लक्षणों के आधार पर शामिल किया गया। राष्ट्र स्तर पर एक कैंसर रोगी की देखभाल का औसत कुल खर्च 1,16,218 रुपए के आसपास था (निजी अस्पतालों में 1,41,774 रुपए जबकि सार्वजनिक अस्पतालों में 72,092 रुपए)। राज्यवार देखें तो भारत में कैंसर रोगी की देखभाल की कुल लागत ओडिशा में 74,699 रुपए से लेकर झारखंड में 2,39,974 रुपए तक है। ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और हरियाणा में इलाज का कुल खर्च एक लाख रुपए से कम था। कैंसर के मरीज़ों को पंजाब, कर्नाटक, गुजरात,केरल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में इलाज पर एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच खर्च करना पड़ा। जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में कैंसर के इलाज में डेढ़ लाख से अधिक खर्चा दिखा।
ध्यान देने की बात यह है कि इस खर्च का ज़्यादातर हिस्सा रोगी या उसके परिवार को ही उठाना पड़ता है। इस खर्च का बड़ा हिस्सा दवा कंपनियों को जाता है। यानी यदि किसी को कैंसर हुआ तो वह किसी न किसी तरीके से कम से कम लाख रुपए तो दवा कंपनियों को दे ही देता है। लेकिन इतना दुख सहने और खर्चा करने के बाद कैंसर रोगी के ठीक होने की कितनी संभावना है? कुछ प्रचलित कैंसरों में कीमोथेरपी की सफलता दर तालिका में दी गई है।
आप देख सकते है कि यदि कैंसर का पहले चरण में पता चल जाए तब तो इतना कष्ट झेलकर और पैसे खर्च करके शायद जान बचाई जा सकती है, लेकिन कैंसर जितनी देर से पता चलता है, कीमोथेरपी उतनी ही बेअसर होने लगती है और रोगी की जान बचने की संभावना काफी कम हो जाती है और दुख-दर्द उतना ही बढ़ता है। लेकिन इसके अलावा कैंसर का और कोई ठोस उपचार भी नहीं है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://nci-media.cancer.gov/pdq/media/images/755978-571.jpg