वृक्ष मेंढक चटख हरे होते हैं। लेकिन उन्हें हरा बनाता कौन है? ताज़ा शोध बताता है कि उनकी चमड़ी के नीचे उपस्थित नीला पदार्थ उन्हें हरा बनाता है। यह हरा रंग उन्हें अपने आसपास के परिवेश में घुल-मिलकर ओझल होने में मदद करता है। लेकिन यह एक पहेली रही है कि कैसे ये मेंढक यह हरा रंग अपनी चमड़ी के नीचे जमा करके रखते हैं जबकि यह अत्यंत विषैला होता है।
दरअसल, शोधकर्ता यही समझने की कोशिश कर रहे थे कि वृक्ष मेंढकों की सैकड़ों प्रजातियां कैसे इस विषैले हरे रंजक बिलिवर्डिन को इतनी भारी मात्रा में जमा करके रख पाती हैं। अधिकांश प्राणियों के लिए बिलिवर्डिन इतना विषैला होता है कि इसे तत्काल नष्ट कर दिया जाता है अथवा उत्सर्जित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, मनुष्यों में जब लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट होती हैं तो बिलिवर्डिन बनता है। कभी-कभी खरोचों पर जो हरापन दिखता है वह इसी के कारण होता है।
लेकिन वृक्ष मेंढक इतनी भारी मात्रा में बिलिवर्डिन जमा करते हैं तो उन्हें कोई नुकसान क्यों नहीं होता? होता यह है कि इन मेंढकों में बिलिवर्डिन छुट्टा नहीं छोड़ा जाता। शोधकर्ताओं ने आठ प्रजातियों में से यह रंजक प्राप्त किया और पाया कि यह काफी टिकाऊ भी था और हानिरहित भी। टीम ने प्रोसीडिंग्स ऑफ दी नेशनल एकेडमी ऑफ साइन्सेज़ में बताया है कि इन मेंढकों में बिलिवर्डिन एक अन्य प्रोटीन सर्पिन के साथ जुड़कर एक संकुल बना लेता है। यह संकुल उन्हें लसिका ग्रंथियों, मांसपेशियों और त्वचा जैसे सारे अंगों में मिला। मज़ेदार बात है कि यह संकुल नीला होता है। और मेंढक हरे इसलिए दिखते हैं कि उनकी त्वचा थोड़ी पीली होती है और नीला व पीला मिलकर हरा बना देते हैं। इसीलिए जिन हिस्सों की त्वचा में पीलापन नहीं होता, वहां मेंढक नीला ही नज़र आता है। जैसे मेंढक के पेट वाला हिस्सा।
और तो और, नीले-पीले का यह मिश्रण दिन भर एक-सा नहीं रहता। दिन के समय नीला रंजक पूरे शरीर में फैल जाता है, जिससे मेंढक परिवेश में नज़र नहीं आता और मज़े से सो सकता है। दूसरी ओर, रात के समय यह प्रोटीन-संकुल मेंढक की टांगों और आंतों में इकट्ठा हो जाता है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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