कोविड-19 का टीका आने से कोरोना महामारी के परिदृश्य में काफी परिवर्तन आया है। टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू होने से जहां एक उम्मीद जागी है वहीं असमंजस की स्थिति भी बनी हुई है।
सबसे पहले, चाइना नेशनल बायोटेक ग्रुप (सीएनबीजी) के प्रभाग बीजिंग बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स इंस्टीट्यूट ने अपने टीके के तीसरे चरण के परीक्षण में 79.34 प्रतिशत प्रभाविता का दावा किया और इसे पूरी तरह सुरक्षित बताया। कंपनी ने चीन की नियामक एजेंसियों से अनुमोदन की मांग की है। लेकिन इस दावे पर वैज्ञानिकों ने गंभीर आपत्ति जताई है। इसमें न तो प्रतिभागियों की संख्या के बारे में बताया गया है और न ही टीकाकृत एवं प्लेसिबो समूहों में कोविड-19 के प्रकोप के बारे में कोई जानकारी है। इसके अलावा परीक्षणों के स्थान के बारे में भी कोई चर्चा नहीं की गई है। तीन सप्ताह बाद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में हुए परीक्षण के बाद 86 प्रतिशत प्रभाविता का दावा किया गया है।
इसके बाद, यूके ने एस्ट्राज़ेनेका और युनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड द्वारा बनाए गए टीके के आपात उपयोग को मंज़ूरी दी। इस पर असमंजस ज़ाहिर किया गया क्योंकि शोधकर्ताओं ने विभिन्न जनसंख्या समूहों, टीकों की अलग-अलग खुराक और मुख्य एवं बूस्टर टीके के बीच अलग-अलग अंतराल के आंकड़े मिला दिए थे। आश्चर्य की बात थी कि यूके मेडिसिन एंड प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने कहा कि मुख्य खुराक के बाद बूस्टर 12 सप्ताह बाद भी दिया जा सकता है। कहा गया कि टीके की एक पूर्ण खुराक 73 प्रतिशत प्रभावी है। जबकि पूर्व में दी लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन में दो खुराकों की प्रभाविता मात्र 62 प्रतिशत बताई गई थी। वैज्ञानिकों ने यह सवाल भी उठाया है कि एक खुराक से वास्तव में कितनी सुरक्षा मिलती है। इस संदर्भ में एमएचआरए के फैसले पर भी सवाल उठे हैं। युनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा की डीन और जैव सांख्यिकीविद के अनुसार एमएचआरए द्वार यह फैसला जल्दबाज़ी में बिना किसी स्पष्टीकरण के लिया गया है। फिर भी टीकों की दो खुराक के बीच में अंतराल अधिक रहा तो अधिक लोगों को मुख्य खुराक तो मिल ही जाएगी। इससे गंभीर स्थिति और मृत्यु दर को कम किया जा सकेगा। सायनोफार्म तथा एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड दोनों टीकों के मामले में आंकड़ों का अभाव पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।
कोविड-19 टीकों की कमी तो है ही और संभावना है कि सायनोफार्म और एमएचआरए दोनों टीकाकरण की प्रक्रिया को गति देने का प्रयास करेंगे। गौरतलब है कि एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड के सहयोग से इस वर्ष एक अरब टीकों की खुराक विकसित होने की उम्मीद है। इसके अलावा सायनोफार्म के पास वर्तमान में 10 करोड़ खुराक उपलब्ध हैं और इस वर्ष एक अरब खुराकों के उत्पादन की संभावना भी है।
कई देशों में टीके की केवल एक खुराक देने पर चर्चा हो रही है जबकि टीकों का परीक्षण दो खुराकों के लिए किया गया है। एक ही खुराक देने के पीछे तर्क यह है कि काफी सारे लोगों में कुछ प्रतिरक्षा तो उत्पन्न हो जाए। ऑपरेशन वार्प स्पीड के प्रमुख वैज्ञानिक मोनसेफ सलोई बताते हैं कि एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड टीके की पहली खुराक प्राप्त करने वालों ने मज़बूत प्रतिरक्षा विकसित नहीं की है। ऐसे में एक खुराक का फैसला जोखिम भरा हो सकता है।
अमेरिका में भी फाइज़र-बायोएनटेक और मॉडर्ना द्वारा निर्मित और स्वीकृत थ्र्ङग़्ॠ आधारित दो टीकों के संदर्भ में भी मुख्य व बूस्टर खुराक के बीच के अंतराल बढ़ाकर ज़्यादा लोगों को टीका देने की चर्चा हो रही है। वार्प स्पीड के तहत mRNA टीकों का आधा स्टॉक ही वितरित किया जा रहा है ताकि बूस्टर खुराक के लिए पर्याप्त मात्रा में टीके उपलब्ध रहें। वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अधिकारियों को एकल खुराक को जल्द से जल्द शुरू करने का सुझाव दिया है। इसमें प्राथमिकता के आधार पर अतिसंवेदनशील लोगों को तय कार्यक्रम के तहत दो खुराक दिए जाने का प्रस्ताव है लेकिन सामान्य लोगों के टीकाकरण मानकों में ढील दी जा सकती है। वैज्ञानिक समुदाय की ओर से इस प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार करने का आग्रह किया गया है।
कुछ वैज्ञानिक दो खुराकों के बीच के अंतराल को इच्छाधीन मानते हैं। महामारी के दबाव के कारण mRNA टीकों की खुराकों के अंतराल को अधिक सख्ती से लागू किया जा रहा था। सलोई के अनुसार एक तरीका यह है कि लोगों को आधी मात्रा ही दी जाए। मॉडर्ना टीके के डैटा से लगता है कि 55 वर्ष से कम उम्र के लोगों में आधी खुराक देने से ही मज़बूत प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न हो जाती है। उम्मीद है कि इस आयु वर्ग के लोगों के लिए टीके की आधी खुराक निर्धारित करके समय और टीकों दोनों की बचत की जा सकती है।
फिलहाल सीएनबीजी ने टीके का मूल्य निर्धारण नहीं किया है लेकिन चीनी अधिकारियों ने उचित मूल्य पर टीका उपलब्ध कराने का वादा किया है। एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड ने एक गैर-लाभकारी संस्था के ज़रिए प्रति खुराक तीन डॉलर (लगभग 220 रुपए) में बेचने की योजना बनाई है। हाल ही में स्वीकृत फाइज़र-बायोएनटेक और मॉडर्ना टीकों की लागत लगभग 10 गुना से भी अधिक है और ये कंपनियां इस वर्ष के अंत तक दो अरब खुराकों का उत्पादन करेंगी।
दोनों टीके mRNA आधारित टीके हैं जिनको शून्य से भी कम तापमान पर रखना और परिवहन करना अनिवार्य है। इसके विपरीत एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफोर्ड टीका हानिरहित एडेनोवायरस आधारित है, जबकि सायनोफार्म टीके में वायरस का निष्क्रिय संस्करण है इसलिए इनको सामान्य रेफ्रीजरेटर में भी रखा जा सकता है। वर्तमान में हज़ारों चीनी फ्रंट लाइन जन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, शिक्षकों और सार्वजनिक परिवहन कर्मचारियों को आपात उपयोग के तहत सायनोफार्म टीके की खुराक मिल चुकी है। इसको यूएई और बाहरीन ने भी आपात उपयोग की अनुमति दी है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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