वैसे तो हमारा मस्तिष्क काफी शोर भरे माहौल में भी किसी एक आवाज़ पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, और उसे ठीक-ठीक सुन सकता है। लेकिन जब हमारे आसपास शोर ही शोर हो, या वृद्धावस्था हो, तो किसी एक आवाज़ को ठीक से सुन पाना मुश्किल हो जाता है। अब शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग की मदद से इसका समाधान ढूंढ लिया है जिसे उन्होंने कोन ऑफ साइलेंस (खामोश शंकु) नाम दिया है।
कंप्यूटर विज्ञानियों ने मानव मस्तिष्क के समान संरचना वाले न्यूरल नेटवर्क को एक कमरे में कई लोगों द्वारा बोली जा रही आवाज़ों का स्रोत पता लगाने और उन आवाज़ों को अलग-अलग करने के लिए प्रशिक्षित किया। नेटवर्क ने यह इस आधार पर सीखा किकमरे के बीचों-बीच रखे गए कुछ माइक्रोफोन से कोई आवाज़ कितनी देर बाद टकराती है।
इस तरह प्रशिक्षित नेटवर्क को जब शोघकर्ताओं ने अत्यधिक शोर भरे माहौल में जांचा तो पाया गया कि नेटवर्क ने 3.7 डिग्री कोण वाले शंकुनुमा दायरे के भीतर आने वाली सिर्फ दो ही आवाज़ो को चिंहित किया और उन्हें ही सुनाना जारी रखा। इस तरह बाकी आवाज़ें बहुत मंद पड़ गर्इं, और वांछित आवाज़ ठीक से सुनाई पड़ी। शोधकर्ताओं द्वारा ये नतीजे न्यूरल इंफॉरमेशन प्रोसेसिंग सिस्टम पर हुए एक सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए हैं।
भविष्य में इस तकनीक की श्रवण यंत्र, निरीक्षण प्रणाली, स्पीकरफोन, या लैपटॉप में उपयोग की जाने की संभावना है। यह तकनीक चलती-फिरती आवाज़ें भी पहचान कर उन्हें अलग कर सकती है, अत: यह पार्श्व में हो रहे शोर जैसे बाहर की आवाज़ें, बच्चों की आवाज़ें या अन्य शोर-शराबे को भी हटाकर सिर्फ वक्ता की आवाज़ सुना सकता है। इस तरह इसकी मदद से ज़ूम कॉल बेहतर किए सकते हैं। बहरहाल इस तकनीक को बाज़ार तक पहुंचने में अभी काफी पड़ाव पार करने बाकी हैं।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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