हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि अफ्रीका में पाए जाने वाले नर चीते कुछ खास पेड़ों या बड़ी चट्टानों को अपना ‘अड्डा’ बना लेते हैं। इन अड्डों की मदद से वे अपने लिए साथी तलाशते हैं और अन्य नर चीतों को संकेत देते हैं। इस तरह ये अड्डे उनके संचार केंद्र बन जाते हैं। शोधकर्ताओं को लगता है कि चीतों के संचार केंद्र के बारे में जानकारी चीतों को नाराज़ किसानों के हमले से बचा सकती है।
1980 के दशक में युनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के व्यवहार पारिस्थितिकी विज्ञानी टिम कैरो ने पाया था कि चीतों का सामाजिक ढांचा अनोखा होता है: मादा चीता का अधिकार क्षेत्र बहुत विशाल होता है, और यह क्षेत्र कई नर चीतों के छोटे-छोटे अधिकार क्षेत्रों पर फैला होता है। अधिकार क्षेत्र के लिए नर चीतों में भयानक प्रतिस्पर्धा रहती है, अपने अधिकार क्षेत्र की रक्षा के लिए वे एक-दो असम्बंधित नर चीतों के साथ सांठ-गांठ भी बना लेते हैं। और बिना क्षेत्र वाले ‘बेघर’ नर चीते (फ्लोटर्स) अन्य नर चीतों के क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाने की फिराक में घूमते रहते हैं।
कैरो ने यह भी पाया था कि चीतों के अपने कुछ खास स्थान होते हैं (जैसे कोई पेड़ या बड़ी चट्टान) जहां वे नियमित रूप से वे अपनी गंध छोड़कर जाते हैं। लीबनिज़ इंस्टीट्यूट फॉर ज़ू एंड वाइल्डलाइफ रिसर्च के स्थानिक पारिस्थितिकी विज्ञानी जोर्ग मेलज़ाइमर को लगा कि ये अड्डे महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
इसलिए उनकी टीम ने 2007 से 2018 के बीच 106 वयस्क चीतों पर रेडियो कॉलर लगाए। ये चीते सेंट्रल नामीबिया में लगभग 11,000 वर्ग किलोमीटर में फैले मवेशियों के फार्म के पास रहते थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकार क्षेत्र से लैस चीते अपना आधा वक्त ‘अड्डों’ पर बिताते हैं, और पेशाब करके अपनी पहचान (गंध) वहां छोड़ देते हैं। फ्लोटर चीते भी नियमित आते-जाते हैं, लेकिन वे वहां सूंघने मात्र के लिए ही रुकते हैं। इन जगहों पर कभी-कभी मादा भी आती है और कामोन्माद के दौरान वहां अपनी पहचान छोड़ जाती है। ये अड्डे आम तौर पर नर चीते के अधिकार क्षेत्र के केंद्र में होते हैं और किसी चाय-पान की मशहूर दुकान की तरह काम करते हैं, जहां चीते अपने लिए बेहतर साथी की तलाश करते हैं। जो स्थान अड्डा बन चुके हैं वे स्थान हमेशा अड्डे बने रहते हैं। अधिकार क्षेत्र पर नए चीते का अधिकार हो जाए, तब भी अड्डों में बदलाव नहीं होता।
चीतों के अड्डों की जानकारी संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकती है। कई जानवरों की तरह चीते भी जोखिम में हैं। उनके सिकुड़ते आवास स्थल, शिकार की घटती आबादी और मनुष्यों के साथ उनके बढ़ते संघर्ष के कारण आज चीतों की आबादी महज़ 7000 रह गई है।
हालांकि चीते बड़े मवेशियों का शिकार नहीं करते लेकिन हिरण, चिंकारा वगैरह ना मिलने पर वे बछड़ों का शिकार करते पाए गए हैं। नामीबिया और अन्य जगहों पर किसान अपने पशुओं की रक्षा या प्रतिशोध में चीतों को मार देते हैं। इस तरह की हत्याएं चीतों के लिए मुख्य खतरा मानी जा रही हैं।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन 35 किसानों से संपर्क किया जिनके मवेशी चीते के शिकार बने थे। इनमें से छह किसानों की ज़मीन पर चीतों का अड्डा था, और उन्होंने मवेशियों पर हमला भी किया था। इसलिए शोधकर्ताओं ने किसानों को सुझाव दिया कि अगर वे अपने मवेशियों और बछड़ों को इन अड्डों से दूर ले जाएं तो चीते इन्हें नहीं मारेंगे। किसानों द्वारा सलाह मानने पर पाया गया कि चीतों के द्वारा बछड़ों के शिकार में 86 प्रतिशत की कमी आई। ये नतीजे प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज़ में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ता बताते हैं कि वास्तव में समस्या चीतों के कारण नहीं बल्कि स्थान के कारण थी। वहीं यह अध्ययन सीधे तौर पर तो सभी बिल्ली प्रजातियों पर लागू नहीं होता क्योंकि उनकी सामाजिक संरचना और अड्डे अलग तरह के होते हैं, लेकिन यह अध्ययन वन्य जीव और मनुष्य के बीच के संघर्ष के बारे में सोचने का एक नया दृष्टिकोण ज़रूर देता है। शोधकर्ताओं की सलाह को उन क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है जहां चीतों, कृषि और पशुओं के बीच संघर्ष दिखता है। साथ ही अध्ययन हमें संरक्षण प्रबंधन की नीतियां बनाने के पहले जंगली जानवरों के व्यवहार को समझने का महत्व भी बताता है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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